जब दिल से दिल मिलेंगे और न होंगी कोई 'अगर' ! जब दिल से दिल मिलेंगे और न होंगी कोई 'अगर' !
जो डांट हमने उस दिन खाई उसने हमको नानी याद दिला दिया। जो डांट हमने उस दिन खाई उसने हमको नानी याद दिला दिया।
ठिठकती रूठती उलझती सहमति जब तब जहाँ तहाँ अहम से टकराती ठिठकती रूठती उलझती सहमति जब तब जहाँ तहाँ अहम से टकराती
क्यों अपनी ही सोच की चादर हम उसे ओढ़ाना चाहते हैं? क्यों अपनी ही सोच की चादर हम उसे ओढ़ाना चाहते हैं?