चमकी बुखार ,डॉक्टर और कैमरा
चमकी बुखार ,डॉक्टर और कैमरा
“ये देखिये मुज़्ज़फ्फरपुर के अस्पताल का हाल, न मरीज़ों के रहने की उचित व्यवस्था, न वेंटिलेटर की सुविधा, पंखे और कूलर की कोई व्यवस्था नहीं, डॉक्टर्स की कमी से अस्पताल गुज़र रहा है और उफ्फ ये गंदगी, यह तक की पर्याप्त बेड की असुविधा के कारण एक ही बेड में बच्चों की डबलिंग के लिए हॉस्पिटल मजबूर है । इस चमकी बुखार ने अभी तक कुल 90 बच्चों की जान ले ली है और ये हाल तब है जब कुछ देर पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन का यहां दौरा हुआ है”
इसी प्रकार चीखते बिलखते मीडिया कर्मी एक हाथ में माइक लिए, कैमरामैन के साथ आई.सी.यू में घुसते है और अपने सामने हुए कुछ बच्चों की मौत पर कभी बच्चों के माता पिता से सहानुभूति रखते है तो कभी डॉक्टर्स पर चिल्लाते है । कभी रोते गिड़गिड़ाते पुत्र शोक में व्यथित माँ के सामने कैमरा और माइक लगाते है और उस असहनीय दर्द से गुज़र रही माँ से पूछते है,
“आपके अभी अभी पुत्र की मौत हुई है, मुझे इस बात दुख है, पर मैं क्या कर सकता हूँ। मैं सहानुभूति के अलावा और कुछ नहीं कर सकता। हा लेकिन आपके इस दर्द को अपने इस कैमरे के द्वारा सरकार तक जरूर पहुँचा सकता हूँ ताकि सरकार जगे और यहां कुछ व्यवस्था कर सकें। लेकिन इसके लिए आपको कुछ बोलना होगा, कैमरे में देखिये, अपने आँसू सरकार को दिखाइए, और बताइये आप इसके लिए किसको दोषी मानती है”
महिला आवाक रहती है, कुछ बोलती नहीं। मीडिया कर्मी फिर माइक को महिला के और समीप ले जाता है। वह दोबारा पूछता है “बताईये आप इसके लिए किसे दोषी मानती है, बताईये! आपको बताना ही होगा, क्या आपके बेटे के इलाज़ के लिए डॉक्टर्स आते थे? क्या आपके बेटे को टाइम से दवा मिलती थी? क्या आपके बेटे की उचित देखरेख यहां होती थी? बताइये, बताइये”
पुत्र शोक में व्यथित महिला मृत्युशय्या में बैठे उस व्यक्ति की तरह है जिसमें केवल प्राण है जो सांस ले सकती है लेकिन आवाक है। न कुछ कहती है, न कुछ पूछती, न कुछ खाती है, न कुछ पीती और न कहीं जाती। बस दिखती है एक जीवित लाश की तरह, लेकिन मीडिया कर्मी के प्रश्नो को सुनकर अपने भीतर दबे दुख को दबा नहीं पाती और यह दुख आँखो से आँसुओ के रूप में निकलने लगता है। तब भी कुछ बोल नहीं पाती, सिसकती काँपती रोती बिलखती कोशिश करती है बोलने की पर, इसी गम में बस सिर हिलाते हुए और जोर जोर से रोने लगती है। मीडिया कर्मी को जिन उत्तरो की आवश्यकता थी वह महिला के सिर हिलाने पर उसे उसी रूप में मिल गए थे जिनको वह महिला से उगलवाना चाह रहा था। जब प्रश्न भी व्यक्ति के हो और उत्तर भी व्यक्ति की इच्छा का तब उससे अधिक सर्वश्रेष्ठ वक्ता और कौन हो सकता है। यह तो आडम्बरवान ज्ञानत्व है जो वास्तविक ज्ञानत्व से बहुत भिन्न है। बस फिर क्या था मीडिया कर्मी कैमरे को अपनी और घुमाता है और एक के बाद एक, सारे आरोप डॉक्टर्स पर लादना शुरू कर देता है।
वह कभी डॉक्टर्स की कमी पर चिल्लाता है तो कभी आई.सी.यू की बुरी स्थिति पर। कभी दवाईयो की कमी पर मेडिकल सुपरिटेंडेंट पर चिल्लाता है, फिर उसकी नज़र पड़ती है इलाज़ करते डॉक्टर साहेब पर। कैमरा डॉक्टर साहेब की और मुड़ता है, फ्लेश लाइट ऑन होती है, माइक डॉक्टर साहेब के मुख पर। डॉक्टर साहेब घबराये हुए, पसीना पोछते हुए मानो साक्षात यम से साक्षात्कार होने वाला हो।
पहला प्रश्न "डॉक्टर साहेब जिस धरती के देवता के रूप में आपको पूजा जाता है, आज आप उसी धरती के बच्चों के प्राणहर्ता बन गए। बताईये 90 बच्चों की मौत का कारण"
डॉक्टर साहेब जैसे ही बोलते है, “देखिये..देखिये..आप गलत समझ रहे है”
इस पर मीडिया कर्मी फिर बोल पड़ता है चिल्लाकर, “मैं गलत समझ रहा हूँ। अरे आप सच समझना नहीं चाहते। क्या आपको 90 बच्चों की मौत दिखाई नहीं देती? मैं पिछले दो घण्टे से यहां हूँ इन रोते बिलखते परिवार जनों के बीच, लेकिन इन दो घण्टे में एक भी डॉक्टर यहां नहीं आया। यहां इन बच्चों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं है। एक बेड पर दो बच्चे रहने के लिए मजबूर है। न सफाई की कोई व्यवस्था है, न दवाईयो की। बताईये, जवाब दीजिये! यदि आपका बेटा होता तो क्या आप उसके लिए भी इतने लापरवाह होते"
बेटे का नाम सुनते ही डॉक्टर साहब की आंखे नम हो गयी लेकिन उन्होंने अपने आँसुओ पर नियंत्रण रखा क्योंकि कैमरे के सामने वो अपने आँसुओ को व्यक्त कर मजाक का पात्र नहीं बनना चाहता था। सामान्यतः कैमरे के सामने आँसू दर्शको की सहानुभूति के पात्र बनते है पर जब उसे विलेन के रूप में दिखाया जा रहा हो तो वह वास्तविक आँसू भी दर्शको के लिए हास्यासप्रद बन जाते है। वही स्थिति उस समय डॉक्टर की थी क्योंकि उसका खुद का बच्चा भी चार दिन पहले चमकी बुखार से मृत्यु के घाट उतरा था। लेकिन वह दर्द को कैमरे के सामने दिखाना नहीं चाहता था, क्योंकि कोई कहता की ये डॉक्टर खुद के बच्चे की जान तो बचा नहीं पाया दुसरो की क्या बचाएगा। कोई कहता अपने बच्चे की मौत का बदला ले रहा है दूसरों के बच्चों को मारकर। कही से आवाज़ आती देखो 90 मौतों की बद्दुआओं का नतीजा खुद का बच्चा खोकर देनी पड़ी डॉक्टर को। डॉक्टर आवाक रह गया, उसके पास मीडियाकर्मी के प्रश्नो का कोई उत्तर नहीं था।
मीडिया कर्मी फिर चिल्लाया "बताईये आने में इतनी देरी क्यों की आपने, फ्री की तनख्वा लेते है क्या''
मीडिया कर्मी के इसी तीखे प्रश्नो के बीच फिर एक बच्चे की तबियत बिगड़ पड़ती है। डॉक्टर बच्चे की तरफ भागता है और कैमरा भी उसकी तरफ घूमता है, डॉक्टर के इलाज़ के बीच मीडिया कर्मी लाइव रिपोर्टिंग करता है और उसके इस तनाव को झेलता हुआ डॉक्टर इलाज़ करता है। जिसके सिर पर प्रश्नो की धारधार तलवार लटक रही हो, जिसे 90 बच्चों की मौत का जिम्मेदार मान लिया गया हो, उसी के सामने आज एक और बच्चा जिंदगी और मौत के रास्ते पर खड़ा था। जिसकी मौत उसे एक और बच्चे का कसूरदार मान लेगी और उसकी जिंदगी भी उसपर प्रश्न उठाने में विचलित नहीं होगी। बच्चे की मौत, कैमरे का फ़्लैश ऑन, माइक चालू, मीडिया कर्मी के प्रश्न और डॉक्टर की चुप्पी।
