Poonam Dahiya

Drama

4.5  

Poonam Dahiya

Drama

इंसानियत.... प्रेम की परिभाषा

इंसानियत.... प्रेम की परिभाषा

5 mins
711


पंडित जी, बहुत गुस्से में थे। जुम्मन मियाँ से फिर तू तू मैं मैं हुई। मुद्दा यूँ तो कुछ खास नही होता। पर तकरार बढ़ते बढ़ते कब धर्म को छू जाती पता ही नही चलता। मुद्दा कभी बच्चों का झगड़ा, कभी उनकी पत्नी रुक्मणी की जुम्मन की बेगम रुकैया के बीच फिजूल के मुद्दों की किचकिच होती। सच मे पंडित दीनदयाल को जुम्मन से कोई सीधी शिकायत दिक्कत थी ही नही। न ही जुम्मन को कोई थी। बस दिक्कत उन तथाकथित पड़ोसियों को थी ।जो भाईचारे को देखना पसंद नही करते थे। दोनों के कान भरते रहते। समझते जानते भी दोनों थे, पर हालात ही ऐसे बन जाते। क़ि झगड़ा होता ही होता।

आज भी सिर्फ झगड़ा इस बात पे हुआ कि उनका बेटा मनमोहन और जुम्मन का बेटा अकरम खेल रहे थे। खेल खेल में तकरार हुई ।मनमोहन ने अकरम को धीरे से धक्का दिया जो पड़ोसन रोमिला ने देख हाहाकार बना रुक्मणी को बुला लिया।रुक्मणी तो जैसे तैयार ही थी, फौरन लाइन हाज़िर किया रुकैया को। बात यहाँ सुलझ जाती तो ग़नीमत होती पर क्या मजाल जो मुद्दा बिना पति,शौहर के खत्म हो जाये। खाने से पहले वो नमक मिर्च लगा बात ऐसी बढ़ी ।कि तकरार रार जम के झगड़े में ही बदली ही बदली।

उधर जुम्मन भी कहाँ तकरार से खुश थे। अजीब सी कशमकश थी।बेमन ही झगड़ा होता। जानते थे वो भी की बच्चें कहाँ रुकने वाले थे। फिर खेलेंगे। बीवियां दोनों की फिर साथ बाजार जाएंगी। बस सम्मान की लड़ाई वो और पंडित जी ही लड़ते रहेंगे। वो भी निरी थोथी अहम की लड़ाई। पंडित जी दफ्तर में क्लर्क थे ।वहीं जुम्मन कपड़े सिलता एक दुकान थी। यहां मोहल्ले में जुम्मन अकेला मुसलमान था। पुश्तैनी घर शायद जब सौहार्द अमन प्यार रहा होगा, तब बनाया गया होगा। बाकी लोग पलायन कर गए। जुम्मन के दादा पिता नही गए।पंडित जी तो यहाँ कुछ वर्ष पहले ही बसे। मोहल्ले में ज्यादातर पंडित जी के समाज के ही।लोग थे । जुम्मन का घर सामने ही था। दीनदयाल जी के पड़ोस में कई ऐसे दकियानूसी लोगों का जमावड़ा था जो अभी भी पुराणपंथी दकियानूसी विचारों के थे। जात धर्म के ठेकेदार बने हुए थे । कहने को पंडित जी का चचेरा भाई भी दो मकान छोड़ के रहता था। पर क्या मजाल कभी किसी सुख दुख में काम आया हो।

यहां बस कहने को जात बिरादरी के लोग थे।सब बस काम पड़ता तो बात करते । किसी मदद में काम पड़े तो सब मुँह चुराते। पर क्या करें विचार कहाँ पीछा छोड़ते कि अपने अपने ही होते "।अपना मारेगा छाया में तो फेंकेगा" अरे क्या खाक... मार दिया तो भले छाँव भले धूप कौन देखता। पंडित जी चाह के भी बिरादरी के उसूल नही छोड़ पाते। जुम्मन से न चाहते भही 36 का आंकड़ा था । पंडित जी आज सुबह जल्दी तैयार हो गए थे दफ़्तर में सालाना निरीक्षण था, 7 बजे ही घर से निकल गए स्कूटर ले के । अचानक चौन्क पे पीछे से टक्कर मार दी एक ट्रक ने, पंडित जी सड़क पे गिरे बेहोश हो गए ।

आसपास लोग इकट्ठे हो गए, गनीमत थी सर पे चोट हेलमेट की वजह से नही आई । लोगों ने पास के अस्पताल पहुंचा रुक्मणी को फोन कर सूचना दी । रुक्मणी का रो रो बुरा हाल कैसे करे क्या करे किसे कहे ।दौड़ के पंडित जी के भाई के पास पहुँची। हाथ जोड़ बोली भाई साहब! जल्दी चलिए, इनका एक्सीडेंट हुआ ।

बता रहे चोट ज्यादा है, भाई साहब चल पड़े रुक्मणी घर बेटा भूल जस तस दौड़ पड़ी। जा के देखा एक हाथ एक पैर में प्लास्टर बंधा,चेहरे पर सूजन । बस बच गए ये भगवान का शुक्रिया। पंडित जी के भाई ये कह की उनको दफ्तर जाना खिसक लिए, उन्होंने अपनी तथाकथित भाईचारे की औपचारिकता निभा दी थी। बदहवास रुक्मणी को जब डॉक्टरों ने कहा जान को खतरा नही बस टूट फुट हुई, सुन थोड़ी सुध आई तो ध्यान आया घर खुला बेटा स्कूल से आया होगा? 9 साल के बच्चे को क्या पता। पर कहे किसे क्या करे? उसे तो फोन नम्बर तक याद नही कोई ।

पंडित जी को होश नही, अजीब असमंजस की स्तिथि में थी वो,अचानक हाथ में टिफिन लिए जुम्मन मियाँ आते दिखे, चेहरे पे चिंता,दर्द दिख रहा था,रुक्मणी जैसे किसी अपने को देख लिया हो । सजल नेत्रों से रोते हुए कहने लगी ...देखिए ना क्या हो गया,आँख भी नही खोल पा रहे। जुम्मन मियाँ ने खाने का डिब्बा रखते हुए कहा, -- चिंता ना करें बीबी सब सही होगा ।अल्लाह सब सही करेगा । रुक्मणी ने रोते हुए कहा..- भाईजान बेटा........

जुम्मन ने जैसे उसका मन मर्म पढ़ लिया हो ... बोले वो ठीक है रुकैया के पास है ।हम उसे स्कूल से ले आये थे।

चिंता न करें भाभीजान ।

रुक्मणी की आँखें श्रद्धा प्रेम से उमड़ आई, वो जो अपना था बिरादरी के था बीच राह बस नाम का फर्ज निभा, काम का बहाना कर भाग गया, ये जो ना जात का न धर्म का बिना कहे- सुने फरिश्ते, मसीहा की तरह चला आया मददगार बन ।कितनी गालीगलौज की उसने जाने कितनी बार रुकैया से वही उसका घर बच्चा सम्भाल रही ।वो मन ही मन ग्लानि क्षोभ से भर गई। कुछ बोलती इससे पहले जुम्मन मियाँ बोले.... आप कुछ खा लीजिए अचानक पंडित जी को होश आया सामने जुम्मन रुक्मणी दिखे हाथ उठा नही,पैर दर्द था,पर याद सब था क्या हुआ कैसे हुआ? रुक्मणी के साथ जुम्मन को देख बिना कहे सब समझ गए, आंखों में दर्द के बावजूद जुम्मन के लिए श्रद्धा उमड़ आई। जुम्मन की और पंडित जी की आँखें मिली... दोनों में बस प्यार था श्रद्धा थी फ़िक्र थी, नम्रता थी, मूक सहमति थी,स्वीकृति थी कि प्रेम भाईचारा अपनापन किसी खून के रिश्ते,बिरादरी जात का मोहताज नही होता। प्रेम के आगे हर चीज़ छोटी तुच्छ, जो दर्द में हमदर्द वही सत्य में अपना। पंडित जी की आँखों में उमड़े आँसूं को झट से जुम्मन ने अपनी हथेलियों से पूछते हुए कहा... मैं साथ हूँ । ये शब्द भले ही किसी के लिए औपचारिक हों, पर पंडित जी के लिए मील के पत्थर की तरह थे।

आज वो जान गए थे कि प्रेम, मोहब्बत, प्यार, करूणा,सहानुभूति किसी धर्म या मजहबी कानून उसूल के दायरे में नही आते। इंसानियत से बड़ा ना कोई धर्म था न होगा। पंडित जी के चेहरे पर मुस्कान थी। मानो भीड़ में कोई अपना पा लिया हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama