Akanksha Thapliyal

Drama

4.9  

Akanksha Thapliyal

Drama

चाय की चुस्की

चाय की चुस्की

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घर में श्रेया की शादी की चहल पहल चल रही थी पर पापा ना जाने क्यूँ अपने कमरे में बैठ के फाइल्स टटोल रहे थे। श्रेया की मम्मी उन्हे ढूँढते ढूँढते कमरे में पहुँची और उनको फाइल्स के ढेरों के बीच बैठा देख बोली, “वहाँ दस चीज़ें बची है फंक्षन के लिए पर आप यहाँ फाइल्स निकाल के बैठ गये!” पापा ने कहा, "अरे श्रेया के सारे ज़रूरी पेपर्स की एक फाइल में बना के दे रहा हूँँ, वहाँ अमेरिका में उससे ज़रूरत पड़ेगी, तो यहाँ से भिजवाने नहीं पड़ेंगे। ” श्रेया तभी कमरे में आई, “पापा आप यहाँ फाइल्स के बीच बैठे हुए हो, और वहाँ। ” इस से पहले श्रेया कुछ बोलती पापा की आँखो से टपकता हुआ एक आँसू उसको नज़र आ गया। “पापा आप। । रो रहे हो ?” पापा घबरा के आँसू साफ करते हुए बोले, “नहींं बेटा पुरानी फाइल्स निकालते हुए धूल आँखो में पड़ गई। ” श्रेया समझ गई थी यह पुरानी धूल के आँसू नहींं बल्कि पुरानी यादों की बूँदाबाँदी थी। श्रेया ने बोला, “पापा! आप चाय पियोगे ?” पापा ने बोला, “नहींं बेटा तू आराम कर। ” पापा अपनी लाडली को निहारते हुए बोले, “फालतू में भागा दौड़ी मत करो। ” मम्मी ने बोला, “हाँ बेटा चाय मैं बना लूँगी। ”

श्रेया ने मम्मी और पापा को मुस्कुराते हुए देखा और बोला, “फिर मत बोलना तेरी चाय की याद आ रही है। अमेरिका से बाकी चीज़ें भिजवा सकती हूँ, पर मेरे हाथों की चाय नहींं आ पाएगी। ”

माँ को हस्सी और रोना दोनो आ गया और पापा भी इस बातको सुनके बोले, “जा बना ले, पर मेरे लिए पूरा कप भरके बनना चाहिए। ”

श्रेया किचन की तरफ बढ़ते हुए अपने घर को ध्यान से देख रही थी। पिछले पच्चीस सालों से वो इस घर में पली बड़ी थी, और कल जब उसकी शादी थी तो आज यह घर उसे और भी सुंदर लगने लगा। कुछ भी तो नया नहींं था। वही पर्दे, वही सोफे, सब कुछ हमेशा के जैसा था। शायद आज यादों की जगमग लड़ियो में यह घर बेहद खूबसूरत दिख रहा था।

आँगन से निकलते हुए श्रेया दीवार पे लगी तस्वीरें देखने लगी। पहले कभी भी उसने इन तस्वीरों को इतने चाव से नहीं देखा था। वो बचपन की पहली मुंबई की ट्रिप, वो कश्मीर में कश्मीरी कपड़ो और फूलो के साथ फोटो, पहले जन्मदिन की छोटी नटखट श्रेया, वो स्कूल के पहले दिन वाली श्रेया। उसदीवार पे श्रेया की ज़िंदगी एक खूबसूरत कॅन्वस की तरह सजी हुई थी! श्रेया दो मिनिट तक उन फोटोस को देखने के लिए रुक गयी। तभी पीछे से आवाज़ आई, “सात साल की थी तू जब यह फोटो खिचवाई थी” दादी ने श्रेया को प्यार से सहलाते हुए बोला। श्रेया दादी की हर बात पे सहलाने से हमेशा परेशान होती थी। कई बार तो उसने झटके से बोल भी दिया था, “क्या दादी मेरे बाल खराबकर दिए!” या फिर “आपके नारियल के तेल के हाथ हैं। दादी प्लीज़ ऐसे मत करा करो। ”पर आज हर चीज़ की तरह दादी की गुमटी और प्यार श्रेया को खूब जच रहा था। श्रेया ने दादी को बोला, “दादी आप चाय पियोगे ?” दादी ने भी मुस्कुराते हुए हां बोल दिया। शायद वो भी जानती थी की इस चाय का लुत्फ़ ना जाने कब उठाने को मिले।  

किचन के रास्ते में कभी चाचा-चाची, मौसी, मौसजी, फूफा जी और ना जाने किन-किन ने श्रेया की चाय पीने की फरमाइश कर ली। अब श्रेया किचन में एक बड़े से पतीले में चाय बना रही थी। “पानी उतना जितने लोग हो, दूध आधा, चाय पत्तीजीतने लोग, चीनी एक चम्मचहर कप के हिसाब से,” श्रेया को सब याद आ रहा था कि कैसे मम्मी ने बोर्ड्स के बाद से ही श्रेया को खाना बनाने में एक्सपर्ट कर दिया था और चाय तो उसकी स्पेशल डिश थी! चाय तय्यार हो गई और चाय की खुश्बू सूंघते ही सारे घरवाले भी। सब चाव से चाय की ओर लपक पड़े, वो भी जिन्होने चाय के लिए मना किया था। इसलिए श्रेया ने दो कप चाय मम्मी और पापा के लिए अलग से निकाल दिए थे उनके बेस्ट मॉं और बेस्ट पा वाले कप में जो श्रेया ने स्कूल में मम्मी पापा को लेके दिए थे। और तब से वो उसी कप में चाय पीते हैं। लोगो की चाय में जागी उत्सुकता को देख श्रेया मन ही मन सोचने लगी की क्या कभी अमेरिका में उसकी चायकी इतनी कद्र होगी ? क्या लोग उसकी चाय पीते ही तारीफों के पुल बांधेंगे ? क्या चाय की खुश्बू से लोग दो मिनिट अपना काम छोड़ छाड़ के अपनों के लिए वक़्त निकाल पाएँगे ? अमेरिका जाने का सपना तो पूरा हो रहा था, पर जो अपना था वो तो पीछे यहीं इंडिया में छूट रहा था।

मम्मी और पापा को चाय देते हुए श्रेया ने कहा, “मम्मी मुझे लगता है मैं अमेरिका नहींं जेया पाऊँगी” मम्मी इससे पहले कुछ बोलती, पापा बोले, “बेटा ऐसा मत बोलो। प्रतीक बहुत अच्छा लड़का है, हमें पता है वो तुम्हारा अच्छे से ख्याल रखेगा। ” श्रेया ने कहा, “यहाँ सब मेरे साथ है। मेरे खाने या मेरी चाय आप लोगों को ही समझ आती है, अच्छी लगती है, वहाँ अमेरिका में तो। ” इस से पहले श्रेया कुछ बोलती दरवाज़े से एक आवाज़ आई। “अमेरिका में तो क्या ?” श्रेया एक दम चुप हो गयी और उसके मम्मी पापा परेशान। यह तो प्रतीक की आवाज़ थी, श्रेया का मंगेतर। श्रेया की मम्मी डर के मारे बोल उठी, “बेटा यह तो बस घबरा रही है इसलिए ऐसा बोल रही है। ” प्रतीक ने कहा, “आंटी आप टेन्षन मत लो। ” फिर उसने श्रेया की ओर देखा और प्यार से बोला, “मेडम अमेरिका में सब कुछ है। अच्छा घर, अच्छी गाड़ी, नौकरी, सब कुछ। पर वहाँ जो नहींं है, वो है तुम्हारी चाय की खुश्बू। पहली बार जब तुम्हे देखने आया था तो चाय पीते ही मैं ने सोच लिया था की इस टेस्टी चाय और खूबसूरत चेहरे को अपने से दूर नहींं रख सकता। ” 

यह सुनते ही श्रेया की आँखें भर आई और मम्मी पापा ने प्रतीक को गले लगा लिया। थोड़ी देर बाद मम्मी ने कहा, “बेटा चाय ख़तम हो गई है। श्रेया को और लाने को बोलती हूँ। ” प्रतीक ने कहा, “श्रेया बस एक कप और लाना, पर खाली, जो स्वाद तुमने मम्मी पापा के कप में डाला होगा वो मेरे में शायद नहींं आए, इसलिए आज मैं थोड़ी थोड़ी मम्मी और थोड़ी पापा के कप से पी लूँगा! क्यूँ! ठीक कहा ना ?”

बस उसके बाद श्रेया ने इंडिया की यादों को ब्रीफकेस में बंद किया और सबसे ऊपर अपने घर की इस आखरी चाय के किस्से को रख के संभाल दिया।   


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