अनोखा बंधन पार्ट १
अनोखा बंधन पार्ट १




समस्त मानव जाति बंधनों में बांधी हुई है। कभी कभी ये बंधन सुखांत होते हैं,और कभी कभी ये बंधन दुखांत भी होते हैं जब यही बंधन दो प्यार करने वाले के बीच में आ खड़ा होता है,ती यही बंधन दुखांत का रूप ले लेता है।और एक नया अनुभव दे जाता है ऐसी ही एक कहानी पनपी कानपुर के एक प्रेमी और आगरा की एक प्रेमिका के बीच
दोनों के रिश्तों की दूरियां तो थी परन्तु रिस्तो की दूरियां नहीं दिखती थी।फिर जहां प्रेम की बात हो दोनों का रिश्ता बहुत ही करीबी था ।लेकिन प्रेम न तो रिश्ता देखता है और न तो रंग रूप ये सिर्फ विचारो की देन हैं।प्रेम खुद एक रिश्ता स्थापित करता है।उस लड़के का नाम मोहन और लड़की का नाम राधा था। बहुत समय की बात है।जब मोहन की उम्र लगभग 12 वर्ष की होगी और राधा की उससे १-२ कुछ साल कम। मोहन की दादी मोहन को रोज रात कहानियां सुनाया करती थी जिनकी उम्र लगभग 70- 75 वर्ष की होगी।एक रात दादी ने मोहन को कुछ अपनी दास्तान सुनाई।जिसमें उनकी लड़की का विवाह जयचंद्र के साथ एक धनाढ्य परिवार में किया था। किसी भयंकर बीमारी के चलते उनकी बेटी का निधन हो जाता था। उसी से दोनों के परिवारों में आना जाना भी बंद था। कुछ समय गुजरा एक दिन जयचंद्र उस टूटे हुए रिश्ते को जोड़ने का प्रयास किया।हालांकि उनकी कोशिश कामयाब होती है ।दो परिवार फिर से एक हो जाते है।दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ जाती है।एक परिवार की खुशी का इजाफा तो बच्चो को देखने को मिलता है। कुछ वर्ष बीतने के बाद मोहन जब जयचंद्र के घर गया वह घर के अन्य सदस्यों से मुलाकात करता है। जिनमे से एक मोहन का इतना खास बन जाएगा ये बात शायद मोहन को भी नहीं मालूम थी
दिनेश की चौथी पुत्री राधा वाह झील सी नीली बड़ी आंखे जैसे मानो एक दूसरे से बात कर रही हो सुंदरता की बात करे तो उसे चांद का टुकड़ा कहा जाए ,तो उसका अपमान सा लगता है ।बल्कि ये कहा जाए चांद खुद उसका टुकड़ा दिनेश की चौथी पुत्री राधा वाह झील सी नीली बड़ी आंखे जैसे मानो एक दूसरे से बात कर रही हो सुंदरता की बात करे तो उसे चांद का टुकड़ा कहा जाए ,तो उसका अपमान सा लगता है ।बल्कि ये कहा जाए चांद खुद उसका टुकड़ा है
स्वाभाव- बस इसी पर तो मर मिटा था मोहन बहुत ही सरस स्वभाव की नायिका। जहां विद्वता की बात की जाए तो दोनों की टक्कर बराबरी की होती थी। कभी - कभी नायक को चकित कर देते वाली तर्क कर देती थी नायिका ,अगर एक लाइन में कहा जाए तो रूप में मां शक्ति बुद्धि में मां सरस्वती थी। नायक क्रॉस तर्क करके स्वयं को बचा लेता था
मोहन अपनी दादी से कहानियां सुनता था।इसलिए उसे बहुत सी कहानियां याद भी थी। वाह मोहन बात बड़े ध्यान से सुनती थी अब मोहन उसे कविताएं शायरियां भी सुनता । दोनों एक दूसरे की बात बड़े ही ध्यान से सुनते।अब वो जाने अनजाने एक पवित्र रिश्ते दूसरे पवित्र रिश्ते में जुड़ते जा रहे थे।इस तरह दिनों परिवारों में आना जाना भी होता रहा।राधा से मिलने मोहन कई बार उसके घर गया पर राधा मोहन के घर एक बार भी उसके घर नहीं गई न जाने क्यों मोहन से वो एक बहाना बना दिया जाता था कभी - कभी फोन पे उसकी बेरुखी की बाते सुनकर मोहन के मन में हलचल मचा देती थी एक गुल्थी थी जिसे मोहन न सुलझा पा रहा था। ये बेरुखी की बाते मोहन को परेशान कर दिया करती थी।अगर प्रेम है तो इस तरह की दूरियां क्यों??
एक राज था जिसे मोहन न समझ पा रहा था।लेकिन हर बात सभी नहीं समझ सकते।कुछ तो चल रहा था राधा के मन में?
राधा मोहन के प्रति इतनी दिलचस्पी होने के बावजूद मोहन को ये राधा की बेरुखी अच्छी ना लगी। जब मोहन को लगा कि उसके रिश्ते वाले उस देखने के लिए आने लगे।इस बात को सुनकर उसे पाने की सारी अभिलाषाएं त्याग कर कुछ दूरी बनाना उचित समझा क्युकी अब वो समझ चुका था कि शादी करने का कोई विकल्प उसके पास न था।सिर्फ एक ही विकल्प था उससे दूर हो जाना ही उचित विकल्प था उन दोनों के लिये।कुछ फर्क जरूर पड़ा ।धीरे धीरे फोन पे बाते भी कम होने लगी अब वह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गया और उसने एक प्राईवेट कम्पनी में जॉब कर ली ।लेकिन कहते हैं अगर सच्चा प्रेम किसी किसी को हो जाए तो फिर चाहे कितनी भी दूर चले जाओ उसकी यादें पीछा नहीं छोड़ती वो पकड़ कर रखती हैं जैसे पुलिस के हाथ लगा सबूत फिर अपराधी चाहे जहां छुपके के बैठे वो खोज ही लेती हैं।मोहन उसे भूलने की कोशिश की पर भूल न सका पर भूल न सका। मोहन एक ही महीने में नौकरी छोड़ कर घर आ गया। वह राधा से मिलने को सोच ही रहा था, तभी अचानक उसको दिल को दुखती हुई घटना की जानकारी मिली हां उसकी शादी थी महज १५ दिन बाद
कहते है जिसके बिछड़ने में आंसू न निकले उसके हृदय में कितनी पीड़ा होती है यह वो ही बता सकता है या शायद वो भी नहीं क्युकी कुछ चीज़े सिर्फ महसूस कि का सकती लफ्जो से बयां नहीं होती बस महसूस की जासकती हैं
कैसे देखेगा उसे और की दुल्हन होते हुए यह सब सोचकर मोहन उसकी शादी में न जाने का फैसला किया अतः उसने राधा को फोन करके कह दिया कि वो उसकी शादी में नहीं आ पाएगा
यह बाद सुनकर राधा की जैसे शैली ही बदल गई वह बोली क्यों नहीं आ सकते
कियुकी मुझे छुट्टी नहीं मिल रही
मोहन ने कहा.........
बस यही एक बहाना था पास
राधा ने फिर कहा - मुझे तुमसे ये उम्मीद कतई न थी
मोहन ने कहा- मुझे किसकी जरूरत
राधा ने फिर कहा - किसी को हो या न हो हमे तो है और हम तुमसे कुछ कहना चाहती थी। खैर छोड़ो
(एक गहरी सांस लेकर भावुक हो गईं)
तभी मोहन बोला - बोलो क्या बोलना था
राधा ने कहा- छोड़ो जो आज तक नहीं कहा अब कहने से क्या फायदा।
तभी अचानक फोन कट जाता है,वो कल जिस दिन उसकी बारात थी उस दिन भी मोहन ने फोन किया पर उसे कहा फुरसत थी। मोहन से बात करने के लिए लेकिन उसके मन में कुछ तो चल रहा था।कुछ तो कहना चाह रही थी पर आखिर क्या??
आखिर क्या था जो अभी तक अपने मन मे बसाए हुए थी
कहीं वो प्यार का इज़हार तो नहीं करना चाहती थी
अगर ऐसा था कहा क्यों नहीं क्यों इतने दिनों तक छिपाए थे
फिर अब इन बातों का अब मतलब क्या? फिर क्यों उसके घर नहीं आयी ।फिर बातो में इतनी बेरुखी क्यों? क्या से डरती थी आखिर क्या चल रहा था उसके मन में
ये सारे प्रश्न मोहन के ह्रदय को झकझोर रहे थे।
अब राधा की शादी हो गई थी हां शायद मार्च का महीना था वो चली गई वो बन गई किसी और की दुल्हनिया ।
सुबह मोहन जागता है तब उसे महसूस होता है
जैसे कोई तूफान किसी की जिंदगी उजाड़ के चला जाए
वह जब सुबह जागे तो उसकी दुनिया उजड़ चुकी हो कुछ भी तो नहीं बचा था उसके पास समय बीता रंगो की मस्ती से सराबोर रंगो का त्यौहार आ गया।उसकी यादों की बौछार अभी भी मोहन के पास आ रही थी। मोहन ने राधा से रंग खेलने का वादा भी किया पर पहुंच न पाया ।अब मोहन के पास बचा ही क्या था उसकी यादों के सिवा मोहन ने सिर्फ एक ही होली खेली वी थी विरह की होली ।
तभी उसे मालूम पड़ता है कि उसकी शादी किसी अच्छे खानदान में हुई है उन लोगो का स्वभाव भी अच्छा है
मोहन ईश्वर को धन्यवाद देता है और ईश्वर से प्रार्थना करता कि उसे इस विश्व की महानतम खुशी हासिल हो
आखिर राधा क्यों नहीं जाना चाहती थी मोहन के घर क्या राज था जो मोहन से छुपाए हुए थी जानने के लिये इंजतार करे अनोखा बंधन पार्ट २