खूबसूरत

खूबसूरत

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रात की पाली आरम्भ हो चुकी है। स्टाफ़ के नाम पर दो वार्ड बॉय दिख रहे हैं। रात की नीरवता को चीरते यंत्रों की पीप-पीप और इक्का-दुक्का मरीजों की कराहों ने वातावरण बोझिल बना दिया है। नींद कोसों दूर है। तभी सामने वाले मरीज को इंजेक्शन लगाने के लिए एक नर्स मरुस्थल में हरियाली सी प्रकट हुई।


“चलो कुछ तो देखने लायक मिला” मन ने सांत्वना दी। लेकिन जैसे ही उस शुभ्र वस्त्र धारिणी का सपाट पत्थर सा साँवला चेहरा दिखा तो अचानक उगी हरियाली कैक्टस में तब्दील हो गई।


“उम्ह...इससे तो भली वह सुबह वाली मोटी थी” मेंरे टूटे मन ने मुँह बिचकाया।


मेंरे पेट के टाँकों का दर्द तो कम था किन्तु पेट फूलने लगा। मैंने भतीजे से दवा के लिए कहलवाया। दो से तीन बार हो गया किन्तु नर्स, “अभी आते हैं” कहकर अभी तक नहीं आई। सलाह भेजी कि उठकर बैठें, थोड़ा चलें-फिरें।


बाजू वाले बिस्तर पर एक लड़की अनमनी सी होने लगी। उसकी माँ ने जाकर नर्स से कुछ कहा और वापस आ गई।


“क्या हुआ...नर्स आ नहीं रही क्या?” मैंने उसकी माँ से पूछा।


“आएँगी अभी बोला है, किसी को इंजेक्शन लगा रही हैं” उसने जवाब दिया।


“हुँह, न जाने ये नर्सें अपने आपको क्वीन विक्टोरिया क्यों समझती हैं!” मैं बिफरा।


“नहीं चाचू...वह लाइन से दूसरे मरीजों को देखती हुई इधर ही आ रही हैं” भतीजे के इस कथन पर मैंने उसे घूरा जो पास में रखी बेंच पर पसर चुका था।


मैं मन ही मन नर्स के चेहरे में फिर से उलझ गया।


“इस सरकारी अस्पताल में कुछ नहीं तो कम से कम नर्सें तो खूबसूरत होनी ही चाहिए...बेचारे उन मरीजों का क्या होता होगा जो लम्बे समय तक यहाँ पड़े रहते हैं”


पेट में उथल-पुथल बढ़ गई। मैंने भतीजे को आवाज दी जो खर्राटों की गिरफ़्त में था।


“आँ...हाँ चाचू” दो-तीन बार पुकारने पर वह कसमसाते हुए उठा। मैंने उससे शौचालय ले चलने को कहा।


लघुशंका से निवृत होते-होते दो तीन डकारें आयीं। वार्ड में ही एक दो चक्कर लगाने के बाद मैं बिस्तर पर आ गया। अब पेट हल्का लग रहा था और मैं मंद-मंद नींद के आगोश में विचरने लगा।


सुबह आँखें खुलीं तो नर्स बाजू वाली लड़की के बेड की ओर आ रही थी।


“गुड मॉर्निंग सिस्टर!” उसके आते ही उस लड़की ने अभिवादन किया।


“...ऊँ...हाँ...!” इस अप्रत्याशित अभिवादन से वह पहले तो चौंकी फिर उसने भी जवाब दिया, “...गुड मॉर्निंग!”


ऐसा करते हुए उसके होठों की सीपी खुल गईं जिससे भीतर से मोती झाँकने लगे। अब उसका चेहरा ख़ूबसूरत लगने लगा था।


“कैसी तबियत है सर?” अब वह मुझसे मुखातिब थी।


अचानक मेंरे मुँह से निकल पड़ा, “खूबसूरत”


उसने तिरछी निगाहों से मुझे देखा, मैं अपनी झेंप मिटाने के लिए कुछ और कहता इसके पहले ही वह फिर मुस्कुरा दी।


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