भूख
भूख
वैसे तो हम अपने जीवन में बहुत सारे अच्छे-अच्छे काम करते है और अपने पूरे दिन में कुछ ना कुछ ऐसा जरूर करते है जो ना केवल हमें परंतु दूसरों को भी प्रेरित कर जाता है। ऐसा ही कुछ एक बार मैंने अनुभव किया।
बात दरअसल यह है मैं और मेरे कुछ दोस्त कुछ वक्त साथ समय बिताने बाहर घूमने गए थे। हमने अच्छा समय गुजारा और फिर हम सभी खाना खाने एक रेस्टोरेंट गए। वहाँ मैं, मेरे चार दोस्त और हमारी मस्ती भरी बातें हमारे साथ थी। एक पल जब मैं अपने दोस्तों से बात कर रही थी, तभी पीछे से एक छुअन का एहसास हुआ। तभी मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो देखा एक छोटा बच्चा मासूमियत से मेरे सामने हाथ फैलाए खड़ा है। हमारे टेबल में रखे खाने को निहार रहा था। उसकी निहारती आंखें उसकी भूख को प्रकट कर रही थी और उसके फटे कपड़े उसकी गरीबी को, आगे किए भीख मांगते हाथ उसकी मजबूरी को। उस समय हम करते भी क्या कोई इतना उदार भी नहीं कि उसे अपने साथ बिठा कर अपनी थाली से खिला सकें।
फिर मैंने जेब में पड़ा 10 का सिक्का जब उसके हाथों में दिया तब मानो उसकी आंखों में चमक सी आ गई थी और वह चेहरे में मुस्कान से भरा वहाँ से चला गया। उस समय मुझे एक पल के लिए लगा की "भूख और भीख में सिर्फ एक मात्रा का फर्क है" गरीबी भूख में भीख मांगने को मजबूर कर देती है। परंतु जब मैं घर आई सिर्फ एक ही बात मन में चल रही थी कि क्या गरीबी उस नासमझ बच्चे पर भी लागू होती है जो अपने खेलने कूदने की उम्र में संघर्ष कर रहा है और दूसरों के आगे हाथ फैला रहा है?
हम वैसे तो समाज में हो रही राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है और उनकी बातें करते है पर जो हमारे सामने हो रहा है उसका क्या? एक बार यह सोचना, आपको जरूर आपके समाज का आईना दिखाएगा।