उठ खड़े हों
उठ खड़े हों
सही वक़्त है, उठ खड़े हों, दूर करें अब परेशानी को
करें आलोकित निज तमस रूपी , समाहित अज्ञानी को।
आओ थोड़ा कम करते हैं, गर्मी की मनमानी को
चलो सहेजें ताल - तलैया, ज़िंदा रखें पानी को
दूरी - आंधी - बिजली - पानी और धूप की बाधाएं
रोक नहीं सकती हैं ये सब, हम बच्चे सैलानी को
याद नहीं रहते हैं सच में, या याद नहीं रखा करते
लोग आज कल अपने अपने संबंधों के मानी को
वाणी द्वारा काम से कम, पर आंखों से ज़्यादा -ज़्यादा
व्यक्त किया करते हैं हम तो अंदर की हैरानी को
प्रजातंत्र में भी बच्चों के खेलों ने और किस्सों ने
कुछ- कुछ तो ज़िंदा रखा है, राजा और रानी को
प्रेम नहीं है प्रासंगिक, इस लेन-देन की युग में अब
कौन भला समझे राधा को और मीरा दीवानी को
अवश्य नहीं है खुशहाली, चकमक-चकमक शहरों से
दे सरकार तवज्जो थोड़ी, खेती और किसानी को।