एलियन की शादी
एलियन की शादी
माँ की पसंद की ३० वी लड़की को रिजेक्ट करने पर डॉ हरप्रसाद की माँ उन्हें गुस्से से बोली-"अब तो इस दुनिया की कोई भी लड़की तेरे को पसंद नहीं आई, तू किसी दूसरी दुनिया का लड़की से शादी कर ले।" बचपन में डॉ साहेब अपनी दादी से दूसरी दुनिया की बहुत सारी कहानियाँ सुना करते थे। और तभी से उन्हें लगता था कि सच में हमारी दुनिया से कई दूर, और एक दुनिया है।
कहते हैं जहाँ जिज्ञासा जन्म लेती हैं, वही से एक खोज एक नए आविष्कार को जन्म देती हैं।
डॉ हरप्रसाद सोचने लगे– "क्या वाकई हमारी धरती से बाहर कोई दूसरी दुनिया है। क्या वाकई कोई प्रजाति हैं जो हमसे तकनीक में आगे हो, या ये सब सिर्फ मन का भ्रम है।
क्या कोई मेरे लायक लड़की भी है वहाँ।"
जब से डॉ साहेब ISRO में काम करने लगे है, तभी से उनके उमड़ते हुई प्रश्नों को मानो जैसे पंख लग गए। डॉ हरप्रसाद एक ऐसी मशीन बनाने का सोचते हैं जो किसी दूसरी दुनिया की किसी प्रजाति से संपर्क साध सके। वो अपने काम में किसी दीवाने की तरह लग जाते हैं, जो अपने प्यार से मिलने को बेक़रार हो। मशीन बनने में 3 साल का वक्त लग जाते हैं। अब प्रयोग कामयाब हो जाए इसी आस में मशीन शुरू करने का सोचते हैं।
मशीन की डिजाईन कंप्यूटर के कीबोर्ड जैसा था जिसमे तीन बटन थे। पहला ओन ऑफ का, दूसरा संदेश भेजने का और तीसरा संदेश प्राप्त करने का था। जैसी ही वो मशीन ओन करते हैं हरी नीली रौशनी शुरू हो जाती हैं। फिर हरप्रसाद दूसरे बटन को दबाते हैं और संदेश में अपने एक चित्र, ग्रह के चित्र, लोगो के रहन सहन और आवाज़े ऑडियो विडियो सब एक डिजिटल तरंगों के माध्यम से स्पेस में छोड़ देते हैं ताकि अगर कोई एलियन हैं तो वो हमारे संदेश को समझ पाए। हर बार संपर्क करने के तुरंत बाद उन्हें लगता है की कुछ तो गड़बड़ है मशीन में और वे तुरंत मशीन में कुछ तकनीकी बदलाव कर लेते हैं। जब की मशीन पूरी तरह ठीक थी।
ऐसे वो एक महीने तक संदेश भेजते रहते हैं परंतु परिणाम कुछ भी नहीं निकलता। एक दिन काम के दौरान, माँ की तबियत खराब होने के कारण उन्हें अचानक दवाइयाँ लाने बाहर जाना पड़ा और वो मशीन को बिना बदलाव किये ऐसे ही छोड़ गए। माँ को खाना खिला कर, दवाई देकर वो थोड़ा टीवी देखने अपनी ड्राइंग रुम मे बैठे ही थे, उतने में ही उनकी आँख लग गयी।
उसी रात को वो महसूस करते हैं जैसे कोई उन्हें कुछ कहना चाहता हो। वो अपने सपने में देखते है-"
जब वो आँखें खोलते हैं तो अपने आपको एक नए ग्रह में पाते हैं। वो ये देखकर चोंक जाते हैं ये तो वही हरा ग्रह है।
दादी की ज्यादातर कहानियाँ एक हरे ग्रह के बारे में रहती थी । वो हमेशा उस हरे ग्रह के बारे में कहानियाँ सूनाया करती थी मगर क्यूँ ? क्या इस के पीछे कोई राज है ? वहां के लोग दिखने में काफी भयानक थे, आँखें लम्बे, पतले नाख़ून और लम्बा पुंछ। वो जैसे ही हरप्रसाद की तरफ आगे बढ़ते हैं वो डर के मारे किसी तरह जान बचाकर भागने लगते हैं। भागते भागते डर के मारे उनकी आँख खुल जाती है। टीवी की लाइट पूरी कमरे को नीली पिली रौशनी से आलोकित कर र ही थी। तभी उनको नजर आया टेबल के ऊपर रखा पानी का जग। उन्होंने तुरंत गट गट कर के पूरी पानी का जग ख़तम कर दिया। थोड़ी देर बैठ कर आराम कर ही रहे थे की अचानक उनको याद आया अपने कमरे में कुछ काम के बारे में ।
वे तुरंत उठ खड़े हुए, लेकिन डर के मारे आगे जा नहीं पा रहे थे, धीरे धीरे हिम्मत जुटा कर अपने कमरे के बाहर परदे के पीछे खड़े हुए तो उन्हें महसूस हुई के जैसे उनके कमरे में कोई है ।
परदे के पीछे वो देख पा रहे थे अंदर से कुछ अजीब रौशनियाँ। खुद को हिम्मत देते हुए जब वो पर्दा हटा कर रुम के अंदर दाखिल हुए तो अपनी आँखों पे विश्वास नहीं कर पाए, मानो जैसे उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी हो। उनके सामने वही हरे ग्रह के 3 लोग खड़े थे और उन्हें देख आपस में बात करने लगे। डॉ साहेब की आँखों को विश्वास नहीं हो रहा था की सच मे एलियंस है ! वो समझ नहीं पा रहे थे की वो ख़ुशी से झूमे या कही डर के मारे भाग जाए।
इतने में उनमें से एक एलियन उनकी तरफ आने लगा जैसे की वो कुछ दिखाना चाहता हो। चाहे अंदर कितना भी डर क्यूँ ना हो डॉ साहेब मज़बूती से वहीं खड़े रहे। वो एलियन आकर एक टूटे फूटे टेबलेट के जैसा कंप्यूटर स्क्रीन में कुछ दिखने लगा। डॉ साहेब स्क्रीन पर वही संदेश देख पा रहे थे जो उन्होंने स्पेस में भेजा था। तभी वो एलियंस वही अपनी भाषा में अनुवाद करते हुए बोलते हैं –"हमे आपका संदेश मिला इसलिए हम आपकी दुनिया घूमने आए है, और ये मेरी बीबी और ये मेरी बेटी है जो आपकी फोटो देखकर आपको पसंद करने लगी है।"
डॉ हरप्रसाद डर के मारे कुछ कह नहीं पाए और मन ही मन खुद को कोस रहे थे की -"क्या जरुरत थी की खुदकी फोटो भेज दी, अब भुगतो बेटा ! रिश्ता आ गया वो भी सचमुच दूसरी ग्रह से।"
तभी अचानक डॉ साहेब के माँ अ गई। लाइट ऑन करते ही वो दो एलियन को देख कर चिल्लाने लगी
"अरे ये वही मास्क वाला आदमी है जो हमारी बाजु वाली रमा आंटी की छोटी सी बेटी को उसके तीसरे जन्मदिन के दिन उठाकर ले गये थे, मुझे अभी भी याद है ।"
इतने में माँ कही से झाड़ू उठा कर ले आयी और डॉ साहेब को चिल्लाते हुए बोल रही थी-"इन जानवरों को छोड़ना मत बेटा आज इनकी खबर लेती हूँ।"
जब तक वो उन दो एलियन पे हमला कर पाती, तब उनमें से एक एलियन ने अपना मास्क उतार दिया और वो बाकी दो एलियन को बचाने की कोशिश करने लगा। ये सब जो भी चल रहा था किसी सिनेमा से कम नहीं था डॉ साहब के लिए, फिर भी उन्हे ये यक़ीन करना पड़ा। क्यूँ के वो एलियन वाली लड़की ही रमा आंटी की बेटी थी।
उसने सबको शान्त करवाया और पूरी कहानी शुरू से बताने लगी। डॉ साहेब मानो जैसे शान्त पड़ चुके थे, चुप चाप कहानी सुन रहे थे। "ये सच था की उसको एलियंस उठाकर ले गए थे, मगर इन दो अच्छे एलियन के वजह से वो इतने साल जिन्दा रह पाई, वो पति पत्नी इस लड़की के लिए अपने ग्रह के लोगों जैसे दिखने वाला कपड़े बना कर उसे पहनाते थे और मास्क लगवाते थे, ताकि किसी को पता ना चले की ये इंसानों की बची है। वरना पता नहीं अंजाम क्या होता।
लड़की बोल रही थी के तभी पता नहीं कहीं से एक छोटा सा विमान डॉ साहेब की कमरे की खुली खिड़की के अंदर आकर विस्तार पर रुका। देखते देखते वो बड़ा हो गया कमरे की छत को छू रहा था। वो दोनों एलियन डॉ हरप्रसद के पास आये और लड़की की हाथ उन के हाथों में देकर कुछ अपनी भाषा में बोलकर वही विमान के अंदर चले गए। देखते देखते वो विमान फिर से छोटा हो गया और डॉ साहेब की खिड़की से बाहर चला गया।
तभी डॉ हरप्रसाद की माँ बोलती हैं– "वो एलियन कहा गए? और ये लड़की तो तेरे को पसंद है ना बेटा !
डॉ हरप्रसाद बोलते हैं –"कौन से एलियन, आप ज्यादा काम न करे आराम भी करे।
वो एलियन नहीं थे मास्क वाला गुंडे थे रमा आंटी की लड़की को छोड़ने आये थे।"
डॉ हरप्रसाद आज भी उस बात को याद करके सोचते हैं – क्या वो सच था या सपना? फिर अपनी बीवी यानि रमा आंटी की लड़की सुमन को देखते है और मुस्कुराने लगते है।