मैं हूँ ना.....
मैं हूँ ना.....
सुबह के करीब चार बजे थे। चारों तरफ अभी भी अंधेरा छाया था। कुछ ही देर बाद सूरज की किरनें बाहर के इस अंधेरे को हटाने वाली थी। पर आकाश के भीतर का अंधेरा इतना गहरा था की आशा की कोई किरनें उस गहराइयों को छू भी नहीं पा रही थी।
जीवन से थका- हारा आकाश उसी अंधेरे का दामन थामे चल पड़ा। न जाने कितने दिनों का भूखा - प्यासा ...अपने ही शरीर और मन से अनजान...गुमनाम सड़क पर अनजान पैरों के सहारे बस आगे बढ़ रहा था। फटे हुए कपड़े और मैला बदन, कितने दिनों से उन्होंने पानी नहीं देखा था।
चलते चलते शहर से बहुत दूर एक सुनसान जगह पर आकर वो रुक गया। रास्ते के एक तरफ खाई थी। दूर दूर तक किसी भी मनुष्य-प्राणी का कोई एहसास नहीं था। उसकी बेजान आंखें खाई को देखकर अचानक चमक उठी और दूसरे ही पल उसने खुद को खाई को समर्पित किया। पत्थरों के फिसलने के आवाज के साथ एक हल्की सी चीख और फिर से वातावरण में सन्नाटा छा गया.......
धीरे-धीरे बहुत मुश्किल से उसकी आंखें खुलती गई। उसे सब कुछ धुंधला सा नजर आ रहा था। उसके ऑंखों के ठीक सामने एक खिड़की थी। जहॉं से पंछियों के चहकने की आवाजें आ रही थी। फूलों की मंद सुगंध हर तरफ फैली हुवी थी। उसने थोड़ा और इधर उधर देखने का प्रयास किया। वो एक कमरे में आरामदायी पलंग पे लेटा हुआ था। बाजू में रखे हुए मेज पे एक फुलदानी थी जिसमें रजनीगंधा के फूल सजाकर रखे हुए थे। जो महक उसने महसूस की थी वो उन्हीं फूलों से आ रही थी। कमरे की दीवारें मनपसंद करने वाले रंगों से रंगी थी। न जाने कितनी देर से वो वहॉं पर लेटा हुआ था। बहुत सारे सवाल उसके मन में तूफान मचा ही रहे थे की अचानक से, "अब तबीयत कैसी है ? मुझे पता था तुम अब तक जाग गए होंगे, इसलिए तुम्हारे लिये कॉफी लेकर आई हूँ " बोलते हुए एक अधेड़ उम्र की स्त्री उसके पास आई । कॉफी और पानी के गिलास का ट्रे मेज पर रख के उसने आकाश को बैठने में मदद की। अपनी कोमल ऊॅंगलियॉं उसके माथे पे रखकर वो बोली, "अभी बिल्कुल ही बुखार नहीं है। " मधुर आवाज वाली वो स्त्री निहायत सुंदर थी। उसके उॅंगलीयों के स्पर्श ने आकाश को ममता का एहसास दिलाया। उस स्त्री ने अस्पताल परिचारिका का पोषाक पहना हुआ था।
आकाश उसकी तरफ कुछ पल देखता ही रह गया। उस स्त्री ने उसे पानी पिलाया ! हैरान आकाश ने बहुत सारे सवाल उसे एकसाथ पुछना शुरु किया। "मैं कहॉं हुं ? आप कौन हो ? क्या मै किसी अस्पताल में हूँ क्या ? हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखकर वह बोली, "अब थोड़ी कॉफी पी लो, ठंडी हो जाएगी , फिर आराम से हम बाते करेंगे। "
बीना कुछ बोले आकाश ने कॉफी का मग अपने होठों को लगाया जिसकी उसे बहुत जरूरत थी। जैसे ही उसने कॉफी खत्म की, उस औरत ने उसके हाथ से कॉफी का मग लेकर मेज पर रखा और उसके पैरों को लगाई हुई पट्टियां वो खोलने लगी। आकाश ने उसे फिर से पुछा , "आपने आपका परिचय अभी तक नहीं दिया है।" उसकी बात को अनसुना कर के वो बोली, "अभी जख्म सुख रहे है तुम्हारे। पिछले दो दिन से तुम बेहोश थे। मैं तुम्हें मेरे घर पे लेकर आई हूँ। मेरा नाम मेरी है। मैं एक अस्पताल में काम करती हूँ। " आकाश के मन में सवालों का सैलाब और भी बढ़ता गया। उसने झुंझला के पुछा, "अगर आप अस्पताल में काम करते हो तो अस्पताल के बजाय आप मुझे अपने घर पे क्यों लाए हो और यह पोशाक आपने घर पे क्यों पहना है ? "
पट्टियों को हल्के हाथ से खोलकर कुडादानी में डालते हुए वो बोली, "मरीजों की सेवा करना ही मेरा धर्म है और उस धर्म को इसी पोशाक पे निभाना मुझे अच्छा लगता है। जहॉं पर तुम मुझे मिले वहॉं से अस्पताल काफी दूर था। सो मैं तुम्हें घर पे ले आई। चलो, अब तुम्हारी पट्टियां मैंने हटा दी है। तुम एकदम ठिकठाक हो अब।"
कुछ पल आकाश की तरफ देखने के बाद उसके पास बैठकर मेरी ने पुछा, "ऐसी क्या मुश्किल थी की तुम्हें अपने जीवन से नफरत हुवी?
मेरी के इस सवाल से आकाश बेचैन हो उठा। फिर कुछ देर की शांति के बाद
खोई हुई नजर से आकाश बोला, "मेरे जीवन में अभी बचा ही क्या है ? बिल्कुल अकेला हूँ मैं। मम्मी और पापा रोड दुर्घटना में चल बसे। मुझे ड्रग्ज की इतनी लत लग गई की जो कुछ मेरे पास था सब मैंने बेच दिया। यह लत जीतनी छोड़ने की कोशिश करता हूँ , उतना ही उसमें फंसता जा रहा हूँ। इस तकलीफ का कोई अंत नहीं है। "
फिर तिलमिला के मेरी की तरफ देखकर वो बोला , " क्यों बचाया आपने मुझे ?? मरने देते ...वैसे भी मैं एक जिंदा लाश ही था। "
उसकी तरफ शांति से देखती हुई मेरी बोली," तुम्हारे उम्र का मेरा एक बेटा था। पढ़ाई में बहुत होशियार था। मुझे उससे बहुत उम्मीदें थी। उसे डॉक्टर बनता हुआ मुझे देखना था। "
फिर गहरी सॉंस छोड़ते हुए मेरी बोली , "न जाने कहॉं से उसे ड्रग्ज की लत लगी हर एक दवॉई की जानकारी होने के बावजूद भी मैं उसे बचा नहीं पाई ! मेरे आंखों के सामने वो तड़प तड़प कर मर गया। तभी से मैं अकेली हूँ ।"
कुछ पल रुककर मेरी आगे बोली, "परमात्मा की कृपा है की इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी तुम्हें ज्यादा चोट नहीं पहुंची। शायद तुमसे कुछ अच्छा काम करवाने की उसकी योजना होगी। "
उसके सर पे अपना हाथ फेरते हुए मेरी आगे बोली, यह जीवन परमात्मा की एक अमोल भेट है और एक ही बार हमें मिलती है। पुनर्जन्म है या नहीं पता नहीं, पर इस भेट को व्यर्थ ना जाने दो।
मैं तुम्हें जरूर मदद करुॅंगी इस लत से छुटकारा पाने में। बस जब ड्रग्ज की याद आएगी मुझे याद करना ! तुम्हारी मॉं आज होती तो शायद तुम्हें यही बताती। "
मेरी की बाते सुनकर आकाश के ऑंखों से आंसू टपकने लगे। गदगद हो के वो बोला ,"मैं आपकी बाते जरूर याद रखूंगा सिस्टर ।
मुझे अभी काफी अच्छा महसूस हो रहा है। क्या मैं अभी अपने घर जा सकता हूँ ?"
उसका हाथ अपने हाथ में ले के मेरी बोली, "Yes, my child. You are perfectly fine now. Take care."
आकाश पलंग से उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ा । कुछ कदम चलने के बाद वो रुका और फिर पीछे मुड़ कर उसने सिस्टर मेरी से पुछा ," क्या मैं आपको 'मदर मेरी' पुकार सकता हूँ ? " कुछ पल उसकी तरफ प्यार से देखने के बाद सिस्टर मेरी के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कान आई। वो बोली , " you are welcome my child ."
भरी हुवी ऑंखों से उसे एक बार देखकर आकाश उस घर से बाहर निकला। रास्ते में चलते हुए उसे रजनीगंधा के फूल दिखाई दिए। अचानक से उसे याद आया की सिस्टर मेरी को धन्यवाद बोलना तो वो भुल ही गया था। जल्दी जल्दी अपने पतलून की जेब उसने टटोली। रजनीगंधा के फूल खरीदकर वो सिस्टर मेरी के दरवाजे पर पहुंच गया।
दरवाजे पे एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था। आसपास मकड़ी के जाले ऐसे लटके हुए थे मानो सालों से किसी ने उसे साफ ही किया ना हो...
आकाश हक्का बक्का देखता ही रह गया था की उसके पीछे से एक औरत की आवाज आई, " सिस्टर मेरी अब इस दुनिया में नहीं है। शायद ये फूल तुम उन्हें देने के लिये लाए हों।" परेशान हुए आकाश ने पीछे मुड़कर देखा ! काटन की सादी सारी, उसके साथ फूल हाथों वाला ब्लाऊज पहनी हुवी , बालों को तेल लगा के ठिकठाक उसका जुड़ा बनाई हुवी एक औरत वहां खड़ी थी। उस औरत की तरफ देखकर वो चिल्लाया...,"क्या बकवास कर रहे हो आप...मैं अभी अभी सिस्टर मेरी के घर से बाहर निकला हूँ ।"
अत्यंत शांत आवाज में वह औरत बोली ," मैं यहाँ की केअर टेकर हूँ। उनको ढूंढते हुए यहॉं पर आने वाले तुम दसवें इनसान हो। मेरी एक अस्पताल में सिस्टर थी। तन-मन-धन से बीमार व्यक्तियों का इलाज करती थी ! बेटे के जाने के बाद वो अकेले ही इस घर में रहती थी। चार साल पहले ही उनका देहांत हो चुका है। घर के ठीक सामने कुछ ही दूरी पे ( अपनी ऊॅंगली दिखाकर ) वहॉं पर उनकी कब्र हम सभी गाँव वालों ने उनकी याद में बनाई है। "
आकाश को यकीन दिलाने के लिये उस केअर टेकर ने घर का दरवाजा खोला। आकाश ने उसके पीछे घर के अंदर प्रवेश किया। सामने सिस्टर मेरी की परिचारीका पोशाक में एक भव्य तस्वीर थी। कोने में एक कुडादानी में कुछ पट्टियां पड़ी हुई थी। कमरे की खिड़की बंद थी। मेज पे सूखे हुए फूलों से भरी हुवी फुलदानी तथा एक खाली मग रखा हुआ था।
एक अजीब सी पीड़ा अपने सीने में लेकर उस तस्वीर की तरफ देखते हुए रोते रोते आकाश उस कब्र की तरफ भागने लगा। कब्र के पास ही सिस्टर मेरी अपने स्वच्छ, सफेद पोशाक में प्रसन्न चेहरे से उसकी तरफ देखकर हँसते हुए उसे नजर आई। जैसे ही वो वहां पर पहुंचा वहॉं पर कोई भी नहीं था। अपने हाथों से वो फूल सिस्टर मेरी के कब्र पे रखकर उसे अभिवादन करके वो फुट फुट के रोने लगा।
कुछ देर बाद अचानक एक जोर का धमाका हुआ । जलद गति से भागने वाली एक मोटर दुभाजक से टकराकर उलट पुलट हो गई थी। और उसके पास खड़ी एक सफेद पोशाक वाली महिला अंदर अटके हुए घायल लोगों को धीरज दे रही थी ... *घबराओ मत...मैं हूँ ना....*
