Gunjan chandrakar

Drama

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Gunjan chandrakar

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केजा

केजा

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केजा और अर्जून की कोई संतान नहीं थी। था तो केवल देवर देवरानी का बेटा प्रवीण। जब शादी के बाद घर आई तो खूब लाड़ दुलार मिला। संपन्न खानदान से आईं थीं। सर्वगुण सम्पन्न थी। छोटी सी उम्र में अर्जून से शादी हो गई थी। परन्तु सबको अपनी बातो और काम से मोह लेती। देश दुनिया की भी खबर थी। उसकी आंखो से देखो तो ऐसा लगता दुनिया सतरंगी है, खूबसूरत है। उसके मन में किसी के लिए कोई द्येश, बैर था ही नही।

कुछ बरस बीत गए, संतान न होने के कारण वो खुद ही दुखी थी, प्रवीण को देख, उसके साथ खेल कर खुश हो लेती, किंतु परिवार वालों के व्यवहार से दुखी थी। अब तो मानो वो ही सब के काम करने लगी। हताश तो थी, पर अपना मन ना मैला होने दिया। सबके मिलकर, बनाकर चलती। प्रवीण से लगाव जो था। समय यूं ही चलता रहा। अर्जुन के पिता स्वर्गवासी हुए, देवर ने उसर जमीन पे अपने हक मान लिया। प्रवीण के भविष्य कि बात है यह सोच अर्जुन और केजा ने भी समर्थन किया।आखिर घर की ही बात थी। कुछ दिनों पश्चात्, चाचाजी आए। थे तो वे सरपंच, किन्तु काफी समय से घर में आना जाना होता रहता और स्नेह पूर्वक हम सब उन्हें चाचाजी कहने लगे। सुबह सवेरे चाचाजी को घर में देख केजा खूब खुश हुई। आखिर घर में कोई बड़ा जो आया। आशीर्वाद ली और चाय बनाने जाने लगी, तभी चाचाजी ने उसे रोकते हुए अर्जून के बारे में पूछा। ये सुन वह अर्जुन को बुलाने चल पड़ी। कुछ समय पशचात् परिवार के बाकी सदस्य भी आंगन में आ गए। चाचाजी के अचानक आने से केजा थोड़ी अचंभित हुई। चाचा जी ने अर्जुन और केजा से यह बात कही कि अब उन्हें गांव के बाहर वाले जमीन में ही जीवन यापन करना होगा ।यह सुन अर्जुन के चेहरे का मानो रंग ही उड़ गया। वह जानता था, बंजर जमीन में कुछ नहीं हो पाएगा। ऐसे में वह क्या करेगा, उधर केजा की ओर देखा और अपने आप मानो जमीन में धंसा जा रहा था।इतने चाव से केजा को ब्याह के लाया था। जीवन की सारी खुशियां उसे देना चाहता था और अब मानो दो वक्त की रोटी भी नसीब ना हो यह सोच में वह डूबा ही था कि इतने में केजा बोल पड़ी,"बात तो सही है चाचा जी प्रवीण भी अब बड़ा हो रहा है उसके लिए भी स्वयं का कमरा होना चाहिए ताकि उसकी पढ़ाई का हर्ज ना हो। हम दोनों वहां रह लेंगे वैसे भी वह कहां इतनी दूर है, इतना कहकर सामान बांधने जाने ही वाली थी कि चाचा जी ने रोका और कहा किस जेवरात घर में ही रहने चाहिए मां बाबूजी ने जो दिया है वह यही रहेगा ।यह सुन थोड़ी सोच में पड़ी और कहा मां बाबूजी का असल तो अर्जून है। वह जब मेरे साथ है तुम मुझे और किसी चीज की जरूरत नहीं बस यह कहा और अपने लिए एक साड़ी और अर्जुन का एक जोड़ी कपड़ा लेकर घर से जाने के लिए तैयार हुए। मंदिर में दिया जलाकर, कुल देवता से आशीर्वाद लेकर, बच्चों को स्नेह दिया और घर से निकल गए।

रास्ते में अर्जुन ने उस खेत के बारे में बताया सालों से जमीन बंजर है मूरम में कुछ नहीं होगा कैसे जीवन यापन करेंगे यह कहकर अर्जुन चुप हो गया अर्जुन की दुविधा केजा जानती थी। वहां पहुंच कर देखा तो स्पष्ट हुआ की अर्जन इतना चिंतित क्यों थे। सच में जमीन बंजर थी । एक झोपड़ी नुमा कोठरी थी साफ सफाई करते करते शाम हो चली है खाने के नाम पर दाना ना था ।अर्जुन तालाब के पास के छीन के पेड़ से कुछ छीन तोड़ लाए थे दोनों ने उसी को खाकर रात में सोने की कोशिश करने लगे किंतु नींद कहां आनी थी। एक दूसरे की चिंता जो लगी थी ।पता भी ना चला कब सुबह हो गई अर्जुन का सोचना था कि वह दोनों शहर जाकर कुछ कमाए खाए परंतु केजा ने मन ही मन निश्चय कर लिया था मां बाबूजी की इसी जमीन में रहने का अब बस उसने सोचा कि गांव में ही किसी के यहां काम कर भरण पोषण किया जाए।

सुबह उठकर उसने या बात अर्जुन को बताई दोनों के बीच थोड़ा भेद हुआ किंतु अर्जुन के पास कोई रास्ता भी ना था केजा को अकेले यहां छोड़ जा नहीं सकता और शहर में गुजर-बसर का कोई ठिकाना भी ना था ।दोनों ही चाचा से मिलने चल पड़े ।चाचा जी भले व्यक्ति थे ।उन्हें केजा और अर्जुन के प्रति सहानुभूति थी। जैसे ही दोनों चाचा से मिले चाचा ने दोनों से हालचाल पूछा और आने का कारण विदित होते ही दोनों के लायक उत्तम काम भी बता दिए। ऐसे लगा मानो चाचा ने पहले ही सोच रखा था इसका हल।

 केजा को रसोई और अर्जुन को अपने साथ ही चलने कहा। यह दिन तो जैसे तैसे गुजर गए। परंतु केजा के मन में जमीन को लेकर रह रह कर ख्याल आने लगा। इसके बारे में वह अक्सर सोचा करती ।एक दिन उसने अर्जुन से कहा कि क्यों ना हम इसमें बांस उगाएं।जैसे ही अर्जुन को यह बात बताई अर्जुन थोड़ा निराश हुए और कहने लगे कि इसका उपयोग नहीं हो पाएगा ।बांस की फसल आने में सालों लग जाएंगे पता नहीं आमदनी कब हो, कितनी हो।केजा यह सब जानती थी पर उसके मन में ममता और स्नेह था। उसने कहा आमदनी नहीं ,किंतु अपने मन के कारण यह करना चाहती है ,खाने पीने का शौक नहीं ,किंतु मन की व्याकुलता को शांत करने के लिए ऐसा करना चाह रही है ।यह सुनते ही अर्जुन भाव विभोर हो उठे दूसरे ही दिन दोनों ने खेत में काम करना शुरू कर दिया ।अपने बच्चे की तरह उस खेत के प्रति प्यार ममता और लगन से काम करने लगे ।बारिश में उन पौधों को निहारना मानो उनकी खुशी बन गया। दिन महीने में बदल गए ,महीने सालों में, इनकी फसल लहराने लगी ।वह बंजर जमीन आज हरी-भरी और लहलहा रही थी। गांव में इस बात की चर्चा होने लगी। इसी बीच शहर से एक बाबू आए जो उस फसल को लेना चाह रहे थे ।

यह बात अर्जुन ने केजा से कहीं। केजा दुखी हुई जिस फसल को उसने अपने बच्चों की तरह पाला अब उसे कटते हुए कैसे देख सकती थी। उसने इस अवसर को ठुकराने का फैसला लिया ।पैसे तो मिलते किंतु संतोष नहीं ।यह बात अब अर्जुन को भी समझ आई और दोनों ने यह निश्चित किया।

दूसरे दिन प्रवीण अर्जुन और केजा से मिलने आया। उसे देख के जा मानो अपने आप को भूल जाती प्रवीण में केजा की सांसे बसती हैं। शहर जाने से पहले वह अपने ताऊ और ताई से मिलने आया था रविवार को पढ़ाई के लिए शहर जाना था। केजा को इस बात का एहसास था कि जाने से पहले प्रवीण जरूर उससे मिलने आएगा उसने तो पहले ही प्रवीण के लिए मठरी और लड्डू बना लिए थे जाते समय खूब आशीर्वाद के साथ विदा दिया ।

दोपहर को अर्जुन और केजा खाना खाने बैठे ही थे की खबर आई प्रवीण जस बस से शहर जा रहा था वह रास्ते में पलट गई ।अर्जुन बुरी तरह से घायल हो गया है ।यह सुनते ही मानो उन्हें सांप सुंग गया ।तुरंत प्रवीण से मिलने दोनों शहर की ओर निकले । प्रवीण को शहर के एक बड़े अस्पताल में दाखिल कराया गया ।बड़े अस्पताल में रुपए भी काफी लगते यह सोच केजा ने अर्जुन से फसल बाबू को देने के बारे में सोचा। प्रवीण की जान से ज्यादा अब उन्हें और कुछ नजर नहीं आया अपनी फसल और प्रवीण के बीच चुनाव करना उतना ही कठिन जितना अपने माता और पिता के बीच, किंतु प्रवीण को बचाना अभी सबसे बड़ी जरूरत है ।यह सोच उन दोनों ने अपनी फसल को बेचने का फैसला लिया ।

अब इनकी फसल किसी और की हो गई है ।अपने मेहनत और सालों की जतन के बाद वह फसल अब प्रवीण के जान बचाने के काम आए।

एक महीने बाद अर्जुन और केजा अपनी कोठरी में तन्हा बैठे खेत को निहारते हुए पुराने दिन याद करने लगे ।केजा ने फिर हिम्मत की और वापस अपनी फसल उगाने में लग पड़ी।


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