अल्हड़, मचलती, इठलाती नदी, निर्झर हरदम बस बहती ही रहे, अल्हड़, मचलती, इठलाती नदी, निर्झर हरदम बस बहती ही रहे,
देख मुझे बूढ़ी दीवारें हो जाती हैं दंग। राख दौड़ कर पुरखों की भी लग जाती है अंग। देख मुझे बूढ़ी दीवारें हो जाती हैं दंग। राख दौड़ कर पुरखों की भी लग जात...
दीन हीन का उपकार भी करते हर व्यक्ति के सहायक होते युवा जो होते ऐसे ही होते। दीन हीन का उपकार भी करते हर व्यक्ति के सहायक होते युवा जो होते ...
नामुमकिन सा था आपको गजल सा लिखना न जाने कितने शब्दों को बांधा जिज्ञासा में आज तक नामुमकिन सा था आपको गजल सा लिखना न जाने कितने शब्दों को बांधा जिज्ञासा म...