Shahid Ajnabi

Drama

5.0  

Shahid Ajnabi

Drama

कोई लौटा दे वो नोटबन्दी वाले दिन

कोई लौटा दे वो नोटबन्दी वाले दिन

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तुम्हें याद हो कि न याद हो, उस दिन हम दिल्ली से सफ़र करके थक के चूर हो गए थे। पूरे देश में अफरा–तफरी और हड़बड़ी मची हुई थी। पांच सौ और हजार के नोट न हो गए हों, कोई घर का कबाड़ हो जिसे हम जल्दी से कबाड़ी को दे देना चाहते हैं  याद है, लेकिन हम सुकून में थे।

कोई जल्दबाजी नहीं, कोई घबराहट नहीं। घर के जो भी छुटपुट रुपए थे जिन्हें हमें बैंक में जमा करना था। लोगों ने बैंक की क़तारें चुनी थीं लेकिन हमने कैश डिपोजिट मशीन। मम्मी ने भी हम दोनों को दूध का डिब्बा थमा दिया था, नोट रखने के लिए। डरते – डरते रिक्शा किया, रात का समय था तो डर और बढ़ गया था। रिक्शे पे मेरे दाईं तरफ तुम बैठी थी। हम दोनों के बीच में था वो डिब्बा जिसमें हम नोट ले जा रहे थे। कितना शान्त थी न तुम , कभी तुम मुझे देखती और कभी मैं तुम्हें देख लेता। कुछ नहीं तो हम दोनों आसमान को देख लेते  सी डी एम पहुँचे एटीएम लगाया नोट खट से जमा हो गए। मारे ख़ुशी के उछल पड़े। भीड़ ने हमें देखा, लेकिन हमने एक दूसरे को देखा।

घर पहुँचने की जल्दी थी, दोबारा नोट जो लाने थे घर से  घर पहुँच कर फिर उसी डिब्बे में नोट लिए और मॉल रोड के लिए रिक्शा कर लिया। सी डी एम पहुँचे तब तक मशीन ख़राब हो चुकी थी और हम मायूस हो गए थे। उस एस. बी.आई. ई.- पॉइंट से बाहर आये तो आईसक्रीम वाला दिख गया, मैंने उसे दो बटर स्कॉच देने को कह दिया। तुमने डपटते हुए कहा “पागल हो क्या? नोटबन्दी में दो आइसक्रीम खायेंगे”। हमने एक ही आइसक्रीम ले ली। रास्ते भर ठंडी में आईसक्रीम खाते रहे। अगले दिन फिर यही सिलसिला शुरू किया कभी एस.बी.आई. कभी आई.सी.आई.सी.आई., कभी बी. ओ. आई., कहीं कुछ एक नोट जमा हो जाते, फिर दूसरा कॉर्नर तलाशते फिर मायूस हो जाते। जहाँ कुछ नोट जमा हो जाते तो हमारे चेहरे पे विजयी मुस्कान आ जाती। हम उसे नोट जमा होने की ख़ुशी ही समझते रहे, लेकिन जीते रहे। मज़ा आने लगा था रम से गए थे उन दिनों की दुनिया में। पता नहीं कौन सी खुमारी आ गई थी। नोट तो ख़त्म होने थे हो गए। लेकिन शायद वो प्यार वाले दिन चले गए। सुनसान सड़कें और बैंक की भीड़ हमें अच्छी लगने लगी थी। साथ – साथ चलने लगे थे न हम दोनों। पैसे जमा होने की ख़ुशी तो थी ही लेकिन उन दिनों का जल्दी बीत जाने का दुःख ज्यादा था।

 शायद प्यार की टूटन थी जो कि हम नहीं चाहते थे। आज एक डायरी में उस आईसक्रीम वाले का रेपर देखा तो याद आ गई उन दिनों की। अब ये नोटबन्दी की याद थी या तुम्हारी पता नहीं। तुम्हें भी तो आई ही होगी। तुमने बताया नहीं कभी। अबकि बार मिलोगी तो बताना जरूर। मैं तो कहता हूँ, प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी लिख देते हैं और फिर से नोटबन्दी करा देते हैं। हम प्यार को दोबारा जी लेंगे। इसी बहाने शायद हमारे घर वालों को पता चल जाए और शादी को राजी हो जाएँ। पता है तुम्हें मैं तो अब अक्सर गुनगुनाता रहता हूँ। कोई लौटा दे नोटबन्दी वाले दिन।


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