गौरैया रानी
गौरैया रानी
इतवार की सुबह मैं एक पत्रिका में छपी कहानी पढ़ रहा था की अनायास ही एक गौरेया ने मेरा ध्यान अपनी ओर खिंच लिया ӏ वह मेरे नाश्ते के बिस्किट को चट करने के बाद चीं-चीं कर रही थी ӏ वह गौरेया अक्सर मेरे घर के प्रांगण में आ जाती थी और मेरा ध्यान अपनी ओर खिंच लेती थी ӏ मैं उसे देखने के बाद मेरा एकांकीपन भूल जाता था ӏ उसकी नादान हरकते मुझे मुस्कुराने को मजबूर कर देती थीं ӏ कभी मेरे कपडे धोये हुए पानी में डूबकी लगाकर स्नान करना, तो कभी मेरे चाय का कप निचे पटक देना ӏ पर फिर भी मैं उसकी इन हरकतों पर गुस्सा नहीं होता था ӏ उसे देखने के बाद मैं प्रफुल्लित हो जाता था ӏ ऐसा लगता मानो मेरा बचपन लौट आया हो ӏ वरना मैं अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के चक्कर में न जाने अपना बचपन कहाँ छोड़ आया था ӏ जब छोटा था तो सरसों के खेतों में बाहं फैलाकर दौड़ते हुए तितलियों का पीछा करना मुझे बेहद पसंद था ӏ मैं उनके पीछे कुलांचे मारता हुआ दौड़ता ӏ फिर अनायास ही थक हारकर रुक जाता ӏ इस आश में की वो तितली सरसों के फूल पर बैठ जाएगी ӏ जब बैठ जाती तो चुप चाप बिना हलचल किए मैं उसके करीब जाता, और करीब और जैसे ही उसके सुकोमल पंखो को छूने लगता तितली रानी फुर्र हो जाती ӏ
मैं निराश हो जाता ӏ लेकिन हार मानना मेरी फितरत में नहीं था ӏ मैं पुन: उसी तरह तितलियों का पीछा करता और पकड़ने की कोशिस करता ӏ कभी-कभी तो मेरा हाथ उनके कोमल पंखो को छू जाता लेकिन मैं उन्हे पकड़ नहीं पाता ӏ उन्हें पकड़ने के चक्कर में कई बार गिरने की वजह से कपड़े गंदे हो जाते तो कई बार मुँह रेत में धंस जाता ӏ जब दोपहर हो जाती तो अमरूदो के बाग में अमरुद खाने चला जाता ӏ जहाँ तोते अमरूदो को चट कर रहे होते थे ӏ कुछ मुझ जैसे अजनबी दोस्त को देखकर डर जाते ӏ पर जैसे ही उन्हें पता चल जाता की मैं उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो वो मुझे अपनी दुनियां में आने का इशारा कर देते ӏ शाम होते ही वो अपने घरों की तरफ लौटने लग जाते ӏ मैं उन्हें देखकर हताशा होने लग जाता ӏ सोचता काश मेरे भी इन परिंदों की तरह पर होते और मैं भी उनकी तरह नीले गगन में उड़ पाता, दूर बहुत दूर ӏ जहाँ ये परिंदे भी न पहुँच पाए ӏजहाँ कोई बंदिशे न हों ӏ कभी-कभी तो उनके पंखो की तरह अपने हाथ फैलाकर उड़ने की कोशिस भी करता ӏ पर सिवाय मन को उड़ाने के कुछ नहीं कर पाता ӏ
घर आता तो गौरेया मेरा इंतजार कर रही होती थी ӏ उनको मैं जब तक खाना नहीं डालता था ӏ तब तक वो कभी भी अपने घरों की तरफ नहीं जाती थी ӏ मैं कभी उन्हें मेरे बिस्किट खिलाता तो कभी रोटियों के कुछ टुकड़े डाल देता ӏ मेरी इन सभी के साथ दोस्ती का नाता तब टूट गया था ӏ जब मैं अपनी महत्वकांक्षाओं के संसार को बुनने के चक्कर में शहर आ गया था ӏ अब पैसे हैं, लेकिन उन नादान परिंदों का कवरल नहीं ӏ यहाँ आने के बाद मेरे उन पंछियों को समय के पहिए ने रौंद दिया ӏ बस कभी-कभी वह गौरेया मेरे प्रांगन में आकर अनायास ही मेरे चंचल मन को जागृत कर देती थी ӏ उस गौरेया का घर मेरी उन बचपन की गौरेयाओं की भांति दरख्तों पर नहीं है ӏ क्योंकि इन शहरवासियों का तो मानो पेड पौधों से कोई वास्ता ही नहीं है ӏ उसका घर तो मेरे स्नानघर के रोशनदान में था ӏ जहाँ वह हर वर्ष नीड का निर्माण करती और अंडे देती ӏ लेकिन उसे दुःख के सिवाय कुछ नहीं मिला ӏकभी छिपकली के द्वारा उसके अण्डों को दूषित कर दिया जाता था, तो कभी स्थानाभाव के कारण उसके अंडे लुढ़ककर गिर जाते थे ӏ
मैं जब भी स्नान घर में नहाने जाता तो उसके फूटे हुए अण्डों को देखकर दुखी हो जाता ӏ दिल करता की उसे अपने पास बैठाकर ये समझाऊँ की, `ओ! गौरेया रानी तूं यहाँ अपना घौसला मत बनाया कर ӏ यह स्थान तुम्हारे घौसला बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है ӏ`
पर वह कहाँ मानने वाली थी ӏ वह हर बार वहां घौसला बनाती, अंडे देती लेकिन उसे निराशा ही मिलती ӏ वह अण्डों के निचे गिर जाने की वजह से कुछ देर तो चीं चीं करती लेकिन पुन वक्त का इंतजार करती ӏ इस तरह मेरी और उस गौरेया की जिन्दगी चल रही थी ӏ
एक रोज मैं जैसे ही स्नान घर में नहाने गया तो मेरे कानो में मंद मंद चीं-चीं की आवाज सुनाई दी ӏ मैंने खड़े होकर रोशनदान में झांका तो ख़ुशी के मारे उछल पड़ा ӏ रोशनदान में बने घौसले में गौरेया के दो नन्हे बच्चे थे ӏ उनका गुलाबी सा रंग देखकर प्रतीत हो रहा था की उन्हे अण्डों से निकले हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे ӏ मैं उन्हें निहारने लगा ӏ सुकोमल सा शरीर, दो छोटे-छोटे पंख, छोटी सी चोंच और उसके उपर गुलाबी सा रंग ӏ यूँ समझ लो वे हूबहू मेरी गौरेया रानी की छवि हो ӏ एक मन तो किया उन्हें अपनी अंजुली में लेकर चूम लूं ӏपर उन्हें चोट न लग जाये इस ख्याल ने मुझे रोक लिया ӏ उस दिन के बाद मैं उनके साथ ज्यादा वक्त बिताने लगा ӏ इस वजह से मैं कई बार ऑफिस भी देर से पहुँचता और मुझे अपने बोस की डांट भी खानी पड़ती ӏ लेकिन मुझे उनकी डांट भी प्यार की भांति लगती ӏ आखिर काफी समय बाद मेरे घर में ख़ुशी जो आई थी ӏ लेकिन मेरी और उस गौरेया की खुशियों को ग्रहण लगने में ज्यादा वक्त न लगा ӏ
एक दिन हमेशा की तरह में शाम को ऑफिस से आने के बाद उन्हें सँभालने गया तो देखा उस गौरेया के दोनों बच्चे फर्श पर मृत पड़े हैं ӏ इस घटना ने मुझे निराशा और दुःख के संसार में दखेल दिया ӏ उस दिन के बाद उस गौरेया ने भी मेरे घर आना बंद कर दिया ӏ मुझे इससे बहुत आघात लगा ӏ पर मैं कर भी क्या सकता था? इसमें उस गौरेया की भी कोई गलती नहीं थी ӏ उसने तो मेरे घर को ही अपना आशियाना बनाना चाहा पर शायद प्रकृति को ये सब मंजूर नहीं था ӏ
अगले छ: महीने तक मैंने उस गौरेया को अपने घर नहीं देखा ӏ एक रोज मैं हमेशा की तरह अखबार पढ़ रहा था ӏ मैंने देखा वह गौरेया छोटे-छोटे तिनको से मेरे स्नानघर में नीड का निर्माण कर रही है ӏ मुझे ये सब देखकर बहुत ख़ुशी भी हुई और दुःख भी ӏ क्योंकि पिछली साल भी बेचारी उस गौरेया के बच्चे जिन्दा नहीं बचे थे ӏ इस लिए मैंने एक तरकीब सोची ӏ अगले दिन इतवार था और छुट्टी का दिन भी ӏ आमतोर पर मैं रविवार के दिन जल्दी नहीं उठता था ӏ लेकिन उस दिन मैं जल्दी उठ गया ӏ मैंने एक बोरी ली तथा उसके दोनों छोरों पर एक पतली सी रस्सी को कसकर बांध दिया ӏ उस बोरी को मैं अपनी कार को थामने की जगह बनाए गए टीन शेड में ले गया ӏ मैं कार के ऊपर चढ़ा और उस बोरी को दोनों छोरों से टीन शेड में लगे हूको से कसकर बांध दिया ӏ वह बोरी अब दिखने में झूलेनुमा हो गई थी ӏ अब मेरी गौरेया रानी के लिए घर बनकर तैयार हो चूका था ӏ लेकिन शायद मेरी गौरेया रानी को उसका नया घर रास नही आया ӏ वह तो हर वर्ष की तरह उसी रोशनदान में अपना नीड बना रही थी ӏ जहाँ उसके घौसले के लिए प्रयाप्त जगह नहीं थी और इस वजह से उसका एक भी बच्चा जिन्दा नहीं बच पाया था ӏ मैंने उसे आकर्षित करने के लिए एक प्लास्टिक की बोतल को काटकर उसमे गेहूं के कुछ दाने डाल दिए ӏ इसके आलावा एक फूटी हुई हांड़ी को एक अन्य हुक से लटकाकर उसे पानी से भर दिया ӏ यूँ समझ लो मैंने अपनी गौरेया रानी के लिए वो सब कर दिया जो मैं उसके लिए कर सकता था ӏ पर उस बेवकूफ गौरेया को तो मेरे स्नानघर का रोशनदान ही पसंद था ӏ वह तो अपने नीड का निर्माण करने में वहीँ पर ही व्यस्त थी ӏ शायद वह जिद्दी थी ӏ लेकिन मैंने भी हार न मानने की सोच ली थी ӏ
अगले दिन जब मैं स्नानघर में गया तो देखा उस गौरेया ने रोशनदान में घास के कुछ तिनके, कुछ पंख तथा दरख्तों की टहनियों की सहायता से अपने नीड को आकार दे दिया था ӏमैंने उन सब चीजों को अपनी अंजुली में लिया और हुक में लटकाई हुए झूलेनुमा बोरी में डाल दिया ӏ वह गौरेया मुझे एकटक देख रही थी ӏ उसकी आँखों में मेरे प्रति रोस था ӏ पर मुझे इसका कोई मलाल नहीं था ӏ क्योकि मैं तो ये सब उसके भले के लिए ही कर रहा था ӏ पर वह नादान कहाँ ये सब समझने वाली थी ӏ अगले कुछ दिन हमारे दरमियाँ जो रिश्ता था वो बेहद तनावपूर्ण स्थिति में रहा ӏ मैं उसका घौसला टीन शेड में मेरे द्वारा लगाई गयी बोरी में बनवाना चाहता था ӏ तो वहीँ वो हर वर्ष की तरह मेरे स्नान घर के रोशनदान में ӏ वह हर रोज जितने भी नीड का निर्माण करती में शाम को ऑफिस से आने के बाद उसे उठाकर उस टीन शेड वाली बोरी में डाल देता ӏ इस तरह मैंने पांच – छ: दिनों तक किया ӏ इसके आलावा वह मेरे स्नानघर में घुसकर अपना घोसला रोशनदान में न बनाये, इस लिए मैंने स्नानघर का दरवाजा भी बंद करना शुरू कर दिया ӏ एक दिन तो वह गलती से स्नानघर में बंद हो गई ӏ बेचारी दिनभर भूखी प्यासी चीं- चीं करती रही ӏ मैं जैसे ही शाम को ऑफिस से लौटा तो उसका विलाप सुना ӏ मैंने दौडकर स्नानघर का दरवाजा खोला तो वह डर के मारे उड़कर मेरे घर की रेलिंग पर जाकर बैठ गई ӏ वह मुझे निराशा के भाव से एकटकी से देखती रही ӏ मानो वह मुझे यह कहना चाहती हो की ` ऐसी होती है क्या दोस्ती?` मुझे मन ही मन बुरा लगा ӏ उसके बाद मैं जब भी नहाने के बाद स्नानघर का दरवाजा बंद करता तो हर तरफ देख लेता की कहीं वह बुद्धू गौरेया तो अन्दर न रह गई है ӏ इस तरह से चार- पांच दिन और बीत गए ӏ अब जब भी मैं घर आता तो वह मुझे रेलिंग पर बैठी मिलती ӏ
कुछ दिन बाद एक दिन मैं उठकर चाय पीने के बाद मंजन कर रहा था ӏ उसी दौरान मेरे सामने एक ऐसा दृश्य था जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है ӏ मेरी गौरेया रानी ने टीन शेड में लगी बोरी में नीड बनाना शुरू कर दिया था ӏ वह तिनको व पंखों को सहेजकर अपनी चोंच में लेकर आ रही थी ӏ मैं उसे भावविभोर होकर देखने लगा ӏ अगले दो दिनों में ही उसने घौसला बना लिया था ӏ शीघ्र ही उसने दो मोती जैसे चमकदार अंडे भी दे दिए ӏ मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा ӏ कुछ दिन बाद उन दो अण्डों से गुलाबी रंग के दो गोलमटोल नन्हे चूजे निकले ӏ ये मेरी गौरेया रानी से भी खुबसुरत थे ӏ अब मैं उसे ये कह सकता था, ` ऐ ! गौरेया रानी अब मेरे सामने यूँ इठलायाकर मत उडा करो क्योंकि मेरे नए दोस्त तुमसे भी ज्यादा खुबसूरत हैं ӏ` अब मैं हर रोज उन्हें खाली समय में जाकर सँभालने लग गया ӏ धीरे-धीरे वे बड़े होते जा रहे थे ӏ कभी-कभी तो सोचता की मैं उन्हें एक ही झटके में बड़ा कर दूं ӏ पर प्रकृति के नियमो को जानते हुए भी मैं अंजान सा बनता ӏ
कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपनी बदमाशियां करनी शुरू कर दी ӏ कभी मेरे चाय के कप को टेबल से निचे गिरा देना, तो कभी अपनी माँ के मुहं से रोटी का टुकड़ा छीन लेना ӏ इन दोनों में से एक तो इतना निडर था की कभी-कभी वह मेरे बेहद करीब आ जाता ӏ शाम होते ही ये नटखट अपनी माँ के साथ घौसले में चले जाते और सुबह होते ही आवारागर्दी शुरू ӏ यूं समझ लो उनके बारे में मैंने जितना सोचा था वो उससे भी ज्यादा बदमाश निकले ӏ उन्हें देखने के बाद मेरा एकांकीपन तो छूमंतर हो जाता ӏ
अगली सुबह इतवार था और मैं हमेशा की तरह उनके साथ खेलने मैं व्यस्त था ӏ एक छुटकू मेरे पास टेबल पर बैठा था, और एक फूदक-फूदककर खेल रहा था ӏ मेरी जैसे ही उस पर से नजर हटी अचानक एक बिल्ली आई और उसने उस पर झप्पट्टा मारा ӏ उसने एक ही बार में उसे अपने मुहं में दबोच लिया ӏ उस नादान परिंदे की आवाज मुहं में ही दबी रह गई ӏ मैंने दौड़कर उस बिल्ली का पीछा किया लेकिन वह मेरी छत पर चढ़ चुकी थी ӏ निराश होकर मैं पुन: लौट आया ӏ मैंने कुर्सी का सहारा लिया और अख़बार को अपने मुँह पर रखकर दुखी होकर बैठ गया ӏ कुछ देर बाद मुझे चीं-चीं की आवाज सुनाई दी ӏ बेमन से मैंने अपनी नजरे उठाकर देखा तो दूसरा छुटकू मेरे बिस्किट को चट कर रहा था ӏ मैं उसे देखने के बाद अपने आपको मुस्कुराने से न रोक सका ӏ
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