subhash chand Khandelwal

Drama

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subhash chand Khandelwal

Drama

मेरा सपना

मेरा सपना

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मैंने १९८४ में पहली बार पहली कविता श्रीमति इंद्रा गाँधी जी पर लिखी।

" मरने वाले ओ जालिम,तेरा उसने क्या बिगाड़ा जिसको तूने मार दिया ".

उसके बाद मैंने बहूंत सी कविता लिखी. मगर मेरा मन नहीं भरा।

फिर मैंने शायरी लिखना शुरू किआ मगर मेरा मन उसमे भी नहीं लगा।मैंने सोचा कोई मुश्किल काम किआ जाये।

जिसे कोई-कोई करता हो। और फिर मैंने उपन्यास लिखना शुरू किआ। जब तक कोई लिखेगा नहीं तब तक कोई अभिनय 

कैसे करेगा। पढ़ना आसान है, मगर कुछ नया लिखना बड़ा ही मुश्किल जोखिम भरा काम है। मैंने इसको आसान करने की कोशिश की है। मै छोटा मुँह बड़ी बात कह रहा हूं। 

उस समय मेरी उम्र केवल १५ साल के लगभग थी। तब मैंने पहेली कहानी लिखी थी।

"मुझे बदनाम मत करो "

इसके बाद मेरा मैं कही और जाने लगा। मै कहानीयो के साथ साथ गीत भी लिखने लगा।मैंने एक हज़ार गानो की लम्बी माला बना डाली।

मैंने सन १९८४ से लेकर १९९३ तक यह सब लिख डाला। और एक पेज रोज़ना काम से काम लिखता था।जिसमे मैंने 5 बड़े उपन्यास लिखे. मै खुनी नहीं, धर्मराज दुश्शान, मोहब्बत का आखरी तोफा, एक तीर दो शिकार।

सन १-६-१९८७ मरी जिंदगी का वोह दिन आया और मेरी जिंदगी में तूफ़ान भर गया। दिन धीरे धीरे बदलते चले गए, मै रो भी नहीं सकता. जिस तरह रामायण में सात अध्याय सात कांड है। उसी तरह मेरी जिंदगी में सात अध्याय सात कांड है ।

पहला कांड राजेश, दूसरा राजू, तीसरा मिली, चौथा मिली,पांचवा मेरे पिताजी,छठा मेरी माँ और सातवा मै खुद हूं जो आप को सुना रहा हूं

यह जो कहानी मै लिखने जा रहा हूं, यह किसी को दुःख देने के लिए नहीं है। ये सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखी जा रही है। 

अगर सहयोग वश किसी की जिंदगी में हो जाता है तो उसके लिए मुझे जिम्मे दार न ठराया जाये। ये सहयोग ह प्रयोग नहीं 

मैंने लिख दिया सो लिख दिया क्र दिया सो क्र दिया कह दिया सो कह दिया। मै झूठ नहीं बोलता हूं।

 मैंने मेट्रो स्टेशन बस में देखा है, अगर कोई पुरुष पुरुष सीट पर क्यों न बैठा हो एक महिला क एते ही उसे वोह सीट छोड़नी पड़ती है, ऐसा क्यों ? कानून तो सबके लिए बराबर होता है, क्या पुरुष क्या स्त्री। मै सरकार से निवेदन करता हूं इस कानून को रद्द करे। किराया हम सब ही देते ह जो पहले आएगा पहले पायेगा, उसी तरह पढाई लिखे पर है

कोई अस सी कोटा कोई ोब्स कोटा तो कोई विप कोटा, कोटा सिर्फ कोटा जनरल वाला खा जाये। न तो अधिक पैसा ह और न कोई विप कोटा। 55 वाला आगा ह और 90 वाला लाइन में पीछे खड़ा अपनी बरी का इन्तजार के रहा है अपनी जवानी गवा रहा है, कहते कानून सबके लिए बराबर है, मगर यहाँ नहीं है, इसलिए मई एक लेखक बन रहा हूं. ये काम कोई आसान काम नहीं है 

यह बहूंत बड़ा प्रयोग है, अँधेरे मे भूसे के ढेर में एक छोटी सी सुई खोजने के बराबर है। मे हारना नहीं जनता। मेरा मानना है जितना और आगे बढ़ना है 

' उत्तम खेती माध्यम व्यापर नौकरी करे बुद्धू गवार '

 एक काम पढ़ा लिखा अंगूठा चाप बहूंत बड़ा व्यापारी बन जाता है अपने ज्ञान और मेहनत से।

एक दिन मुझे मेरे भाई राजेश ने कहा तू जिंदगी में कभी कामयाब नहीं हो सकता। मुझे बहूंत बुरा लगा मगर मे कुछ कह नहीं सका 

क्योकि मेरा वक्त बहूंत बुरा चल रहा था । मैंने उसका श्राप आशीर्वाद समझ कर अपने पास रख लिया। जब बुरा वक्त हो तो समझदार मानव को चुप ही रहना चईये उसका जवाब वक्त ही देगा वो नहीं उसे उसी तरह छोड़ देना चाहिए , जिस तरह हाथी अपने पीछे भौकते हूंए कुत्तो को छोड़ देता है और आगे चल देता है मगर उसे वोह सब भूलना नहीं चाहिए, और न ही भूलने देना चाहिए सुबह शाम सोते जागते उसे याद रखना चाहिए और हमेशा उसके आस पास ही रह रहना चाहिए और कभी मरने या मर देने की कभी नहीं सोचना चाहिए। मरते या मारते कमजोर दिल के होते है इसके लिए पक्का कड़ा दिल होना चाहिए .कामयाबी और खूबसूरती किसी रहीस की जागीरदरी नहीं है जिसे मिलनी है उसे मिलनी ही है और मिलकर ही रहेगी। मोहब्बत कोई रिश्ता नहीं देखती है कोई भी किसी से भी कर सकता है और दुश्मनी भी। हमारी आँखे दो है मगर हम हर किसी को अलग अलग तरीके से देखते है। माँ को बेटी को बहन को प्रेमिका को और अपनी धर्म पत्नी को अलग अलग नज़र से देखते है, फिर भी आँखे सो होती है।इसको कहते है मेरी शर्म,तेरी शर्म, उसकी शर्म, समाज की शर्म। शर्म हमारा गहना है एक रहीस का भी और गरीब का भी,

मुझे मेरे भाईयो ने बहूंत तकलीफ दी है मगर मे उन्हें कुछ नहीं कहे रहा हूं क्योकि 

समय बड़ा बलवान है मनुष्य नहीं बलवान ढीलन लूटी गोपी का वही अर्जुन वही बाण 

 जिसने महाभारत का युद्ध जीता था वोह भी समय से हार गया।

 एक दिन राजेश ने मुझे मार देने की कोशिश की। मेरी किसमस्त अच्छी थी जो मे बच गया या यु समझो उसकी किस्मत अच्छी थी जिससे वोह बच गया वार्ना मेरे मर जाने से उसे जेल हो जाती और उसे कोई नहीं बचा पता मेरी मेरे भाईयो से नहीं बनती है इसके कई कारण है मतों का नहीं मिलना।

एक दिन मिली ने मुझसे कहा था देख लुंगी तुझे और तेरी लुगाई को कितनी सेवा करेगी अपनी इस माँ और इस बाप की. उसने मेरा भविष्य लिख डाला मैंने भी जोश में कहे दिया देख लेना उस वख्त मेरी उम्र केवल सत्तरह साल की थी, वोह मेरी माँ और पिताजी का मान सम्मान नहीं करती थी मैंने भी उसी की यह बात सुनकर जोश में भरकर कह डाला मे शादी ही नहीं करूँगा और अगर किसी कारण वश शादी करनी पड़ी तो ये मेरी पहली शर्त होगी वोह मुझे प्यार करे या न करे मगर मेरी माँ को माँ ही समझेगी, सास नहीं,यह मेरी माँ है किसी और की नहीं यह लावारिस नहीं है, मे इसका बीटा हूं, इसका वारिस हूं जी ते जी और मरने के बाद भी मे तब तक जिन्दा रहूँगा जब तक मेरी माँ इस दुनिया में जिन्दा रहेगी, यह मेरी प्रतिज्ञा है। चाहे मेरे अंदर हज़ारो हज़ारो कीड़े क्यों न पढ़ जाये और इस बात पर मैंने एक उपन्यास लिख डाला महोब्बत का आखरी तोफा प्रतिज्ञा करना आसान है मगर उसे पूरा करना उतना ही मुश्किल काम है क्योकि भविष्य किसी ने ने नहीं देखा मगर सच के साथ हमेशा भगवन होता है और मेरे भी साथ में कही न कहि है। मिली मुझे तरह तरह से नीचे दिखाने की कोशिश करती रहती है मगर मे भी किसी से काम नहीं हूं 

तू डाल डाल मै पात पात मेरे मन माँ की सेवा में है उसका बिलकुल उल्टा होता है 

एक दिन नीलकंठ समय से पहले घर पहूंच जाता है मिली अपनी सास से लड़ रही होती है 

मिली :-किसी दिन तुम्हे सारा सामान उत्तरहकर घर से बहार फेक दूंगी 

नीलकंठ गुस्से में बोला 

' ये क्या हो रहा है किसकी हिम्मत है जो मेरी माँ का सामान उठा कर फैक सके "

मिली:-तू है कोण तेरी औकात क्या है मै तो तुझे अपने देवर मानती ही नहीं मेरा एक ही देवर है राजेश 

नीलकंठ:- तू मुझे क्या माने क्या न माने मै तो किसी को अपना भाई ही नहीं मानता जब कोई मेरा भाई ही ही नहीं तो तू क्या और तेरा मेरा रिश्ता क्या आज के बाद मै अटल प्रतिज्ञा करता हूं मै अपनी माँ का एक ही अकेला बेटा हूं न तो कोई मेरा भाई था, न है और न होगा। मै अकेला था अकेला हूं और अकेला ही ही रहूँगा। मै अपना बड़ा भाई न तो किसी को बनाऊंगा और न ही बनने दूंगा और छोटा तोह बिलकुल भी नहीं 

 मिली :- मुझे भी तुम लोगो के साथ रहने का कोई शौक नहीं है तुम मारो भाड़ में जाओ मै चली 

 माँ बीच में बोली :- बेटा छोटे की शादी हो जाने दे उसके बाद चली जाना।अलग हो जाना 

माँ बेटे से बोली :- बेटा तू क्यों लड़ता रहता है कुछ काम घबड़ा कर, तू जिन्दा भाईयो को मार रहा है. 

मीलकण्ठ:- माँ पर भड़क जाता है, माँ यह सही ह और मै गलत कैसे।यह हमे हमारे घर से निकल रही है 

माँ ने प्यार से कहा :- बीटा कभी कभी ऐसा भी होता है 

नीलकंठ :- मगर मई नहीं मानता।तू माँ है, मई बीटा हूं तेरी सेवा मेरा फ़र्ज़ है कोई अहसान नहीं, यह इसके बाप का घर नहीं है।यह हमारा घर है, हम सब का है,तुम्हारा है केवल तुम्हारा है।जो हरे सो रहर जो जाये सो जाये।

नीलकंठ अपनी माँ से लड़ने लग जाता है और उसे कानून सीखने लग जाता है और कुर्सी पे जेक बैठ जाता है।

माँ फिर से समझती है, बीटा हर इंसान एक जैसा नहीं होता है।जैसी वोह है वैसा तू नहीं, तेरे भाई नहीं। वोह भी तो मेरे बेटे है, तू अलग नहीं वोह अलग नहीं, फिर झगड़ा कैसा ? चल यह बता कुछ काम हूंआ या नहीं।

नीलकंठ :- अरे माँ यही तो साड़ी परेशानी है जो मुझे खा रही है और साबके नीचे झुका रही है। क्या मेरा मन नहीं चाहता काम काने को ? सब खूब कमा रहे है और मेरी बोहनी भी नहीं होती।आज बस बोहनी करी है | पटरी पर सामान लेकर के बैठता हूं।

मगर कोई मेरी और देखता ही नहीं। दस बीस पचास सौ ऐसे कैसे काम चलेगा। मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता। अपनी किस्मत ही क्यों खोटी है और फूटी भी। नीलकंठ कुछ सोचकर बोलै :- मगर माँ आज के बाद यह मेरी भाभी नहीं \ इसने मुझे मार डाला मैंने इसको मार डाला। आज से मै दुशाशन बनूँगा और नीलकंठ एक दुशाशन उपन्यास लिखता है।अपने दोनों भाइयो से रिश्ता तोड़ देता है। कुछ समय के बाद राजेश की शादी हो जाती है और तीनो भाई अलग अलग हो जाते है। राजेश की पत्नी उससे भी ज्यादा समझदार आती है और घर को घूरा बना देती है। लड़ लड़कर सब अलग हो गए। तीनो भाई सब कुछ बात लेते है। नीलकंठ अपनी माँ से बहूंत प्यार करता है, घर का सारा काम करता है माँ की सेवा करता है।मगर घर प्यार और सेवा से नहीं चलता है।घर चलने के लिए पैसा जरूरी है। माँ नीलकंठ को रोज डाटती है, ऐसे कैसे काम चलेगा। तेरे इन साओ पचास से है नहीं चलेगा। घर चलने के लिए रोजाना पांच सौ रूपए चाहिये। केवल सूखी रोटी से काम नहीं चलेगा, कभी हरी बीमारी भी हो सकती है। वोह कहा से आएगा ? नीलकंठ जब भी खाना खाने बैठता तभी माँ की गाली खाता है। जितनी रोटी नहीं खता उससे जयादा गाली खता है।

मगर वोह अपनी माँ की किसी बात का बुरा नहीं मानंता और हस क्र ताल देता है।

एक दिन माँ बोली बीटा तू अपने बड़े भाईयो को देख वोह कितना कमाते है खुश रहते है, तेरी वजह से वो दोनों अलग हो गए।

जो काम वोह करते है वोह ही तू करता है, मगर तू वोह ही सौ पचास लेकर आता है। तेरे भाई दो दो हज़ार रूपए कमाते है।

अगर तेरी ये ही हालत रही तो भीक मांगने की नौबत आ जाएगी। तेरी भी शादी करनी है घर बसना है। नीलकंठ अकड़ कर बोला:- माँ मुझे शादी नहीं करनी। तूने उन दोनों की शादी की क्या मिला ? केवल भूख ऐसे बहूं बीवी से तो मै अकेला अच्छा हूं।

मै तेरे पास हूं ना, तेरी सेवा कर रहा हूं ना। रोटी तो हम भी खा ही रहे है, सोना चांदी तो वोह भी नहीं खाते, खाते तो रोटी ही है।

वोह घी से खाते है, हम बस सूखी खाते है। पलंग पर वोह सोते है, उसी पर हम सोते है| आसमान पर कोई नहीं सोता सब जमीन पर सोते है। बीएस मेरी ही किस्मत खराब है, चलता चार कदम हूं, दो कदम पीछे हो जाता हूं मगर मै तुझे या पिताजी को भूख से नहीं मरने दूंगा। भगवन कही न कभी तो हम पर भी मेहरबान होगा उसके घर देर है अंधेर नहीं, यह बात सब लोग कहते है, मै भी कहेरहा हूं।

माँ फिर बोली :- तू मेरा अच्छा बीटा है, मेरा ख्याल रखता है। अपने पिताजी का भी रखता है।मगर इस दुनिया के साथ चलने को ही चलना कहते है। गिर गिर कर चलने को नहीं आम पक गया तो आम है वार्ना कच्ची कैरी है।

नीलकंठ :- मगर माँ कच्ची कैरी का ही आचार बनता है।जो अलग अलग स्वाद देता है और लोग उसे चाट चाट कर मान मांग कर खाते है। आम सड जाता है मगर कच्ची कैरी नहीं। वोह दोनों जो तुझे छोड़कर गए है, वो फिर लूट कर आएंगे और फिर हमारे दिन आएंगे। मै इतना पैसा कमाऊंगा की तुझे इन नोटों से तोल दूंगा।

एक दिन नीलकंठ अपना उदास मुँह लेकर घर आता है,

 माँ बोली :- बेटा क्या बात है ?

नीलकंठ :- माँ अपनी तो किस मत ही ख़राब है, आज तोह बोहनी भी नहीं हूंई।

माँ को बुरा लगता है और बोली चल खाना खा ले।

माँ गरम गरम रोटी बनती है और उसे गाली देने लगती है, तेरी तोह किस्मत ही ख़राब है। जहा जायेगा भूका वही पड़ेगा सूखा और उसके हाट में एक खाली कटोरा पकड़ा देती है। नीलकंठ देखता रह जाता है और सहम क्र बोला यह क्या है।

माँ बोली कटोरा, कल से भीख मांगना अब तेरी किस्मत में ये ही है।और कुछ नहीं मांग खाये सो जीते गाँठ का न बीते।

नीलकंठ को बहूंत गुस्सा आता है और आँखे लाल - पीली हो जाती है, मगर कुछ बोलता नहीं है, सोच में पड़ जाता है क्या कहूं और क्या न कहूं। और गुस्से में आकर दो रोटी फ़ालतू खा जाता है। अपने गुस्से को दबाने के लिए कुछ तो करना ही था और जाकर सोने की कोशिश करता है, मगर नींद कहा आती है।भीख का कटोरा देखकर बार बार सोचता है, मै भिखारी मै भिखारी और सोचते सोचते सुबह हो जाती है और नहाने चला जाता है रोज की तरह। नहाने के बाद मंदिर जाता है और जाते ही भगवान् को गालिया सुनाता है, तू सबको बाटता है हमको डाटता है, मेरी गलती क्या है ? मैंने तुझसे कुछ ज्यादा नहीं माँगा बस इतना ही तोह माँगा है सिर्फ पेट भर रोटी तेरे पास मेरे लिए इतना भी नहीं है, तो फिर मुझे पैदा ही क्यों किया ? अगर पैदा ही करना था तो फिर भूख क्यों दी ? मै अकेला हूं, मेरा कोई साथी नहीं है। हे बजरंगबली, हे हनुमान जी महाराज, हे सबके मालिक, हे राम भक्त, हे संकट मोचन, हे दया निधान, हे धर्म पालक, हे महाबली, हे निर्धन का धन, हे कमजोर की ताकत, तू मेरी क्यों नहीं सुनता ?

मै तेरी दया का भूखा हूं, हे दया निधान, हे करुणा निधन मेरी रक्षा करो। तू सब कुछ क्र सकता है, मै सब कुछ क्र सकता हूं मगर दुनिया से भीख नहीं। मै तेरे दर का भीखारी हूं, तू काम दे या जयादा मगर दे तू ही आज जो मेरा मान गिरा है, आज से पहले कभी नहीं हूंआ। मुझे मेरी माँ ने भीख का कटोरा दिया है, आज इसे तू ही भर सकता है और कोई नहीं। सब लोग कहते है, अपनी कमाई का बीसवा भाग दान करना चाहिए, मगर मै तो खुद भीखारी हो रहा हूं,भला मै क्या दान करू, अगर आप चाहते है मै कुछ दान करने लायक बन सकू वार्ना आज के बाद कभी तेरे दर पर नहीं आऊंगा। तू भगवान् है और मै इंसान, मै भूख से मर सकता हूं, मगर भीख नहीं, प्रभु। एक शेर भूखा तो मर सकता है मगर घास नहीं खायेगा। मेरी भी एक इमेज है, मै एक इंसान हूं, वयापारी हूं, चाहे छोटा ही सही, मगर काम तोह करता हूं।

और हाथ जोड़कर घूप डीप जलाकर चला गया। और उस पर भगवान् की मेहरबानी हूंई,नीलकंठ बड़ा खुश हूंआ, और हसते हसते घर आया। घंटी बजता है, माँ दरवाजा खोलती है और जोर से बोला माँ बड़ी जोर से भूख लगी है खाना दो।

माँ खुश होकर बोली क्या बात है, बड़ा खुश हो रहा है।

नीलकंठ:- माँ आज तो कमल हो गया, अगर भगवान् ऐसे ही हम पर दया करे तो हमारे भी दिन बदल जायेंगे आज मैंने कम से कम पांच सौ रूपए कमाए। नीलकंठ खाना खाने बैठ जाता है। पिताजी कहाँ है खाना खाते खाते बोला।

माँ खुश होकर बोली चलो अच्छा हूंआ वोह सो रहे है।

नीलकंठ सोने चला जाता है, और सोने से पहले हाथ जोड़कर भगवन से बोला ;- हे प्रभु तेरी मेहेरबानी, तू ही सब कुछ करता है,तू ही रुलाता तू ही हसाता है।और अपनी जेब से और कुछ दान के पैसे निकालता है और हाथ जोड़कर बोला :- हे प्रभु, आप ऐसे ही मूल देते जाओ और बयाज लेते जाओ। इसीलिए सब लोग आपको भवान कहते है। 

नीलकंठ की बढ़ती कमाई को देखकर दोनों भाई जलने लग जाते है और बड़ा भाई राजू :- तू जिंदगी में कभी नहीं सुधरेगा, तू जिंदगी में कभी इंसान नहीं बन सकता। अगर तुझे हमसे रिश्ता रखना है तो इस बाप को छोड़ना होगा डालना होगा। यह बाप हो पाप है मैंने बदल दिया राजेश ने बदल दिया अब तू भी बदल दे। नीलकंठ जोर से एक तमाचा मारकर बोला :- 

इस दुनिया में तुझसे घटिया इंसान मैंने नहीं देखा, जो अपना बाप बदल सकता है और मुझे बदलने को कह रहा है। बाप तोह कुत्ते बिल्ली भी नहीं बदलते है, तू इंसान होकर बदल रहा है, तू इंसान भी नहीं जानवर भी नहीं| मै ऐसा नहीं कर सकता, मै सब कुछ बदल देने की हिम्मत रखता हूं मगर बाप नहीं। बाप बेटा बदल देता है, बेटा बाप नहीं। मै लुगाई चार बदल सकता हूं, भाई सौ बना सकता हूं, भाभी लाख बना सकता हूं, मगर बाप दूसरा नहीं बाप एक ही होता है सबका, माँ एक ही होती है है, जानवरो की भी, नालायक डूब मर कही चुल्लू भर पानी में, बे शर्म जाहिल गवार पढ़े लिखे, मै एक लेखक हूं, मै समाज सुधारना चाहता हूं, तू मुझे बिगड़ रहा है, नालायक, जाहिल चार पैसे क्या आ गए तू सब कुछ भूल गया। माँ के हाट की रोटी बाप का प्यार मन की उन्होंने कुछ नहीं कमाया, मगर कुछ बिगाड़ा भी नहीं। तुम्हे पढ़ा लिखा कर इंसान बना दिया, जवान कर दिया। नमकहराम निलज नासमझ, तूने यह सब सोच भी कैसे लिया। मन हमारे मन नहीं मिलते, इसका मतलब ये तो नहीं, हमारा खून भी बदल गया, हमारी भाषा भी बदल गयी, संस्कार ही बदल गए, माँ माँ नहीं, बाप बाप नहीं, आज से पहले तुमने छोड़ा, आज मै तुम्हे छोड़ रहा हूं, माँ बाप नहीं जाओ मर गए हम तीनो।

 नीलकंठ अपनी सारी कमाई अपने पिताजी को देता है कभी कुछ नहीं पूछता है चाहे कुछ भी हो।

एक दिन नीलकंठ के रिश्ते के लिए बात चलती है, उस वक्त वोह घर पर नहीं था। उसके आने पर माँ बोली :- 

 बेटा तेरे रिश्ते के लिए लड़की वाले ए थे, तेरा क्या विचार है ? नीलकंठ अपनी माँ को समझते हूंए बोला :- 

माँ तू क्यों अपने बुरे दिनों को दावत दे रही है, पहले दो शादी करा देने पर भी पेट नहीं भरा, फिर इस चक्कर में पड़ गयी और इस चक्कर में मुझे भी फसा रही है, मेरी मान मन के दे और मुझे खुश रहने दे। मुझे और अपने आप को जीते जी मत मार, काम धंदा बड़ी मुश्किल से पटरी पर आया है। मै इसे खोना नहीं चाहता, आजकल इन लड़कियों को को समझाना और समझना भगवान् को नीचे लेन के बराबर है। आये तोह आये नहीं आये तोह नहीं आये और फिर अपनी अपनी किसमत। सुधि कुल्हाड़ी कपडा धोये राम करे सो होये।

माँ ने कहाँ मतलब;- 

मतलब यह है हमे पता है मुसीबत आने वाली है। फिर भी हसते हसते अपने अपने घर ले आते है और फिर रट है अपनी अपनी किसमत को कोसते है। करेला खाओ और आम बताओ नीबू खाओ और मौसमी बताओ, इसका मतलब ये है।

माँ :- मगर बेटा हमारा भी तोह कुछ फर्ज बनता है तेरे लिए, तू मेरी बात मान और एक बार लड़की देख ले। हां या ना बाद में करना, हर लड़की एक जैसी नहीं होती है मै भी तो कभी लड़की ही थी। तेरी माँ बाद में बानी हूं।एक औरत पहले लड़की, फिर पत्नी, फिर माँ, फिर सास, फिर दादी बनती है।एक घर चलने के लिए शादी जरूरी है। मेरे बाद तेर कोण ध्यान रखेगा, मै हमेशा जिन्दा नहीं रहूंगी। दूध गाय से घी दूध से निकालता है, अगर हम गाय के सींघ से डर गए तोह दूध कहाँ से आएगा, समझा।

नीलकंठ :- ठीक है, देखते है, फिर मिलते है और फिर सोचते है, नीलकंठ रात भर सोचता रहा \ उससे क्या बात करनी है, करनी भी है या नहीं और अगले दिन सब परिवार सहित मिलने जाते है और लड़की सामने आती है। लड़की ठीक ठाक सुन्दर होती है, मगर बात तो करनी ही थी \ लड़की की माँ बोली :- चाहो तो दोनों अलग अपनी अपनी मन की बात कर सकते हो वो दोनों अलग कमरे में चले जाते है।

नेलकंठ इधर उधर देखकर बोला :- 

मै आपसे शादी नहीं करना चाहता हूं मालादेवी 

लड़की बोली :- मगर क्यों ? मुझ में क्या कमी है ?

नीलकंठ :- बात कमी होना या न होना नहीं है, बात कुछ और है।

माला :- क्या बात है ? अपने मन की बात कहो।

नीलकंठ :- मन तोह कुछ ओर चाहता है, जिंदगी कुछ ओर, मेरे घर में दो बड़े भाई है, उनकी बीवियों ने घर का नाश कर दिया है। जब से उनकी शादी हूंई है, तब से हम अलग अलग हो गए है, इसका सबसे बड़ा सा कारण शादी ही है।

माला :- हर लड़की एक जैसी नहीं होती। माला डरती डरती बोली :- मेरे एक सवाल का जवाब दोगे ?

नीलकंठ :- बोलो क्या बात है ?

माला :- मई सुन्दर नहीं हूं ? या आपको पसंद नहीं हूं ? या आप किसी और को चाहते हो ? 

नीलकंठ :- ये बात नहीं है, सुन्दर तोह हमारे माँ बाप भी नहीं है मगर वो प्यार से रहते है। मैंने आज तक किसी को नहीं चाहा, तुममे ऐसी कोई कमी नहीं है, दोष तुम्हारा नहीं है, सुंदर तो एक रंडी भी होती है मगर उससे शादी हो सकती। मई सुंदरता को नहीं चाहता, मुझे विश्वास चाहिए, जो कही नहीं मिलता,वरना मई उसे खरीद लेता और वो तुम्हे दे देता मगर ऐसा हो नहीं सकता,सुंदरता जीवन नहीं है।

माला कुछ सोच कर बोली :- जैसी तुम्हारी कहानी है, वैसी मेरी भी कहानी है, मेरे भी दो बड़े भाई है वोह भी हूं ब हूं ऐसे ही है। वो मेरे मम्मी पापा से दूर दूर रहते है, मगर मई ऐसा नहीं करुँगी। आपकी माँ मेरी माँ से काम नहीं होगी, जब दो दुखी मिलते है तो एक सुख पैदा होता है, मेरा दुःख तुम्हारा दुःख एक जैसा है। मेरी बात मानो हा कर दो, हम दोनों सुख का जीवन जियेंगे।

नीलकंठ अपनी आँखे झुखा लेता है और बोला :- इतनी जल्दी मत करो, दो तीन दिन सोच कर देखो।

माला;- मेरी तरफ से हां है, बाकी तुम्हारी मर्जी, दुःख के बाद सुख आता है। सभी बड़े लोग कहते है, काळा गोर हमारे पापा मम्मी है सुंदरता मन के भीतर होती है, मई भी बुखी हूं इस घर से। हम दोनों मिलकर अच्छा घर बनाएंगे, जिसमे कभी झगड़ा नहीं होगा।

नीलकंठ :- बात झगडे की नहीं है, बात विश्वास की है, मई कैसे विश्वास कर लू ? दिल की बात, मन मानने को तैयार नहीं है। सब तरफ धोका ही देखा है।

 माला :- मन को समझके देखो मन मन जायेगा, मन तो बे लगाम घोडा है, मन तो दौड़ना ही जानता है, रुकना नहीं, रुकता जब है, जब समझ जाता है, वरना वो तो इधर उधर भटकता ही रहता है|

नीलकंठ :- क्या तुम मेरी माँ को अपनी माँ बना सकती हो ?, मेरी एहि एक परेशानी है। 

माला :- एक बार मौका तो देकर देखो, मई एक को सौ के बराबर बना दूंगी।

नीलकंठ एक लम्बी सांस लेकर खड़ा होकर बालो :- 

तो ठीक है, चलो बहार चलते है, सब हमरा इंतज़ार कर रहे होंगे, मै पूरा जवाब एक हफ्ते बाद दूंगा।

दोनों बहार आ जाते है, उनसे सभी ने पुछा :-क्या सोचा ?

नीलकंठ ने कहा :- इनको भी और मुझे भी एक हफ्ता चाहिए, जवाब देने के लिए, ये दो जिंदगी और दो बड़े परिवारों का मामला है, इतनी जल्दी मत करो। माला नीची नज़र से देखती रही और सोचने लगी, इसने मेरे बारे कुछ नहीं पूछा, लगता है जिंदगी से धोखा खाया है, मन चाहता है और नहीं भी मगर मै पीछे नहीं हटूंगी, इससे अच्छा दोस्त नहीं मिलेगा,हे प्रभु मेरी रक्षा करना, मुझे ये ही मिले और कोई नहीं और नीलकंठ अपने घर आ जाता है और इसके बाद शादी होना मंजूर हो जाता है। दोनों तरफ बराबर तेयारिया शिरू हो जाती है, दो महीने बाद दोनों की शादी हो जाती है। सुहागरात होती है, दोनों ही अपने अपने दुःखो और खुशियों के भवर में फस जाते है। जैसे नार्मल घरो में होती है, नीलकंठ अपने कमरे में जाता है जहा माला बैठी होती है।

 नीलकंठ घुंगट उठाने से पहले बोला :- मै तुम्हे कोई बड़ा तोफा नहीं दे सकता, मगर मै तुम्हे एक विश्वास और जिम्मेदारी दे रहा हूं, मै कोई रहीस बाप का बीटा नहीं हूं, मै पटरी लगता हूं मेरे पास कुछ नहीं है, मगर मेरे पास जो है वोह जरूर दूंगा, अपना प्यार और विश्वास, जिसका कोई मोल नहीं है।

माला ने घूँघट में से जवाब दिया :- प्यार ही जिंदगी है, प्यार ही खुदा है, प्यार ही भगवान् है, जिसे ये मिल जाये उसे क्या कमी, मै भी आपको कुछ नहीं दे सकती, सिवाए प्यार के, आओ मेरे पास|

नीलकंठ उसका घूँघट उठाने से पहले बोला, मै तुम्हारी इस शान में आज कुछ शेर सुनाता हूं जो मेरे लिए अनमोल है, जो मैंने आज तक किसी को नहीं सुनाये, माला चुप रहती है और मन ही मन बोलती है जो किसी का नहीं वोह मेरा है।

 मंजिले आसान हो तो ठोकरे किस बात की,दोस्ती हर कोई निभा दे तो दुश्मनी किस बात की 

अठारा वर्ष की तामसी उमरया, यौवन तेरा मचले जब से तुझे देखा मैंने दिल मेरे यु मचले 

बम जैसी तुम हो, तिल्ली जैसे हम तो ये सनम क्यों न आग लगे 

फिर वोह दोनों एक हो जाते है, रात गुजर जाती है, इस तरह वोह दोनों दो जिस्म एक जान हो जाते है, पता ही नहीं चला की शादी के पांच साल गुजर गए, उनके घर दो बेटे हूंए। माँ बाप का मन और घर दोनों माला मॉल हो गए। एक दिन नीलकंठ की माँ अपने बेटे से बोली :- बीटा मै न खेती थी हर इंसान एक जैसा नहीं होता,तुझे पत्नी और हमे बहूं अच्छी मिली, अब तो तेरे दो दो बेटे हो गए है, पैसा तो आता जाता रहता है| मगर नीलकंठ वो दिन नहीं भूलता, जिस दिन माँ ने हाथ में भीख का कटोरा दिया था और बोला :- माँ मै इतना पैसा कामुनगा की तुझे इन कागज के नोटों से तोल कर दान कर दूंगा, मै तेरे अलावा किसी और को याद नहीं करता, बस तेरे बारे में ही सोचता रहता हूं, कब वो दिन आएगा ? 

नीलकंठ को अचानक एक बात याद आता है और बोला :-

 हा माँ, गाँव से एक खबर आयी है, बाबा गाँव में बीमार है, उन्हें कैंसर हूंआ है, आपको और पिताजी को जाना चाहिए, आखरी बार उनसे मिल लो, आखिर बाप तो बाप ही होता है।

माँ :- कब आयी ? 

नीलकंठ :- आज ही आयी थी और आज ही जाना है।

 नीलकंठ दोनों को बस में बैठा सेठा है, वो गाओं चले जाते है, तीन चार दिन वापस आते है।

नीलकंठ अपने पिताजी और माँ से पूछता है :- क्या हाल ही बाबा ठीक है ? ज्यादा कुछ 

पिताजी बिच में ही बोल पड़े सीधे साढ़े स्वभाभ से :- हा बीमार है अब तो नहीं बचेंगे, उन्हें कैंसर हो गया है, खाना पीना छूट गया है, जो दिन है बस वो ही है, उन्होंने कोई प्यार या अफ़सोस जताने वाली बात नहीं की। 

नीलकंठ चुप रहा, दो दिन बाद बोला :- पिताजी मै भी गाओं जाऊंगा और बाबा से मिलकर आऊंगा, पता नहीं फिर कभी मिलना हो या न हो।

पिताजी बोले :- हा हा जा मिलके आ।

नीलकंठ अगले दिन चल देता है, बस में बैठकर, बस उसे शाम को चार बजे पहूंँचाती और दस मिनट एपिडल चलकर गाँव के अंदर चला जाता है। वहा उसे अपने बचपन का साथी मिल जाता है, और बोला :- 

भोले बता गाँव के कैसे हाल चाल है, मै तो दस साल बाद आया हूं, सुना सब कैसे है।

भोला :- यार वैसे तो सब ठीक है, बस तेरे बाबा बीमार है, उनका पता नहीं, कण प्रभु को प्यारे हो जाये। 

नीलकंठ :- अरे यार नहीं बाबा ठीक हो जायेंगे हम है न,नीलकंठ घर में घुस जाता है, घर के अंदर थोड़ा थोड़ा अँधेरा होता है, शाम की वजह से नीलकंठ बोला ;-

बाबा राम राम, दादी उनके पास बैठी पंखा हिला रही थी, बाबा ने पहचाना नहीं और बोले :- कोन है ? 

बाबा मै नीलकंठ, अरे बीटा मैंने न पहचानो, आ मेरे पास आ के बैठ और तू जेक पानी ला, बड़ी दूर से आयो है छोरा। नीलकंठ पैरो की तरफ सामने खाट पर बैठ जाता है।

बाबा :- बीटा मुझे कम दीख रहो है और कम भी सुने है नीलकंठ और थोड़ा आगे होक बैठ जाता है और बोला :- बाबा क्या हाल है|

 बाबा ने हस के तड़का मारा और बोले :- अरे लाला अब खा जीनो, अब तो मर जानो ही ठीक है। डॉक्टर ने तोह जवाब दे दियो है,अब कोंसो हल जोतने है, तू हमारी छोड़ अपनी कह। बहूं बालक राजी ख़ुशी है न ?

नीलकंठ :- हां बाबा सब ठीक है, मै तो आपका हाल जानने आया हूं।

नीलकंठ घर और बाबा को देखकर बड़ा दुखी हूंआ, घर में लाइट नहीं, पानी ढंग का नहीं, रोटी टाइम पर नहीं बड़ा दुखी हूंआ, तब तक दादी पानी लेकर आ गयी।

बेटा पानी पी ले यहाँ तो ऐसो ही पानी है।

 नीलकंठ :- नहीं दादी पानी अच्छो है, जैसो देस वैसे भेस और दादी आप अपनी कहो, कैसे टाइम पास हो रहा है ?

दादी :- तेरे बाबा के सहारे सब टाइम कट जातो है, ये तो तोये दीख रहा रहा है, कभी लाइट आती है तो कभी नहीं आती है, ये दिल्ली तो नहीं है, मन की मर्जी है लाइट की।

बाबा ;- जा थोड़ी चाहा बना ला,थोड़ी मै भी पी लूंगा, अपनी भी बना लियो, बाद में रोटी सब्जी।

दादी चली जाती है, नीलकंठ बाबा से बाते करता रहता है, बाबा थड़आके मारकर हस्ते है, ये उनकी पुरानी आदत थी, कड़क बोलना बीमारी को बीमारी नहीं समझना, थोड़ी देर में दादी चाहा लेके आ जाती है। रात को नीलकंठ वही सोने की कोशिश करता है, एक तरफ दादी,दूसरी तरफ बाबा सोते है, सोते सोते अपने बाबा से बोला :- 

बाबा आप मेरे साथ दिल्ली चलो, मै आपकी सेवा करूँगा और अच्छे डॉक्टर को भी दिखा दूंगा, बाबा तड़क कर बोले :- तेरा बाप तो एक बार भी नहीं बोला, तू मोये ले जायेगो यहाँ से ? मै नहीं जाउंगो|

नीलकंठ :- कोई बात नहीं मै आपका पोता हूं मेरा भी तो कोई फर्ज बनता है, जो बाप नहीं करता वोह बेटा करता है।

बाबा :- न छोरा मै बिकुल न जाऊंगा, अगर तेरा बाप लेने आएगा, तो चलूँगा।

नीलकंठ :- तो ठीक है,वो आएंगे तो चलोगे। नीलकंठ बाते करते करते सो जाता है, सुबह उठकर जाने की तैयारी करता है। दादी चलते चलते बोली :- ले छोरा तेरे लिए चार रोटी बांध दी है रास्ते में खा लियो बड़ी दूर जाना है।

नीलकंठ दादा दादी के पैर छूता है और चल देता है, दादा दादी बोले जरा ध्यान से जाना। नीलकंठ वो ही शाम के चार बजे अपने घर पहूंँचता है दो मिनट की सांस नहीं लेता है और अपने पिताजी से बोला :- आप जाकर बाबा को दिल्ली ले आओ, वो वहा पर बहूंत परेशान है। वहा पर लाइट पानी कुछ भी अच्छा नहीं है, यहाँ सब कुछ है। वो वहा पर टाइम से पहले मर जायेंगे।

पिताजी अपने गुस्से में बोले :-मै नहीं जाऊंगा और नहीं जाऊंगा।

नीलकंठ :- मगर क्यों ?

पिताजी :- मेरी मर्जी।

नीलकंठ :- वोह तुम्हारे बाप है, तुम्हारे बेटा नहीं।

पिताजी :- मुझे उन्होने घर से निकला था।

नीलकंठ :- तो क्या हूंआ, वो बाप है कुछ भी कर सकते है।

पिताजी गुस्से में तड़क कर बोले :- तुझे लाना है तो ले आ, मगर मै लेने नहीं जाऊंगा।

नीलकंठ ;- वो बड़े है, कुछ भी करे ठीक है, मगर आपको शोभा नहीं देता, लोग क्या कहेंगे ?

पिताजी :- मुझे उनकी परवाह नहीं \

नीलकंठ :- अगर अपनी सेवा कहते है, तो आपको उनकी सेवा करनी पड़ेगी, ये ही नियम है। बाप बाप होता बेटा बेटा ही होता है।

पिताजी :- तू जेक ले आ मै नहीं रोकूंगा।

नीलकंठ :- मै नहीं जाऊंगा आपको ही जाना पड़ेगा, इसमें मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा न ही बनेगा, जो बिगड़ेगा वो आपका ही बिगड़ेगा। 

दोनों बाप बेटे में खूब तू तू मै मै होती है, माँ दोनों को देखती रहती है, मगर कोई हल नहीं निकलता और दो महीने बाद बाबा चल बसे, मगर पिताजी नहीं माने, कुछ महीने के बाद दादी भी चली गयी, मगर उस बाप को जरा भी शरम नहीं आयी। सब लोग अपनी अपनी ही सेवा कहते है है, और जैसे को तैसा हूंआ, उनको उनके दोनों दोनों बड़े बेटे छोड़कर चले गए। नीलकंठ के पिताजी को कैंसर हूंआ और मर गए। माँ रह गयी, एक दिन नीलकंठ बड़े पैसे वाला बन जाता है, मगर रहता सीधे साढ़े भेस में है, जिसे कही भी कोई भी घमंड नहीं होता है, एक बार अपने घर पर राम कथा का आयोजन कराता है, सभी रिश्तेदारों मित्रो को बुलाया और अपनी माँ को नोटों से तोलकर दान कर देता है। और कुछ समय के बाद माँ भी चली जाती है, भगवान् को प्यारी हो जाती है, और उनके दोनों बड़े बेटे अपनी माँ बाप को घर का दरवाजा नहीं दिखते है। नीलकंठ अकेला रह जाता है, माला अपने ाप्ति को बहूंत प्यार करती है, और समझाती है, भगवान बड़ा है हम नहीं। आप अपने बच्चो पर ध्यान दे, उन्हें अपने पिता जैसा नहीं बनाना है। हम खुद बदलेंगे और औरो को भी बदलेंगे, बदलाव जरूर आएगा।

एक दी नीलकंठ मेट्रो में जा रहा था, जेंट्स सीट पर आँख बंद कर के बैठा था, एक लेडीज आयी मोती सी, उसे सोता देखकर चुटकी बजाकर उसे उठाने की कोशिश करती है, मगर वोह तो सो रहा होता है, सुन नहीं पाता और जोर से एक तमाचा माए देती है और हड़बड़ा कर उठ जाता है और बोला :-

क्या बात है ? तमाचा क्यों मारा ? 

 लेडीज ;- मैंने कहा उठो मुझे बैठना है, लेडीज फर्स्ट यू गो।

नीलकंठ ;- मगर मै तो गेट्स सीट पर बैठा हूं, लेडी बोगी आगे है \

लेडी : मगर मै यही बैठूंगी।

नीलकंठ ऊँगली दिखा कर बोला जोर से :- लेडीज बोगी आगे है तुम लेडी हो इसलिए प्यार से समझा रहा हूं, वार्ना एक तमाचा मरूंगा कपड़ो में हगति नजर आओगी, चलो आगे बढ़ो। लेडी धमका कर बोली :- मै यही बैठूंगी तुझे उठना पड़ेगा। उस लेडीज से डरकर कोई कुछ नहीं बोला और ऊँगली दिखा कर बोली आउट आउट।

दोनों में तू तू मै मै होती रही, मगर दोनों माने, नीलकंठ को गुस्सा आ गया और हद को पार कर दिया, और एक तमाचा जड़ देता है वोह और भड़क गयी, अपनी बेइज्जती देखकर और बोली :- तूने मुझे तमाचा मारा अब देख मै क्या करती हूं। मै अभी पुलिस को बुलाती हूं और तू जेल जायेगा, एक लेडी पर हाथ उठता है।

नीलकंठ जोर से हा बोला,ले मै नहीं डरता, मै अपनी सेना बुलाता हूं अगले स्टेशन पर पुलिस आ जाती है, पुलिस आदर घुसती है और दरवाजा बंद होकर गाडी चल पड़ती है।

पुलिस बोली : दोनों चुप हो जाओ और एक एक करके बोलो, गाडी अगले स्टेशन पर रूकती है।

नीलकंठ :- सर मई सीट पर बैठा और सो भी रहा था, मै उस सीट पर अभी भी बैठा हूं और इस लेडी ने मुझे तमाचा मार दिया, ये कौन सा कानून है, इन सब में किसी से भी पूछ सकते हो, मेरी क्या गलती लेडी बोगी आगे है, वहा जाये, सब एक साथ बोल पड़े ये सही है, ये सब हमारी मजबूरी और लेडीज फर्स्ट का नाज़ायज़ फायदा उठा रही है। हम भी टिकट लेते है, ये हमारा हक बनता है, पहले आओ पहले पाओ। पुलिस बोली : आप सब चुप हो जाओ, साइलेंट साइलेंट और अब आप बोलो, लेडीज से कहा।

लेडी :- हम अबला है, हमे हमे आराम की जरुरत है, हमे घर जेक काम करना पड़ता है, आप अबला है तो घर बैठो हम क्या करे, अपनी पर्सनल गाडी ले क्र चलो, हमे क्यों परेशान करती हो।

लेडी :- मै ऑफिस में आठ घंटे काम करके आ रही हूं और घर जा क्र के भी करना है \

नीलकंठ :- तो मै क्या करू ? हम भी काम करते है, चोरी नहीं। दोनों में सब के सामने लड़ाई बढ़ जाती है और पुलिस नीलकंठ को दबाती है और पकड़ ले जाने की कोशिश करती है। नीलकंठ भगवान् को याद करता है और जोर से बोलता है, जय श्री राम, जय हनुमान और बहूंत सारे वानर आ जाते है, मेट्रो का दरवाजा खुल जाता है, पुलिस नीलकंठ को बहार निकल लेती है और दरवाजा बंद हो जाता है। वो लेडी अंदर रह जाती है, मेट्रो को चारो और से वानर घेर लेते है, मेट्रो को चलने नह देते है और मेट्रो वही जाम हो जाती है उसे आगे चलने नहीं देती, लेडी को जोर जोर से वाशरूम आता है और वोह रोने लगती है, मुझे जाने दो, मुझे जाने दो। पुलिस वाले भी मेट्रो का दरवाजा खुलवाने की पूरी कोशिश करते है, मगर वोह भी विफल हो जाते है। मेट्रो जाम हो जाती है, आगे पीछे नहीं होती। पुलिस वाले नीलकंठ से पूछताश करते है और मरते भी है,इन वानरों से तुम्हारा क्या रिश्ता है ?, तेरी आवाज़ सुनकर दौड़कर आये है, जबकि यहाँ दूर दूर तक बन्दर नहीं रहते। 

नीलकंठ गुस्से में बोला:- ए अफसर ये बंदर नहीं वानर है, मेरी गलती न होने पर भी, उस लेडी ने मुझे मारा और आपने भी मारा, मेरी क्या गलती ? मै सीट पर बैठा ही तो था, सीट बैठने के लिए होती है, लेडी गेट्स का क्या मतलब ? पहले आओ पहले पाओ, ये ही मेरा मंत्र है, लेडीज और सब गेट्स का भी होना चाहिये, लेडीज गेट्स कानून की नज़र में बराबर है, कोई काम जोर नहीं, कोई छोटा बड़ा नहीं, कोई अबला नहीं।

थोड़ी देर बाद उस जगह का डी सी पी आ जाता है, मामले को सँभालने के लिए, मगर वानर किसी की नहीं सुनते और उस लेडी को वो वानर डाट दिखा दिखाकर डरा रहे थे, वो रोटी जाती है, कान पकड़ती है, उठक बैठक भी लगाती है, मगर कोई सुनवाई नहीं होती, पुलिस भी थक जाती है, नीलकंठ घर नहीं पहूंँचता। घरवाले घर पर परेशान होते है, टीवी पर बार बार खबर आती है, मेट्रो जाम हो गयी, कुछ वानरों की वजह से ये सब एक आदमी की वजह से हो रहा है। जिसका नाम नीलकंठ है, देखने में भोला भाला, मगर है बहूंत चालक। सरे वानर उसके कहने पर आये है और उत्पात मचा रहे है, तीन घंटे से मेट्रो एक ही जगह पे कड़ी है, नीलकंठ किसी के सवालो का कोई जवाब नहीं दे रहा है। देखते है आगे क्या होता है ? मनमानी या रज़ामंदी, ? सोचो और सोचो। ये वानर आये कहा से, दिल्ली में तो लंगूर है नहीं, अचानक आये आये तो आये कहा से ? ऊपर से या नई नीचे से ? या फिर स्वयं हनुमान जी प्रकट हूंए है ? हमारे दिमाग ने काम करना बंद क्र दिया है, आज से पहले कभी नहीं हूंआ,ऐसा आतंक, अभी अभी ताज़ा ताज़ा खबर निकल कर आ रही है| नेलकंठ और पुलिस दोनों राज़ीनामा कर रहे है, इसमें हमारे नेताजी,मंत्रीजी जोड़तोड़ की राजनीती कर रहे है। मन जा रहा है, इस लेडी को सजा डी जाये, हम आपको यह फोटो दिखा रहे है, उसका कहना है इस लेडी ने मेरे साथ मार पीट की है, बिना कारण के पुलिस पूछताश कर रही है, सुने ध्यान से इनकी बाते, सावधान होकर, सब काम छोड़कर सुने, खाना पीना छोड़कर। डी सी पी बोले :- आप कहते क्या है ? ये बन्दर आपके है ?

नीलकंठ :- बन्दर नहीं वानर बोलो वानर। 

डी सी पी:- सॉरी वानर, ये आपने बुलाये है ?

नीलकंठ जोर से बोला :- है मैंने इनका आवाहन किया है, मेरे साथ अन्याय हो रहा है, इस लेडी ने मुझे पहले मारा है।

डी सी पी :- अब आप क्या चाहते है ?

नीलकंठ :- मै इसे एक तमाचा मरण चाहता हू।

डी सी पी :- एक तमाचा तो आप पहले ही मार चुके है, अब क्यों ?

नीलकंठ :- मेरी मर्ज़ी, मै ये करि, मै वो करू मेरी मर्ज़ी।

डी सी पी नीलकंठ को एक तमाचा मारता है, डी सी पी :- सॉरी कानून ऐसे नहीं चलता, ये नहीं चलेगा, आपकी मर्ज़ी से और कुछ बोलो, जो सबके हित में हो, साप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे,आप पढ़े लिखे इंसान है, कोई जवार नहीं, आप एक व्यापारी है खून का बदला खून नहीं होता, आप कोई और बात बोलो मै मान लूंगा। मेट्रो में बहूंत सारे लोग फेज हूंए है इनको भी परेशानी हो रही है, छोटे छोटे बच्चे भी है, रात होने को जा रही है, मुझे भी यहाँ ये एक घंटे से जयादा हो गया है, मुझे और भी काम है।

नीलकंठ :- मैंने कब कहा है आप रुको, आप जा सकते है, मै यही बैठा रहूँगा साड़ी रात और ये वानर ये सब लोग।

डी सी पी को गुस्सा आ जाता है, आखिर आप चाहते क्या है ? तमाचे से क्या हो जायेगा ? अगर कोई अंदर मर गया तो आपको जेल हो जाएगी, मेरी बात मनो राजीनामा कर लो। इसके अलावा आप जो भी बिलोगे मै मान लूंगा। बिना सोचे समझे।

नीलकंठ थोड़ा ठंडा होकर बोला :- ठीक है, मेरी चार शर्त है, बोलू या नहीं ?

डी सी पि सोच में पड़ जाता है, मैंने ये क्या कह दिया, फिर थोड़ा सोचकर बोला ;- चलो ठीक है, बोलो।

नीलकंठ :- मेरी पहली शर्त ये है, ये लेडी अपने इन ही कपड़ो में हागेगी, टट्टी करेगी, पेशाब करेगी और इन ही कपड़ो से घर तक जाएगी। कोई भी ऑटो बस टैक्सी इसको नहीं बैठायेगी।

डी सी पी एक दम उबल जट्स है, और एक तमाचा जड़ देता है, फिर ठंडा होकर बोला :- सॉरी ऐसा नहीं हो सकता, ये तो गलत है, ये दस किलो मीटर कैसे पैदल जाएगी ?

नीलकंठ :- पहले उससे पूछो, उसे मंजूर है या नहीं ?

डी सी पी :- पहले तुम इन वानरों को हटाओ और सब लोगो को अपने अपने घर जाने दो हम बैठकर फैसला क्र लेंगे।

नीलकंठ :- मगर वो लेडी नहीं जाएगी, उसको मेरे वानर घेर क्र रखेंगे। नीलकंठ जोर से बोला दोनों हाथ उठाकर :- जय श्री राम जय हनुमान।

सारे वानर हट जाते है, मेट्रो के गेट खुल जाते है , मेट्रो खली होक आगे चली जाती है, सब लोग अपने अपने घर को भागते है, डर की वजह से, कहि दुबारा बंधी ना बन जाये ? डी सी पी रहत की सास लेता है और दो चाय लाने को कहता है।

हवालदार दो चाय ले कर आओ, साथ में मट्ठी, अब बोलो दूसरी शर्त दोनों चाय पीते है।

नीलकंठ :- पहले उस लेडी से पूछो वो क्या चाहती है ? वो लेडी हाथ जोड़कर बोली :- मुझे सब शर्त मंजूर है।

नीलकंठ :- घर तक पैदल जाओगी।

लेडी :- हां है जाउंगी।

नीलकंठ :- कपड़ो में टट्टी करोगी।

लेडी :- वो तो मेरी पहले ही निकल गयी।

नीलकंठ :- अब तुम जाओ, मगर ये याद रखना हमेशा के लिए, किसी आदमी को तमाचा नहीं मारना, वार्ना एक ही तमाचे में जान लेगा और जितनी तेरी सहेली है उनको बता देना, अब कानून बदल रहा है, अगर चप्पल मरोगी तो घुमाकर जूता पड़ेगा, आज के बाद मेट्रो बस ऑटो टैक्सी में नहीं बैठोगी सिर्फ अपने निजी वहां में ही सफर करोगी, वार्ना तू और तेरी सहेली ऐसे ही पिटेगी, कोई तुमसे मार नहीं खायेगा, गलती भी करती हो और हट भी चलती हो और अब आप ये कानून बदल दो, किसी लेडी पर हाथ नहीं उठाओगे, अगर वो हमे मारेगी तो हम भी उसे मारेंगे, चोंगे नहीं, ईट का जवाब पत्थर हाथो हाथ, यह मेरी दूसरी शर्त है, अगर मेरी बात नहीं मानी तो अच्छा नहीं होगा, बहूंत सह लिया सर झुका कर अब तो बराबरी होगी, ले के दे के।

डी सी पी :- अगली शर्त बोलो।

नीलकंठ :- कोई लेडी बस मेट्रो टैक्सी में सफर नहीं करेगी, अगर आराम चाहिए तो अपनी गाडी लो और खुद चलाओ या फिर घर में बैठो, उसका पति उसे कमाकर दे रहा है, अगर शादी की है तो उसका खर्च उठाना उसका पहला फर्ज है, उसने उसे वचन दिया है, कमाकर खिलाने का, कोई अहसान नहीं कर रहा है, उसका घर चला रही है, उसके बच्चा पाल रही है, उसके माँ बाप की सेवा कर रही है कोई मज़ाक नहीं है।

डी सी पी सुनता रहता है, फिर बोला अगली शर्त।

नीलकंठ :- जितनी भी शादी शुदाा औरते है, उनसे उनकी नौकरी वापस ले लो, उनका काम घर चलना है और आदमियों का काम है कमा के लाना, घर तब ही बराबर चलता है, केवल कुवारी लड़किया ही नौकरी करेगी, या वेवा जिनका कोई कमाने वाला नहीं है,शादी से पहले माँ बाप को धमकी देती है हम अपना कमा कर खर्च कर रहे है, तुमसे तो नहीं मांग रही और शादी के बाद पति को धमकाती है, तुम्हारे बाप की कमाई नहीं खा रही हूं, अपना कमाती हूं, मई जल्दी जाती हूं और देर से आती हूं, आकर थक जाती हूं, तुम्हारी माँ खाना कपडा झाड़ू भी नहीं कर सकती, मोती भेस काली भेस वगैरह वगैरह, और कोई भी लड़का नौकरी करने वाली लड़की से शादी नहीं करेगा और अगर करेगा तो उसको उसकी नौकयी छुडवानी पड़ेगी, वार्ना उसकी नौकरी ख़तम हो जाएगी, पत्नी कयेगी पति घर का सारा काम करेगा, बच्चे भी खुद ही पैदा करेगा और सभी शादी कोर्ट से रजिस्टर होगी केवल पंडित मौलवियों की बात नहीं मानी जाएगी, ये मेरी पक्की शर्ते है, माननी ही पड़ेगी।

डी सी पी :- अगली नई शर्त बोलो।

नीलकंठ :- आरक्षण हटाना होगा, जो पढ़ेगा वो आगे बढ़ेगा, कोई एस सी, ओ बी सी, वि आई पी कोटा नहीं चलेगा, मेहनत करे जनरल वाला और मलाई खाये कोटे वाला, ये नहीं चलेगा, और सुनो, कोई लड़का या लड़की तीन बार तलाक देकर चार बार शादी कर सकता है, मगर उन्हें ये बताना होगा, कोर्ट को कि वो किस वजह से तलाक दे रहे है और दुसरितीसरी शादी केने पर, उसकी फोटो लगनी होगी, जिसे तुम तलाक दे रहे हो और अगर उनके घर में कोई बच्चा हो जाता है तो उस बच्चे को माँ या बाप दोनों में से कोई लेना छठा है तो उस बच्चे का खर्च वो माँ या बाप को ही उठाना पड़ेगा और अगर दोनों ही नहीं लेना चाहते है तो उस बच्चे को सर्कार अपनी जिम्मेदारी पर वो बच्चा उस्सको दे दिया दिया जाये, जिनके घर सालो से बच्चे नहीं है, जो बच्चा गोद लेना चाहते है, अगर एक शादी होकर तलाक हो जाये तो, वो दुबारा शादी करना चाहे तो उनकी शादी नहीं होनी दी जाये, ये कानून है कोई मजाक नहीं और तलाक तीन महीने के अंदर अंदर हो जाना चाहिए, जिससे समय कि बचत हो और कानून का डर भी होगा। अगर आपने ऐसा नहीं किआ तो ठीक नहीं होगा।

डी सी पी सब कुछ सुन क्र बोला :- ये मेरे हाथ में नहीं है, सरकार के हाथ में है, ये अपील सरकार से करो, मई तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगा, और लोग भी सारे चले गए है, अब यहाँ पर हम चार पुलिस wale और एक तुम हो और कोई नहीं, जाओ तुम भी घर जाओ, वार्ना हवालात में डाल दूंगा, हवालात की हवा खिला दूंगा।

नीलकंठ :- मई जानता था तुम ऐसा ही करोगे, ये मत भूलो मेरे पास बीस लाख वानर है, सारे दिल्ली में छोड़ दूंगा, ये तो सिर्फ एक नमूना है।

डी सी पी :- मुझे धमकी दे रहा है, साले मार मार कर भूत बना दूंगा, ये मेरी शराफत है, मई तुझे छोड़ रहा हूं।

नीलकंठ मुस्करा कर बोला :- मई धमकी नहीं देता, कर देता हूं, जय हिन्द, जय श्री राम, जय हनुमान।

नीलकंठ वहा से चल देता है, माला घर पर इंतज़ार कर रही होती है, इधर उधर टहलकर, बेल्ल बजती है माला दरवाजा खोलती है। आ गए आप, मेरी तो जान ही निकल रही थी समाचार सुन सुन कर, आपको क्या जरुरत पड़ी मारपीट करने की \ माला हाथ पकड़के धक्का मारती है और नादर ले जाती है।

नीलकंठ :- अरे यार मेरी कोई गलती नहीं, उसने मुझे मारा,मैंने उसे मारा और बात बिगड़ गयी। 

माला दोनों हाथ पकड़कर बैठाती है, चलो बैठो मै पानी लाती हूं, फिर खाना, दोनों साथ साथ खाना कहते कहते बाते भी कर रहे थे।

माला :-आपको पुलिस ने मारा ? 

नीलकंठ :- अरे बारिश का रिपटा और पुलिस का पिटा बुरा नहीं मानते, ये तो चलता रहता है|

माला :- जयादा चोट तो नहीं आयी ? 

नीलकंठ :- मुझे नहीं आयी, मुझे नहीं पता।

माला :-मतलब ?

नेलकंठ अपनी आँखे और उंगलिया घुमा कर बोला :- मतलब ये कल पता चलेगा अब मैंने एक जंग छेड़ दी है, नारी या नर।

माला बोली :- दोनों बराबर है,कही नारी गलत है तो कही नर गलत है।

अगले दिन सभी मेट्रो स्टेशनो पर वानरों की भारी भीड़ कड़ी होती है बस स्टॉप पर वनर किसी भी ले को, मेट्रो स्टेशन पर नहीं जाने देते, बसों में नहीं बैठने देते, सब बुरी तरह परेशां है, चारो तरफ अफरा तफरी मची होती है। पुलिस परेशान हो जाती है, वानर सबको इधर उधर भगा रहे है, पुलिस उनके सामने जाने से डरती है, कही काट ना ले, टीवी पर खबर फ़ैल जाती है। केवल जेंट्स ही मेट्रो बस में सफर कर रहे है। जेन्टसो को वानर कुछ नहीं कह रहे है, माला टीवी खोलती है,और सोते हूंए नीलकंठ को जगती है।

सुनो सुनो देखो टीवी पर क्या आ रहा है वानर ही वानर। 

नीलकंठ :- अंगराई ले कर बोला, मुझे मालूम है, कल वाली ही आ रही ही, मेरी शर्त न मैंने का नतीजा है।

माला :- वो कैसे और क्यों ? 

 नीलकंठ :- आजकल हम जैसो की वैल्यू काम हो गयी है, ये लेडीज ज्यादा समझदार हो गयी है , आज के बाद इनकी दादागिरी ख़तम, जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जायेगा। बात मंत्रियो तक पहूंंच जाती है, नीलकंठ को बुलाया जाता है, मंत्रीजी पूछते है, ये क्या हो रहा है, एक दम वानर राज लागू कर दिया ? डी सी पी सब साफ़ साफ़ खोल खोलकर बोलो, ये क्या चाहते है।

डी सी पी :- इनकी कुछ शर्ते है।

मंत्री :- बोलो नीलकंठ बोलो।

नीलकंठ :- सर मै इनको कल खोलकर समझा दिया है।

मंत्रीजी गुस्से में बोले :- अरे यार हम क्या झक मारने को बैठे है ? तूने इसे बता दिया और तूने सुन लिया, मै बिन पैंदी के लोटे की तरह लुढ़क रहा, मै मंत्री नहीं कोई घास खोदा हूं।

नीलकंठ साड़ी बात खोलकर बताता है, सर ये बात है, मंत्री उठकर बोले ये माजरा है, देखो भाई ये तो ठीक नहीं है, एक के बदले में सबको सजा नहीं डी जाती है, तेरी बात कही तक ठीक है मगर परेशानी औरो को भी है, हम उस एक को सजा दे सकते है, जिसने तुम्हे मारा है, ये जायज है अगर कोई लेडी अपनी मर्जी से नौकरी छोड़े तो ठीक है, हम जबरदस्ती नहीं कर सकते, तुम अपने इन वानरों हटा लो, ये हमारा आर्डर है। मै किसी का आर्डर नहीं मानता, मै फिर भी एक बात नहीं मानूंगा, सीट लेना देना, हाट उठाना, गाली देना, चप्पल दिखाना, हाथ क बदले हाथ, गाली के बदले गाली, चप्पल के बदले जूता उसकी वक्त बजेगा।

मंत्री जी :- चलो ठीक है, सबको जाने दो।

नीलकंठ दोनों हाथ जोड़कर आँखे बंद करके बोला :- जय श्री राम जय हनुमान, सारे वानर चले जाते है।

कुछ दिनों के बाद कुछ लेडीज धरने पर बैठ जाती है, रास्ता रोक लेती है, किसी को आने जाने नहीं देती है,नीलकंठ को पता चलता है, वो एक साथ सौ वानर छोड़ देता है, उन वानरों को आते देखकर साड़ी लेडीज उठकर भगति है और सारा धरना ख़तम हो जाता है।

एक दिन नीलकंठ पैदल पैदल अपनी दुकान पर जा रहा होता है, उसी वक्त देखता है जिससे उसकी लड़ाई हूंई थी वो रस्ते में कड़ी होती है होनी कार को लिए, वो नीलकंठ को देखकर सहम जाती है, और हाथ जोड़कर बोलती है :- अब मै कभी मारपीट नहीं करुँगी।

 नीलकंठ हंस कर बोला :- अरे नहीं बहनजी, मै तो वो कब का भूल गया, अब ये बताओ आपको क्या परेशानी है ? मै आपकी क्या मदद करू ?

 वो लेडी बोली :- मेरी गाडी पेंचर हो गयी है और मुझे ऑफिस जाना जरुरी है।

नीलकंठ :- मै एक बात पुछु, तुम्हारे पति और बच्चे है ? 

वो बोली है है, एक बेटी एक बेटा, दोनों बैंक में नौकरी करते है, मेरे पति भी लाख रूपए महीना लेते है और मै भी।

नीलकंठ :- तुम मेरी एक बात जरा ध्यान से सुन्ना फिर बोलना, तुंहरे पति नौकरी करते है, बेटा भी, बेटी भी और तुम भी नौकरी करती हो और घर का काम भी, तुम थकती नहीं हो ? अगर तुम नौकरी छोड़ दो तो क्या तुम्हारा घर का खर्च नहीं चलेगा, तुम ऑफिस में आठ घंटे काम करती हो और घर में रह चार घंटे सुबह,चार घंटे शाम को काम करो तो घर घर जैसा लगेगा, पति घर आये प्यार से बोलो, बच्चे घर आये, माँ माँ करके बोले कितना अच्छा लगेगा।

वो बोली :- मेरे पति कर वक्त लड़ते रहते है, कोई किसी से प्यार नहीं करता, इसलिए मै भी नौकरी करती हूं।

नीलकंठ :- मेरी बात मानो सिर्फ एक हफ्ते के लिए नौकरी से छुट्टी ले एयर आज ही और घर ऊपर रहो, सुबह 6 बजे उठो, अपने पति को प्यार से उठाओ, उनको छाए कॉफ़ी दो, सुबह का नाश्ता दो, लुक बना के दो और घर का काम करो, दस बजे तक, फिर सारे दिन टीवी देखो, फिर शाम को सात से दस बजे तक काम करो, पति बच्चो को प्यार करो,देख लेना सब कुछ बदल जायेगा, दिन भर क काम काम लड़ाई का घर है,भगवान् ने आदमी और औरत को इसलिए बनाया है, दोनों मिलकर अपना अपना काम करे और खुश रहे।

और वो बोली :- अब मै क्या करू ? गाडी का तैयार कैसे बदलू ?

नीलकंठ :- गाडी का तैयार मै बदल देता हूं और तुम अपने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लो, फिर देखता जिंदगी में क्या क्या नहीं होता है और क्या क्या होता है। 

उसी दिन शाम को पति घर आता है, बेल्ल बजता है, पत्नी दरवाजा खोलती है, हाथ में बैग और लंच बॉक्स अपने हाथ में लेकर उसका हाथ अपने कंधो पर लेकर अंदर जाती है। पति हैरान हो के चुप रह जाता है, पत्नी बैठने को कहती है और पानी लेने चली जाती है, उसके साथ सोफे पर बैठे पति का सर अपने गॉड में ले लेती है और धीरे धीरे सहलाती है।

पति बोला :- आज पहली बार मुझे पता लगा है की मई भी एक पति हूं जी करता है तुझे खूब प्यार करू, बीस साल पहले वाले दिन हमने काम ही काम में गवा दिए,जिंदगी को बरबाद क्र दिया, बच्चो का प्यार छूट गया, सारे रिश्ते टूट गए, माँ पापा भी चले गए।

पत्नी :- है, मुझे भी ऐसा लगता है, मैंने भी कही न कही गलती की है, जो मेरे बच्चो मुझे माँ नहीं कहते है, तुम चिंता मत करि अब मई सब ठीक कर दूंगी।

धीरे धीरे सब ठीक होक पटरी पर आ जाता है,एक दिन पत्नी बोली :-अब मुझे नौकरी छोड़ देनी चाहिए, मेरा बच्चे मेरे है, मेरा पति मेरा है, मेरा घर मेरा है , मुझे पैसा नहीं चाहिए, मुझे प्यार चाहिए।

पति :- तुम ठीक कह रह हो हमारे दोनों पडोसी, कितने खुश रहते है, शर्मा जी काम करते है, उनकी पत्नी घर पर रहती है, मेरा तो मानना है, मै अपनी बेटी की शादी किसी व्यापारी से करूँगा,जिसके पास पैसे की कोई कमी नहीं होगी।

पत्नी :- आप ठीक कह रहे है, नौकरी तो नौकरी है, व्यापर खानदानी है, पढ़े लिखे अनफाड़ सब कर लेते है।

पाती :- सो तो है, हम आठ घंटे दस घंटे सर खपाते है, तब जा के कुछ मिलता है और अनपढ़ व्यापारी दस लोगो को काम देता है और खुद मौज मारता है ठाट से गाडी में अत जाता है।

कुछ दिन उसकी सहेलिया उसका हाल पूछने आती है, करीब दस के लगभग होती है।

सहेली :- अरे यार क्या बात है तू कई दिन से ओफ़्फ़िक्र नहीं आयी, क्या बात है ?

उसने जवाब दिया :- अब मै कभी भी ऑफिस नहीं जाउंगी, मै तो कहती हूं तुम भी छोड़ दो, जिस दिन से मैंने ऑफिस छोड़ा है, तब से मेरे पति मेरे बच्चे मुझे बहूंत करते है, मै घर में दिन भर में तीन घंटे सुबह, तीन घंटे शाम को करती हूं और सारे दिन टीवी देखती हूं।

दूसरी बोली :- बात तो तेरी सही है, हमे भी नौकरी छोड़ देनी चाहिए, इससे जो बेरोजगार है उन्हें भी रोजगार मिल जायेगा, मै तो सोच लिया है, मै भी नौकरी से तंग हो गयी हूं, मेरे छोटे छोटे बच्चे है,वो आया के भरोसे है।

तीसरी बोली :- चलो रमी खेलते है।

मेरे घर में रमी नहीं चलेगी, बैठना है तो बैठो वार्ना अपने घर जाओ, मैंने और मेरे भाई ने मिलकर खाना बनाया है, खा के देखो मजा आ जायेगा।

चौथी बोली :- तेरा तो कोई भाई नहीं है, फिर ये खा से आया ?

ये वो भाई है, जिसने मुझे ये अकल दी है, मेट्रो वाला |

पांचवी बोली :- जिसने तुझे मारा था मै उसे अभी चप्पल से पीटती हूं, चलो अंदर।

नीलकंठ अंदर से सब सुन रहा होता है, बहार आके बोला :- हाथ में बड़ा चाक़ू, दूसरे हाथ में जूता लाता है, कोण है जो मुझे चप्पल मारेगी ?

सब डर के एक के पीछे एक छिपने लगती है, और कहने लगी मै नहीं, मै नहीं, मै नहीं।

आप सब मेरी बहने है, बहन बनकर रहे, गुंडा नहीं, हम आदमी कभी भी पहल नहीं करते है, दोबारा छोड़ते नहीं, हम इन्सान है, जानवर या कुत्ते नहीं, सब हाथ जोकर अपनी अपनी तरफ से माफ़ी मांगती है।

नीलकंठ बोला :- मै न तो माफ़ी देता हूं और न ही लेता हूं, जैसे को तैसा, राम राम को राम राम नहीं तो चप्पल के बदले जूता मै तुम्हे समझा रहा हूं, अपनी अपनी नौकरी छोड़कर घर बनाओ, प्यार करो और प्यार बाटो, पति और बच्चो से और जो नौजवान बेरोजगार है, उनको काम मिल जायेगा और आपके बेटे बेटियों की अच्छे घरो में शादी हो जाएगी, मेरा मानना है।लड़कियों को तो नौकरी करनी ही नहीं चाहिए, जब वोह काम करेंगे तब ही तो शादी करेंगे, पति पत्नी बनेंगे, आप तभी तो दादा दादी नानी बनोगे, वादा करो अभी नो नौकरी, यस घर।

हम सब वादा करती है नौकरी छोड़ देंगे, पाने पति और घर पर ध्यान देंगी।

एक दिन नीलकंठ सो रहा होता है, सोते सोते सपना देखता है, उसकी एक किताब छपने की बात हो रही होती है, अपने पिताजी से बोला, आप मुझे सिर्फ दस हज़ार रूपए दे दो, मेरी किताब चाप जाएगी और मेरी किस्मत बदल जाएगी और मई भी मालामाल हो जाऊंगा।

पिताजी एक तमाचा मरकर बोले :- मुझसे कोई उम्मीद मत रखना, कमा ले और खर्च कर ले, पचास सौ रूपए कमाता है, बात करता है दस हज़ार की।

नीलकंठ पैर पकड़कर बोला :- प्लीज, पिताजी,प्लीज और नीलकंठ की आँख खुल गयी, अपनी पतनी से बोला माला माला, आज मैंने एक सपना देखा।

माला :- क्या देखा ?

आज मेरी किताब छपने जा रही है, मई पिताजी से दस हज़ार मांगे हूंए एक तमाचा जड़ दिया और आँख खुल गयी।

माला :- कोई बात नहीं, अब तो आपके पास पैसे है,व्हैवा लो, जो तब नहीं हूंआ वो अब हो जायेगा, समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता और अपने पति की बाहो में लिपट जाती है।

नीलकंठ अपनी किताब छपवाने में लग जाता है, कुछ दिनों के बाद किताब चाप जाती है और खुश होता, अपनी पतनी को एक बड़े होटल में खा खाने ले जाता है, उसी टाइम कुछ गुंडे आ जाता है, सब हाथ में पिस्तौल लगी होती है और बोले :- चलो चलो सब माल निकालो, बहार निकालो वार्ना गोली मार देंगे एक काउंटर पर जाके गोली चला देता है और उसके सारे पैसे एक थैले में भरने की कोशिश करता है उसे धक्का मारकर गिरा देता है, उसके सर से खून आ जाता है, एक गुंडा नीलकंठ नीकत के कान के पास पिस्तौल लगा देता है और माला के गले से हार खींच लेता है।

नीलकंठ बोला ;- अरे भाई ये क्या कर रहे हो, हम तो खाना कहने आये है, लूटना है तो मालिक को लूटो हम तो आम आदमी है, गुंडा उसे एक तमाचा मारकर धक्का देता है, नीलकंठ को गुस्सा आ जाता है और अपनी आँख बंद करके बोला :- जय श्री राम जय हनुमान, उसी वक्त सौ से ज्यादा वानर आ जाता है और उन गुंडों पर टूट पड़ते है, उनके कपडे फाड़कर नंगा कर देते है।

माला :- ये क्या लीला है, ये वानर कहा से आ गए ?

नीलकंठ बोला :- बीएस तुम देखती रहो अब क्या क्या होगा, ये शैतान है हम इंसान है, प्रभु के दास है, थोड़ी देर में उन गुंडों मार मारकर बुरा हाल कर देते है और पुलिस आ जताई है अपनी पूरी टीम के साथ।

डी सी पि उन्हें ले जाने लगा। 

नीलकंठ :- थेडो साहब इनको ऐसे नहीं ले जा सकते।

डी सी पी :- तुम, तुम तो वो हो मेट्रो वाले।

नीलकंठ :- जी हाँ मै वो ही हूं। इन सब ने हम सब को मारा है, और इनको हमारे सामने ही मारो, मै जानता हूं आप ठाणे ले जाके इन्हे मरोगे नहीं, इस सेल ने मेरी पतनी के गले में हाथ डाला है और मुझे मारा है इसको तो मै मरूंगा बाकी सब को आप मारोगे, दस दस डंडे वो भी इन मेजो के ऊपर उल्टा लिटा के, एक पुलिस वाला खुश हो के बोला साहब आज पहली बार मजा आएगा, पब्लिक का हाथो हाथ फैसला होगा, सब को मेज पर उल्टा लिटा के दस दस डंडे मरे जाते है।

नीलकंठ बोला :- अब सीधे तो चलेंगे मगर सीधे बैठेंगे नहीं, इनका पिछवाड़ा हमेशा ऐसा ही रहेगा, ये उलटे बैठेंगे और सीधे चलेंगे।

डी सी पी :- सर एक बात पूछू ? जहा आप होते है, वह ये वानर कैसे आ जाते है, ये जादू है, या फिर भगवन की कोई अद्भुत सेवा, जो हम नहीं कर सकते, अगर ऐसा है है तो भगवान ऐसा चमत्कार हर रोज हर गली में करे।

नीलकंठ :- जी हाँ, ये भगवान का ही वरदान है, हम सब उनके दास है मन याद करो, हाज़िर होते है।

डी सी पी :- सर, एक और सवाल, आप मुझसे नाराज तो नहीं ?

नीलकंठ :- जी हां नाराज हूं, आपको मेरी शर्ते याद है न उन्हें पूरा करो, वार्ना मै कुछ भी कर सकता हूं।

डी सी पी :- सर एक सलाह दू ?

नीलकंठ :- हां बोलो।

डी सी पी :- आप एक बार चुनाव लड़ो और जीतो, फिर आप जो खाएंगे वो हो जाएगा।

नीलकंठ :- मुझे कोई वोट से जीतने नहीं देगा, क्युकी नेता बेईंमान और झूठा होता है, खता कुछ और है करता कुछ और है, इन नेताओ को दिखता नहीं,देश में क्या होरहा है, गली गली में चोरी औरतो का अत्याचार, पुलिस की गुंडागर्दी सौ में से एक सही और सब बेईमान और उस एक की कहि तक भी नहीं चलती, इसलिए मै नेता नहीं सेवादार बनकर काम करना चाहता हूं, नामदार नहीं।

डी सी पी :- सर आपको मेरा सलूट है, और मै हमेशा सव्दार बनूंगा, नामदार नहीं और आपको याद रखूँगा, मुझे कोई मिला था।

रस्ते में चलते चलते माला बोली :- सुनो मेरी समझ में नहीं आया की माजरा क्या है ? ये वानर ये पुलिस।

नीलकंठ :- तुम क्या करोगी ये जानकर ? जो हो गया सो हो गया, छोटे मोठे हादसे तो होते रहते है।

माला जिद करने लगी, नहीं फिर भी बताओ, एक बात तो है, औरतो की अपने पति के साथ जबरदस्ती करने की आदत बड़ी बुरी है, उन चोरो से नहीं बोली मेरा हार क्यों चीन रहे हो, माला ने अपने दोनों हातो से उसका एक हाट हिला दिया।

उ उ , तुम मेरे पति हो वो नहीं, और पति पतनी में जबरदस्ती चलती रहती है। अब बोलो,

नीलकंठ :- ये बात उस वक्त की है, जब मेरे पास काम की बड़ी कमी थी, भीक मांगने की नौबत आ गयी थी, भगवान ने कहा तुम मुझे जब याद करोगे, मै तभी तुम्हारी मदद करने आ जाऊंगा, अब तुम्हारे पास धन की कमी नहीं रहेगी, अपने प्रभु को तभी बुलाता हूं, जब कोई बड़ी बात होति है, अब आगे और आज के बाद मत पूछना न ही किसी को बताना, ये सब राज़ की बाते है।

एक दिन नीलकंठ धीरे धीरे पैदल पैदल अपनी दूकान पर जा रहा होता है, पीछे से डी सी पी आ जाता है, डी सी पी गाडी रोककर बोला :- अरे मेट्रो वाले भाई कहा जा रहे हो ? नीलकठ रुक जाता है।

नीलकंठ :- डी सी पी साहब मेट्रो मेरे बाप की नहीं है, न ही मेरा नाम मेट्रो है, मेरा नाम नीलकंठ है।

डी सी पी :- सॉरी सर, मुझे आपका नाम नहीं पता था, आप बड़े अच्छे आदमी अहइ, इसलिए आपका नाम रख लिया और आप द्देष सेवा भी करते है, इसलिए मै आपको जिंदगी में नहीं भूलूंगा, मगर आप जा कहा रहे है ?

नीलकंठ :- मै तो अपनी दूकान पर जा रहा हूं, बस थोड़ी दुरी पर है।

डी सी पी :- आपके पास गाडी नहीं है ?

नीलकंठ :- हां है, मगर मै पैदल ही आता जाता हूं, इससे मुझे फायदा होता है , मै चल कर थक जाता हूं और जाकर बैठने में बड़ा मजा आता है, मेरी दूकान पर दस लड़के काम करते है, मै तो बस पैसे लेता हूं बाकी सब काम वो करते है और जब मै बैठ बैयह कर थक जाता हूं, जब चलने में बड़ा मजा आता है, इससे फायदा भी होता है, पोल्लुशन का और हभी कभी आप जैसे दोस्त मिल जाते है, जब मै घर पहूंँचता हूं, यो मेरी मेरी पतनी मुझे बड़ा प्यार करती है, मेरे हाथ से सारा बोझ उठा लेती है, पानी पिलाती है छाए बनाती है और मेरे जूते भी उतारती है, मेरा दबती है, मै घर जाकर सब दुःख भूल जाता हूं, ऐसे ही मेरी जिंदगी चल रही है, मै बच पैन से ही कड़ी म्हणत से सब कुछ बनाया है।

डी सी पी सोच कर बोला :- मेरी बीवी बड़ी नकचढ़ी है, मेरी हर रोज लड़ाई होती रहती है, मेरा घर जाना न जाना बराबर है, मै तो तलाक लेने की सोच रहा हूं,वो खेती है, तुम दिन भर गाडी में घूमते रहते हो, सब पर आर्डर मारते रहते हो, उसको नहीं मालूम हम कितनी तंगी में रहते है, कितनी परेशानी कितनी टेंशन होती है, डी सी पी बने रहना इतना आसान नहीं है।

नीलकंठ ने लम्बी सास ली और बोला :- आप बुरा न माने तो एक बात बोलू आप को अच्छा लगे तो।

डी सी पी :- हा हा बोलो, कभी कभी किसी और की बात सुननी चाहिए।

नीलकंठ :- मै एक दिन आपके घर आना चाहता हूं।

डी सी पी : जरूर जरूर ये मेरा कार्ड है, मै आपके आने का इंतज़ार करूँगा, डी सी पी अपनी जीप में और नीलकंठ पैदल पैदल अपनी दूकान पर आपहूंच जाता है, ये लो मेरी दुकान आ गई आपका थाना आगे है।

एक दिन नीलकंठ डी सी पी के है जाता है, डी सी पी दरवाजा खोलता है और बोला :- आओ आओ मेरे दिल के मेहमान मेरे हूंज़ूर, अंदर से डी सी पी की बीवी आती है और बोली :- आप शराब लेंगे या चाय कॉफ़ी, नीलकंठ सोच में पड़ जाता है।

नीलकंठ :- भाभीजी आप क्या कह रही हो, मै तो इनका छोटा भाई ही, मानो तो ठीक, ना मानो तो तो ठीक।

पत्नि:- इनके जितने दोस्त आते है, वोह शराबी है, और शराब ही पीते है और शोर मचाते है।

नीलकंठ :- मै शराब नहीं पीता जरूर हूं वो भी ठंडा पानी निंम्बु पानी, जिसमे आपका खट्टा मीता प्यार हो, कॉफी भी पीता ही थोड़ी कड़वी थोड़ी मीठी, जैसी आप चाहे।

डी सी पी की आँखे शुक जाती है, भाभी पानी लेने चली जाती है।

नीलकंठ :- डी सी पी साहब इसमें आपकी गलती है, दोस्त हमेशा घर के बहार होने चाहिए, घर के अंदर नहीं, वो भी शराबी, शराब पीना अपनी पत्नि के सामने और फिर शोर मचाना, वैरी शेम शेम, बच्चो पर क्या असर पड़ेगा, भाभी थोड़ी देर में नीम्बू लाती है, ये लो खट्टा मीठा पानी।

नीलकंठ :- भाभीजी एक बात पुछु, बुरा न मनो तो ?

भाभी :- हां पूछो।

नीलकंठ :- डी सी पी साहब कह रहे थे की आप बहूंत बड़ी नकचढ़ी है,हमेशा लड़ती रहती है, ये बड़े प्रेशर में रहते है, गुंडों से भिड़ते है आपके लिए।

भाभी :- मै नहीं लड़ती और इसके दोस्त मेरे घर में शराब पीते है और कुछ भी नहीं, इनको शर्म नहीं आती, घर में दो दो बच्चे है।

नीलकंठ :- डी सी पी साहब, ये आपकी बहूंत बड़ी गलती है जो माफ़ी के लायक नहीं है। डी सी पी फिर से अपनी गलती पर सर झुका लेता है। पति पत्नि के बीच कोई और नहीं होना चाहिए।

भाभी :- एक दिन की बात हो तो भी चले, मगर ये तो रोज रोज शराब पीना ठीक है ? छोटे छोटे बचे घर में है वोह क्या सीखेंगे, बाप दी सी पी वो भी शराबी, कितनी बड़ी पोस्ट और ऐसे छोटे काम, शर्म आणि चाहिए, मै इनकी पत्नि हूं पब्लिक प्रॉपर्टी नहीं, शराब लाओ पानी लाओ सोडा लाओ मै तो तंग आ गयी हूं, मर जाने को जी चाहता है।

नीलकंठ :- दी सी पी साहब गलती आपकी है, दोष किसी और पर मड रहे हो, पहले अपने आप को देखो, आपके कंधो पर पूरे देश का बोझ है, आप खुद ठीक नहीं हो और औरो को क्या ठीक करोगे, हर काम डंडे से नहीं होता, कभी कभी प्यार से भी करना पड़ता है, मै भी करता हूं, प्यार से भी, डंडा भी, जूता भी जो सही हो वो ही चलाओ, भाभीजी मै आपके हाथ की कफ पीना चाहता हूं, कड़वी भी और मीठी भी, क्युकी आप बहूंत अच्छी है, आपकी कड़वाहट में प्यार है।

भाभी :- आज पहली बार कोई आया है, जिसने कॉफ़ी मांगी है, वार्ना शराब ही शराब मांगते है, भाही अंदर चली जाती है।

नीलकंठ :- घर के अंदर सिरग घरवाले आने चाहिए, जैसे भाई बहन चाहा ताऊ मामा फूफा, शराबी नहीं।

दी सी पी :- मै अपनी गलती के लिए माफ़ी चाहता हूं, आज तक मैंने कभी किसी से माफ़ी नहीं मांगी, शायद ये ही मेरी बड़ी गलती है। भाभी कफरर ले के आती है वो दोनों चुप हो जाते है,कॉफ़ी पीते पीते नीलकंठ बोला :-

दी सी पी साहब मै आपके घर को अंदर से देखना चाहता हूं, जैसे की मानो तो तलाशी। भाभी एक दम कड़ी होकर जोर से बोली :- तूम एक दी सी पी के घर की तलाशी लोगे, तुम्हारी इतनी हिम्मत, चलो बहार निकलो ये मेरा घर है, वारंट लेके आना।

नीलकंठ :- भाभीजी मेरा मतलब ये नहीं, अगर आपको बुरा लगता है, तो कोई बात नहीं।

दी सी पी अपनी नम आँखों से बोले, नहीं आज इन्हे अपनी मनमानी करने दो, ये कोई और नहीं मेरे भाई है, सी बी आई नहीं।

नीलकंठ घूम घूमकर पूरा घर देखता है और एक बड़ी सूंदर सी अलमारी पर नज़र रुक जाती है और बोला :-

ये अलमारी खोलो।

भाभी :- इसमें इनकी शराब भरी रहती है।

नीलकंठ :- यही तो मै कह रहा हूं, ये अगर घर केअंदर होगी तो लड़ाई कभी ख़त्म नहीं हो सकती | शराब और ताश ये दोनों घर का नास करती है, भाभीजी आप ये शराब की साड़ी बोतले तोड़ दो, न ये होगी, न इनको इसकी खुशबू आएगी।

भाभी :- बहूंत महंगी शरण है कम से कम बीस हज़ार की है।

नीलकंठ /;- भाभीजी इनकी जिंदगी आपकी जिंदगी बच्चो की जिंदगी लाखो करोड़ो की है, भाभीजी मै एक समाज सुधारक हूं मै अपने तरीके से काम करता हूं, ये दी सी पी है, ये अपने तरीके सुधरते है, हर काम डंडा नहीं करता, पुराणी एक कहावत है, जहा काम ायर सुई वह क्या करे तलवार, जगदा ये शराब का है बात तलाक तक जा रही है \ दी सी पी साहब आप शराब छोड़ दे,अपने प्यार और पत्नी के लिए, दी सी पी हाथ जोड़कर और पैर पकड़कर बोला :- मै पढ़ा लिंकः गवर हूं आज के बाद कभी भी नहीं, डी सी पी शराब छोड़ देता है और साड़ी बोतले तोड़ देता है \

नीलकंठ :- अच्छा तो मै चलता हूं देखते है आज के बाद क्या होता है, प्यार या शराब।

अगले दिन डी सी पी घर अकेला आता है, बिना शराब पिये, पतनी दरवाजा खोलती है, अंदर ले जाती है, बैठने को खेती है, पानी लती है,उसके बाद छाए लाती है फिर उसके बाद, उसके जूते उतारती है और अपनी गोदी में सर रखकर प्यार से दबाती है,

डी सी पी खुश होता है।

मैंने अपनी पूरी जिंदगी ख़राब क्र डाली, तेरे साथ बड़ा अन्याय किया मेरी शराब ने, मगर अब नहीं, अब तो बीएस प्यार ही प्यार थोड़ी देर में दोनों छोटे छोटे बच्चे पापा पापा कहकर उसके पेट पर बैठ जाते है वो उन्दोनोको देखकर अपनी साड़ी परेशानी भूल जाट है और आँखों में आंसू भर लाता है, मै एक पुलिस वाला हूं मगर फिर भी इंसान हूं, भगवन नहीं जो गलती नहीं करता, पतनी कोई बात नहीं आज ही सही, आज हमारी शादी की सालगिरह है लोग पचीसवी मनाते है हम दसवीं मनाएंगे, हम दसवीं मायेंगे, डी सी पी :- मगर बहार का कोई नहीं।

दोनो खूब नाचते गाते है अपने ही घर में।

मुझे चाहिए बीएस बीएस प्यार ही प्यार और तेरे साथ,

भूल जाओ मै दुनिया साडी तू है मेरा ही प्यार 

तू है मेरा प्यार साजना

सालो साल हम साथ रहेंगे, न होंगे कभी दूर, मुझे ----

चाहिए बीएस तेरा प्यार, 

झूम उठु मै तुझे देखकर जैसे सावन की बहार 

मन मेरा और तन तेरा ये है रंग हज़ार 

कड़ी धूप या सर्दी हो हो तेरा साथ 

मुझे चाहिए तेरा प्यार 

कितने बरस में आया सावन आज 

भूल गया मौसम सारे पी पी करके शराब 

देर से आई मेरी ये रात

 मेरी ये रात मुझे चाहिए तेरा प्यार ॥

एक दिन नीलकंठ दी सी पि के ऑफिस में जाता है, दी सी पि एक दम उठकर सलूट मारता है, जैसे कोई अफसर हो, सारा स्टाफ देखता रह जाता है, अरे मेट्रो वाले भाई तुम,

नीलकंठ :- अरे, अरे ये क्या क्र रहे हो आप तो हमारे साहब है, हम आपके पास फ़रियाद लेके आये है।

दी सी पी :- अरे सर आपने तो मेरी जिंदगी ही बदल डाली, मेरी पत्नी ने तो मेरी मेरी जिंदगी ही बदल डाली मेरा दिल ही जीत लिया, इसलिए आपको सलूट मारने को चाहा, आँखे मन हो जाती है, बोलो आप क्या फ़रियाद है ? हवलदार साहब की रपट लिखो और तुरंत कारवाही करो और बोलो सर।

नीलकंठ ;- सर कुछ लोग रास्ते में चलते चलते कुछ लोगो से लूट पाट करते है, गरीब की मेहनत की कमाई को लूट लेते है, उन्हें पकड़के ठीक करो या उन्हें जेल में डाल दो, कोई गरीब नहीं मारा जाये।

दी सी पी :- मई खुद घूम घूम कर, देखूंगा कौन है, उनको उठाकर जेल में ठूस ठूस कर मार दूंगा और बताओ आपकी क्या सेवा करू ?

नीलकंठ : हमारी सेवा इतनी ही काफी है। आप ये बताओ आपकी पत्नी कैसी है, अब तलाक तो नहीं दोगे ? 

डी सी पी :- अरे सर सवाल ही पैदा नहीं होता, मैंने बहूंत बड़ी गलती की थी, धीरे धीरे सुधर रही है, वो मेरा बहूंत ख्याल रखती है, सुबह शाम बस प्यार ही प्यार ही प्यार।

नीलकंठ :- कभी कभी अपने आप को भी देखना चाहिए, सिर्फ औरो को ही नहीं, जब किसी को एक ऊँगली दिखते है, तब चार ऊँगली अपनी तरफ अति है, खुद देखो, ये कैसे। अच्छा तो मई चलता हूं, मेरी शर्ते याद रखना।|

डी सी पी :- आप नहीं भूलेंगे, आप अभी अभी आये है, आपसे बहूंत सी बाते करनी है, हवलदार दो छाए ले के आओ, मेरे मेहमान, मेरे भाई के लिए, नाश्ता और बर्फी साथ लाओ।

डी सी पी रात के अँधेरे में खुद दौरे पे जाता है, सादा वर्दी में चार पांच लड़को को पकड़ लेता है, ठाणे लेकर उन्हें नंगा करके पिछवाड़े पर, दस दस डंडे मारता है और हवालात में डाल देता है और बोला :- सालो मेरे इलाके मेरे इलाके चोरी, सालो इतनी धरा लगाऊंगा की दस दस साल तक जेल में चक्की पीसोगे, उम्र निकल जाएगी ुसु जेल के अंदर।

एक डी नीलकंठ रात को दुकान से घर आ रहा होता है, रास्ते में एक सोलह सत्रह साल की लड़की, सीटी मार कर बोली :- चलता है क्या प्यारे, नीलकंठ पलट कर देखता है और पास जाता है, नीलकंठ जोरदार एक तमाचा जड़ देता है और बोला :- 

चल,कहा ले जाएगी ? अपने बाप के पास,अपने भाई के पास या अपने फूफा के पास ? चल चलता हूं, मई अपने घर बाद में जाऊंगा पहले तेरे घर जाऊंगा, फिर अपने घर जाऊंगा।

वो अपने गाल को सुरसुराती भगति हूंई बोली :- अब नहीं करुँगी ये काम, मेरी तौबा मेरी बाप की तौबा मुझे मरना नहीं है,ये आदमी है या खुदा, या हनुमान।

एक दिन डी सी पी अपनी ड्यूटी करके अपने घर जा रहा होता है, रास्ते कुछ गुंडे, रास्ते को घेर लेते है, रास्ते में पेड़ काटकर दाल देते है और उससे भिड़ जाते है, पीछे से नीलकंठ अपनी पत्नी के साथ बड़ी दूर डॉ आ रहा होता है, उसी रास्ते पर, नीलकंठ उन्हें बचने की कोशिश करता है, मगर सफल नहीं हो पाता और अपनी दोनों आँख बंद करके बोला ;- जय श्री राम, जय हनुमान और कुछ क्षण में वानरों का एक झुण्ड आ जाता है और उन सबकोबैगा देता, डी सी पी बच जाता है, डीसीपी हाथ जोड़कर बोला भाईसाहब आप तो शाक्षात भगवान् है, वार्ना आज तो मेरा बचना मुश्किल था, चलो भगवान् जो करता है ाचा ही करता है, जाको रेक साई या मार सके न कोए। डी सी पी अपने घर चला जाता है नीलकंठ अपने घर। डी सी पी घायल अवस्था में अपने घर पहूंँचताहै, पत्नी दरवाजा खोलते ही बोली, हाय ये कैसे हूंआ ? 

डी सी पी :- बीएस कुछ गुंडे मिल गए और भिड़ गए, बल बल बच गया, मेट्रो वाले भाई ने बचा लिया।

पत्नी बोली :- उनको कही चोट नहीं आयी, वो कहा है ?

वो ठीक है, वो अपने घर चले गए, मुझे यहाँ तक छोड़कर, मैंने उनसे कहा मेरे घर चलो, मगर उनके साथ उनकी पत्नी भी थी, इसलिए वो नहीं आये, मगर मई उन गुंडों को नहीं छोडूंगा, चाहे सेल कही भी छुप जाये, मई भी डीसीपी हूं कोई चूहा नहीं।

पत्नी डेटोल और पट्टी लाती है और साफ़ करके दवाई लगाती है, सुबह होते ही, ड्यूटी के लिए तैयार होकर चलते समय बोला :- घर में ध्यान से रहना वो गुंडे घर पर भी हूंम्ला कर सकते है, गुंडों का कोई भरोसा नहीं, 

और पीछे से वो ही हूंआ जो सोचा था किस्मत अच्छी थी, डीसीपी उसी समय घर आ जाता है और दो गुंडों को वही ढेर कर देता है, दो भाग जाते है, डीसीपी उनके पीछे पीछे भागता है, वोह दोनों एक बड़े नाले में कूदकर जान दे देते है, उनकी कहानी वही ख़तम हो जाती है, चोर पोइस की ऐसी ही कहानी होती है, हर वक्त मौत सर पर नाचती रहती है है, कब क्या हो जाये पता नहीं, चोर पराये धन पर मर जाते है और पुलिस वही पराये धन को बचने के लिए मर जाती है, होता दोनों के लिए ही पराया है, कहते है मर गए चोर पराये के धन पर, मेहनत का ही धन काम आता है, धीरे धीरे लड़किया नौकरिया छोड़ने लगती है और वयापारी लड़को से शादी करने लगी, जीवन में सबसे जयादा पैसे की मांग है, पैसा ही सबको दुश्मन बनता है। मगर इंसान खुद बनाता है, पैसा इंसान को नहीं बनाता, नीलकंठ के दोनों भाई लापता हो जाते है, वो केवल अकेला रह जाता, नाम से बड़ा कुछ नहीं होता है, नाम ही बागवान है, भवान नाम नाम, नीलकंठ अपने दोनों बच्चो को शादी कर देता है, दोनों बहूं बहूंत ही सूंदर और सुशील होती है, नीलकंठ अपनी मेहनत और ईमानदारी से घर परिवार सब बना लेता है और इज्जत भी, आज भी लोग उसे याद करते है मेरा सपना वानर राज।

एक डी नीलकंठ एक ऑटो में बैठकर कही जा रहा होता है, उतरने पर ऑटो वाले पैसे देता है और ऑटोवाला बोला :-

 नहीं आप वही मेट्रो वाले अंकल है अगर है तो किराया मत दो मई नहीं लूंगा।

है, मै वही हूं, मगर मै तुम्हे नहीं जानता।

ऑटो वाला बोला :- मैंने आपकी बाते सुनी, और ये अनुमान लगाया आप बिलकुल ठीक कहते है, मै उस डी, उसी जगह था, नौकरी की तलाश में भटक रहा था, आपकी बाते सुनी और मन व्यापार बड़ा है, नौकरी नहीं, नौकरी मिलेगी दस की बीस की, अब मै पचास हज़ार रूपए से भी ज्यादा कमाता हूं और ऐसी मेरे पास दो ऑटो है एक मै किराय पे देता हूं, दिन में कोई और रात में कोई और, और इस ऑटो मै रात में चलाता हूं, दिन में किसी और को देता हूं,हूंई न ज्यादा कमाई, व्यापार बड़ा है नौकरी नहीं, आप से मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है, आप ये किराया न दे, ये मेरा छोटा सा तोफा मान कर रख ले।

ठीक है, मै नहीं दूंगा और बदले में ये आशीर्वाद देता हूं सुखी रहो आनंद में रहो और धनवान बनो।

और अंकल मेरी शादी भी हो गयी है, एक छोटा बच्चा भी है, अब मुझे नौकरी की कोई जरुरत नहीं है, मतलब तो पैसा कमाने से है, घर खर्च से है, गुलामी और आज़ादी से है, काम छोटे बड़े नहीं होते, मन की ख़ुशी होती है कहि भी आने जाने से है, कहि अपनी गाडी से चला जाता हूं और चलते चलते कमा लेता हूं, खर्च भी कर लेता हूं, ये है मेरा सपना सुर जिंदगी।

नीलकंठ :- अच्छा है, बहूंत अच्छा है, जीत जरुरी है चाहे जैसे भी हो, फल मीठा होना चाहिए चाहिए देर से आये, इंतज़ार का फल मीठा होता है, कड़वा नहीं, मेरा आशीर्वाद है, सुखी रहो।

अंकल एक सेल्फी हो जाये मई अपनी ऑटो में लगाऊंगा और नीलकंठ को वही उतरकर आगे चला जाता है।

एक दिन एक औरत सुबह सुबह घर के बहार झाडू लगा रही होती है, तभी दूसरी औरत बोली :- बेशर्म तुझे शर्म नहीं आती, सारा कूड़ा यहाँ इकठ्ठा क्र रही है, वो बोली मेरे घर थोड़ी न है सड़क का है, तेरी बाप की जगह यो नहीं है।

नहीं तो तेरे बाप की है, यहाँ गंदगी फैला रही है, हम लोग यहाँ रहते नहीं है ?

तीसरी बोली :- अरे अरे लड़ क्यों रही हो सफाई वाली आएगी वोह ले जाएगी खमा खा लड़ रहे हो।

वो बोली :- मई खमा खा लड़ रही हूं, धिक् नहीं रहा इस कुत्तिया का काम कैसे गंदगी फैला रही है।

अरी ओ रांड तेरी चुटिया में आग लगा दूंगी।

अरी ओ मर जाये तेरा खसम, मरे तेरे बच्चे,इस तरह सब में लड़ाई हो जाती है, यहाँ तक गुथम गुथा हो जाती है। तभी नीलकंठ सुबह सुबह मॉर्निग वाक से आ रहा होता है, और लड़ाई देखक्र बोला :- 

अरे शांत शांत इसका इलाज मई करता हूं।

एक औरत बोली :- अरे ओ आधे बुढ्ढेतू हमारा इलाज करेगा, हम क्या पागल है, नीलकंठ को लगता है की बात ज्यादा बिगड़ गयी है और ऍम सी दी के ऑफिस में फ़ोन क्र देता है, थोड़ी देर में सफाई कर्मचारी आ जाते है और कूड़े को उठा क्र ले जाते है और वो लड़ते लड़ते अपने अपने घर चली जाती है, हमे क्या मर कुतिया, तू रांड हो जाये, तेरे बचे मरे, सुबह सुबह मूड ख़राब क्र दिया।

एक दिन एक लड़का लड़की प्यार के चककर में पद जाये है, दोनों ही बेवफा होते है, एक दुसरे से मरने जीने की बाते करते है \

लड़की :- मुझे न यार एक फ़ोन दिला दो, मेरा फ़ोन ख़राब हो गया है।

लड़का सोच में पद जाता है और बोला :- अरे यार दिला तो देता, मगर क्या करू, मेरे पास अभी तो पैसे नहीं है, मगर पक्का दिला दूंगा और मन में सोचता है, साली मुझे टोपी पहनाती है, मै तो भगवान् को टोपी पहना दू।

 चल दोनों आइस क्रीम कहते है, दोनों एक शॉप पे चले जाते है, और आइस क्रीम आर्डर करते है, लड़की पर्स खोलने का नाटक करती है, लड़का उससे भी बड़ा नाटक करता है, अरे यार रहने दे मै देता हूं, जैसे पीछे की जेब में हाथ देता है और बोला, अरे यार मेरा तो किसी ने पर्स ही मार लिया, चल आज तू देदे कल मै दे दूंगा, तू तो मेरी जान है सॉरी यार।

लड़की मन ही मन सोचती है, साला बड़ा चालू है, मुझे टोपी पहनता है, मै तो तेरी भी माँ हूं, कल तेरे से होटल में झूठे बर्तन न मंजवा दिए, तो कहना।

अगले दिन लड़की फ़ोन करके, लड़के को होटल में बुलाती है, मै पहले वाले होटल बैठी हूं जहा हमने पहले खाना खाया था, चार नंबर टेबल पर तू जल्दी आजा मुझे बड़ी भूख लग रही है, अब रहा नहीं जाता।

लड़का :- अरे यार मेरे पास, अभी पैसे नहीं है और न ही अभी मुझे सैलेरी मिली है, पैसे तुम ही दोगी।

लड़की :- चल कोई बात नहीं बीएस तू आजा और मन ही मन सोचती है, आज साले तेरी खैर नहीं, तू डाल डाल मै पात पात।

दोनों मिलकर खूब खाना खाते है और लड़की वह से चलकर निकलने की कोशिश करती है, दाए बाए ऊपर नीचे देखकर बोली, अरे यार मुझे बड़ी तेजी से वाशरूम आ रहा है,तू खाना खा, मै अभी आती हूं, वेटर दो कॉफ़ी ले आओ और वोह लड़की चुपके से बहार निकल जाती है, वोह थोड़ी देर आराम से बैठा रहता है, मगर बबाद में पेट में दर्द और डर पैदा हो जाता है और सोचने लगता है आज तो बुरे फसे, साली ने मुझे टोपी पहना दी, थोड़ी देर में वेटर बोला :- सर और कुछ।

लड़का नहीं और नहीं :- वेटर सर बिल एक हज़ार रूपए, वो इस बिल को ले लेता है और अपनी जेब खोलर देखने लगता गई, उसमे केवल पांच सौ रूपए होते है, बिल हज़ार का होता है, वो वह से भागने के लिए इधर उधर देखकर भागने की कोशिश करता है, वेटर को उसपर धक् हो जाता है और वेटर दौड़ भाग क्र उसे पकड़ लेते है, साले भागता खा है, चल पीछे और उसे पकड़कर मारते है, फिर उसके पर्स में से पांच सौं रूपए चीन लेते है, फिर उसे एक कमरे में बंद कर देते है, बाद में बहार निकालकर बर्तन मांजने वाले स्टोर में बहार से बंद कर देते है और कहते ही, आज के बर्तन तू मांज।

लड़की बहार आके जोर जोर से हसती है, साला लड़की की कमाई खाता है, वो भी मेरी जैसी। अगले दिन दोनों फिर मिलते है।

लड़की :- साले मजा आया, पैसे होते हूंए भी झूट बोलता है \

लड़का :- तू भी तो रोज रोज चीज मांगती है, इतनी चीज खा से लाउ, मेरी कोई मील नहीं चल रही, सिर्फ छोटी सी नौकरी है है, मै घर चलाऊ या फ़ालतू खर्च करू, वही खड़े खड़े नीलकंठ उनकी बाते सुन रहा होता है और बोला :- 

बच्चो इधर आओ, तुम एक दूरसे से प्यार करते हो ?

 दोनों बोले :- हां अंकल।

नीलकंठ :- तो फिर एक दूसरे को क्यों धोका देते हो ?

लड़की :- ये मुझे धोका दे रहा है, मै नहीं।

लड़का :- ये दे रही है मै नहीं, मै तो छोटी सी नौकरी करता हूं, ये इसे पता है।

नीलकंठ :- धोका तो धोका है, तुम दो या तुम दो, ये प्यार नहीं, प्यार है तो विश्वास करो, वार्ना प्यार मत करो, अपना अपना रास्ता ढूंढो और फिर कभी मत मिलना दोनों बोले नहीं नहीं अंकल हमे अपने गलती का पता चल गया,प्यार विश्वास है मज़ाक नहीं,हम दोनों अपनी अपनी गलती मांगते है, दोनों कान पकड़ते है।नीलकंठ उन्हें अपना आशीर्वाद देता है और शादी करने को कहता है और अपनी तरफ से कुछ पैसे देता है।

जाओ बच्चो अपना नया जीवन जिओ और झूट को छोड़ दो, तुम्हे किसी न किसी से शादी करनी है, तो फिर तुम दोनों ही क्यों नहीं, अलग अलग क्यों?

दोनों :- सॉरी अंकल अब ऐसा नहीं होगा \

नीलकंठ ;-अब एक और बात सुनो, बच्चे दो ही ज्यादा और जयादा नहीं, ज्यादा बच्चे विनाश का घर है, तरक्की एक या दो।

दोनों मिलकर मंदिर में शादी कर लेते है, नीलकंठ उन्हें आशीर्वाद देता है, दोनों हसी ख़ुशी अपने नए घर में चले जाते है।

न न करते, है है करते हम दोनों एक हो गए 

झूट मूठ को छोड़कर हम दोनों एक हो गए 

उम्र हूंअरी छोटी है अठरा उन्नीस बीस की

सावन भादो आ गए अठरह उन्नीस बीस में, न न करते ---

अब कसम हम खाते है साथ तेरा नहीं छोड़ेंगे, अठरह उन्नीस बीस में 

अब चाहे कच्चा हो या पक्का हो प्यार हमारा एक बार में 

हम दोनों के बीच में, आठरह उन्नीस बीस में 

प्यार हमारा सच्चा हो,अठरह उन्नीस बीस में 

 मेरी हर जरुरत पूरी हो रोटी कपडा और मकान अठरह उन्नीस में 

काम काम मै करूँगा तेरे लिए मै मेरी जान में

अठरह उन्नीस बिस में

शादी अपनी हो गयी अठरह उन्नीस बीस में।|

वोह दोनों सुखी सुखी रहने लगे, नीलकंठ समाज को सुधरने में अपनी पूरी जिंदगी लगा देना चाहता है \

दो बेवड़े शराबी शराब पीकर धीरे धीरे अपने घर जा रहे थे एक दूसरे से बोला :- तू बता तू घर जेक क्या करेगा, क्या करेगा ?

मै मै, घर के बहार दरवाजे पर ही सो जाऊंगा, पर तू बता तू क्या करेगा ?

मै मै घर जाऊंगा, दरवाजा बजाऊंगा, मेरी बीवी आएगी, दरवाजा खोलेगी, मुझे बड़े प्यार से अंदर लेके जाएगी और मेरी बीवी बचे माँ बाप भाई सरे मिलकर मेरी खूब पिटाई काटेंगे और मै प्यार से चुप चाप सो जाऊंगा, पर तू बता, तू घर के बहार क्यों सोता है ?

मै मै शेर हूं इसलिए बहार सोता हूं।

मतलब ?

मतलब ये शेर जांगले में रहता है और मै खुले में बहार रहता हूं, मै भी शी हूं इसलिए मै बहार सोता हूं, मगर अगले दिन दरवाजा खुलता है, मेरी बीवी मुझे अंदर लेती है दरवाजा बंद करती है फिर मुझे सरे मिलकर मारते है, मेरा नशा टूट जाता है और मै चुप चाप सो जाता हूं बिना बोले।

मतलब ये है हम दोनों ही पिटते है, आज के बाद हमदोनो नहीं पीटेंगे और शराब छोड़ देंगे एयर दोनों चलते चलते एक बड़े घेरे नाले में गिर जाते है,नीलकंठ उनके पीछे पीछे जा रहा होता है, उन दोनों की बाते सुन रहा होता है, नीलकंठ तुरंत पुलिस को फ़ोन करता है, उन दोनों को जिन्दा बहार निकल लरते है, अगले दिन उनका नशा टूटता है। तुम दोनों इनका शुक्रिया अदा करो,इन्होने टाइम पर हमे फ़ोन क्र दिया, वार्ना तुम्हारा राम नाम सत्य हो जाता।

दोनों हाथ जोड़कर बोले :- बाउजी हमे माफ़ कर दो, आज के बाद, हम कान पकड़ते है, कसम खाते है, तौबा करते है, शराब बिलकुल नहीं पिएंगे, शराब बहूंत बुरी चीज है, ये आदमी को गधा कुत्ता से सूअर बना देती है,हम रोज पिटते है मगर अब नहीं, अबकी बार माफ़ कर दो, भूल हो गयी। नीलकंठ उन दोनों को छुड़ा लेता है, एक समाज सुधारक की हैसियत से, उन्हें अपने घर ले जाता है, ले जाकर बोलै :- क्या काम करते हो ? क्या नाम है तुम्हारा ?

एक बोला :- मई गोलू ये बोलू हम दोनों बेलदारी करते है ?

नीलकंठ :- मेरे पास काम करोगे ?

गोलू :- हां हां जरूर साहब, बेलदारी में कुछ नहीं मिलता,कभी कभी काम मिलता है।

नीलकंठ :- मगर मेरी एक शर्त है, शराब नहीं पीने दूंगा।

दोनों बोले :- हमारी तौबा, हमारे बाप की तौबा, हमारे दादा की तौबा, बाल बाल हमारी जान बची है, अगर हम मर जाते तो, हमारा परिवार सड़क पर आ जाता, आपने बचा लिया ये क्या कम है।

नीलकंठ :- तो चलो कल से में दुकान पर आ जाना, ये लो मेरा कार्ड, भूल मत जाना, हफ्ते में एक छुट्टी और पगार महीने में एक बार। वो दोनों काम पर लग जाते है और जीवन का सुख भोगते हिज है।एक दिन बाजार के चौक पर चार सांड और दस बारे कुत्ते, आपस में लड़ते है, दोनों तरफ खूनम खून हो जते है, मगर पीछे नहीं हटते, बाजार में अफरा तफरी मच जाती है, लोग इधर उधर भागते है, औरते चिल्ल्ति है बच्चे रोते है, गाड़िया टकड़ा गिर जाती है, बाइक सक्कोति रोड पर गिरी पड़ी है, कारो के शीशे टूट जाते है,फलो की रेडी सब्जी की रेडी उलट पलट हो जाती है लोग उन्हें बचने की कोशिश करते है, डंडे मार कर अलग करते है, मगर हटते नहीं है, जोर जोर से शोर मच जाता है भागो भागो भागो। इस तरह का शोर सुनकर, नीलकंठ अपनी दूकान से बहार आके देखता है, हक्का बक्का रह जाता है, लोगो को सांडो में डंडो से मारते देखकर बॉल, ये क्या हो रहा है ?

तुरंत पुलिस एम सी डी को पहने करता है, पुलिस आजाती है कुत्ते पकड़ने वाली गाडी भी आ जाती है।

नीलकंठ एक एम सी डी के अफसर को पकड़ लेता है, ये क्या हो रहा है तुम्हारे राज में, ये कुत्ते और सांड खुल्ले छोड़ रखे है, ये है तुम्हारी ड्यूटी ? 

अफसर :- हम क्या करे, इनको पब्लिक पालती है, इन सांडो को और फिर यू ही छोड़ देती है। अगर आप को तकलीफ है तो सॉर्ट में जाओ, हम अपना काआम कर रहे है।

नीलकंठ :- अगर मई कोर्ट में चला गया तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी।

अफसर का एक साथी बोला :- अरे सर छोड़ दो इसे, ये वो है जिसने मेट्रो में हंगामा कर दिया था इससे पन्गा मत लो ये उलटी खोपड़ी का है, सॉरी सर सॉरी आएगी सेव गलती नहीं होगी, हम इनको गौशाला में छोड़ देंगे, जिन्होंने इन्हे छोड़ा है उनके साथ कड़ी कारवाही होगी।

नीलगंत ;- जो लोग घायल हूंए है, जो नुक्सान हूंआ है,उसे कोण भरेगा ?ये रेडी,ये रिक्क्षा,ये ऑटो,बाइक, स्कूटी, ये कार के शीशे कोण भरेगा ?

अफसर :- इसमें मई क्या कर सकता हूं। मैंने तो किआ नहीं है, जो आप मुझे डाट रहे है, आज से पहले तो कभी नहीं हूंआ मै माफ़ी चाहत हूं और मामला यही शांत हो जाता है।

नीलकंठ अपने दोनों बाचो की शादी कर देता है, बहूंए बहूंत ही सूंदर और गुणवती होती है, नीलकंठ का पारिवारिक जीवन बड़े आनद में चल रहा होता है, दोनों बेटे दूकान को चला रहे होते है, दोनों बेटो के एक एक बीटा एक एक बेटी होती है, वोह धीरे धीरे जवान हो जाते है, शादी के लयक हो जाते है, दोनों पोते पोतिया अपने दादा दादी से बाते कर रहे होते है।

बड़ा पोता बोला :- दादजी मै नौकरी करूँगा, छोटा बोला मै भी नौकरी करूँगा, टाइम से आना टाइम से जाना और हफ्ते में एक छुट्टी।

दादाजी मजा ही मजा कोई टेंशन नहीं।

दादाजी :- तुम दोनों को कितनी कितनी नौकरी मिलेगी ?

दोनों बोले :- पचास पचास हज़ार रूपए।

नीलकंठ :- अगर मै तुम दोनों को पचास पचास हज़ार दू और हफ्ते में चार छुट्टी पांच छुट्टी छे छुट्टी दू तो मेरी नौकरी करोगे ?

पोता :- ये कैसे दादाजी /

नीलकंठ :- मै एक व्यापारी हूं, मै एक फैक्ट्री खोलना चाहता हूं, जिसमे काम से काम पचास से साठ काम करने वालो की जरुरत होगी, क्यों न तुम उसमे काम करो मै मालिक तुम मेरे नौकर, अगर नकृ ही करनी है तो। एक दिन तुम जाओगे एक दिन तुम ड्यूटी पर हूंए एक दिन मै,हो गए तीन दिन फिरक एक दिन एक दिन तुम एक दिन मै हो गए छे दिन, कभी कभी तुम्हारी भेने भी जाएगी, उहे भी कुछ काम करने की आदत होगी, बड़ी पोती बोली :-

दादाजी मै तो शादी करुँगी और उसे करुँगी जो नौकरी नहीं करता होगा जिसके पास खूब सारा पैसा होगा, मुझे कमा कमा के देगा खर्च करने के लिए, मैं क्यों काम करूं ? क्यों नौकरी करने वाले से शादी करूंं ? 

उत्तम खेती मध्यम व्यापार नौकरी करे बुद्धू गवार।


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