Sudhir Srivastava

Inspirational

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Sudhir Srivastava

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जहाँ चाह वहाँ राह

जहाँ चाह वहाँ राह

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कहीं पढ़ा देखा है कि अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत है जिसका आशय कुछ यूँ है कि यदि हमारा कोई संकल्प नहीं है, और हम लक्ष्य पाना चाहते हैं, और हम कड़ी मेहनत भी नहीं कर सकते, तो यह तय है कि हम सफलता भी नहीं पा सकते। सफलता पाने की हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति सफलता पाने का मार्ग निर्मित करती चलती है।

किसी भी व्यक्ति में यदि इच्छा शक्ति है, तो वह व्यक्ति अपनी राह खुद बना ही लेगा। सीधी सी बात है कि यदि हम अपने मन में कुछ ठान लेते हैं, कि मुझे इस लक्ष्य को पाना है चाहे जो भी हो जाए, तो निश्चित जानिए वह किसी भी परिस्थिति में अपना रास्ता खोज कर लक्ष्य प्राप्त कर ही लेता है। ऐसे जूनूनी व्यक्ति की राह कोई भी मुश्किल, अवरोध बाधक नहीं बन सकती। मुश्किलें, बाधाएं भी उसके जूनून, जिद और दृढ़ता के आगे सिर झुकाने और उसे लक्ष्य तक पहुंचने की राह से खुद बखुद किनारा कर लेते हैं।

   लक्ष्य पाने की चाह के लिए हमें आलस्य को अपने से कोसों दूर रखना होगा, कुछ भी करने के लिए तैयार रहना चाहिए, सपनों की दुनिया में खो नहीं जाना चाहिए, असफलता को स्वीकार कर अपनी कमियों को दूर करते हुए अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पूर्व निराश होने के बजाय आगे बढ़ते जाना चाहिए, न कि असफलता के लिए भाग्य को कोसते हुए हार मान कर सिर झुका लेना चाहिए।कुछ व्यक्ति ऐसे होते है, जिन्हे जिंदगी में बहुत कुछ चाहिए।

 उदाहरण के लिए सामान्य सा छात्र भी अपनी इच्छा शक्ति से ऊंचे स्थान पर पहुंच जाता है, और होनहार छात्र लापरवाही, आलस्य और इच्छा शक्ति के अभाव में फिसड्डी साबित हो जाते हैं।

 एक डी आई जी साहब से मुलाकात का अवसर मिला। बातचीत में उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वह पढ़ने में औसत दर्जे के थे, फिर भी अपनी इच्छाशक्ति और चाहत के सपने से ही इस स्थान तक पहुंचे हैं।

 जबकि एक कमिश्नर साहब ने विद्यार्थियों के बीच में स्वीकार किया कि वे इंटर मीडिएट में फर्स्ट सेकेंड नहीं थर्ड डिवीजन से पास हुए थे।

एक वरिष्ठ साहित्यकार का दाहिना हाथ बालपन में ही कंधे से दुर्घटनावश कट कर अलग हो, फिर भी हार न मानने के जिद से वे आज जिला स्तरीय अधिकारी होने के साथ एक बड़े साहित्यकार के रूप में पहचान बनाने में सफल हो गए।

 स्व. धीरुभाई अंबानी जी, पूर्व राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी सहित अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं।

 यूँ तो इस कहावत का हम आप भी बहुत बार बोलते सुनते हैं कि जान है तो जहान है, ठीक उसी तरह यदि सच्ची चाह है, तो उसे पूरा करने के लिए रास्ते स्वयं ही बनते जाते है। हम सब इस सच्चाई को जानते हुए भी नजरंदाज नहीं कर सकते कि जीवन का यथार्थ सत्य यही है कि हमें अपने जीवन के रास्ते खुद तैयार करने पड़ते है। उसके लिए हाथों की मजबूती से ज्यादा इच्छाशक्ति सबसे ज्यादा आवश्यक है, साथ में कुछ भी कर गुजरने की प्रबल चाहत और धैर्य के साथ हार न मानने का जज्बा और लक्ष्य पर नजरें।तभी "जहाँ चाह वहाँ राह" की सार्थकता साबित हो सकती है। 



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