उन्माद
उन्माद
प्रकृति की जो अभिलाषा है,
एक उन्माद ही तो है।
बहते झरने, उगता सूरज, बरखा, हवा,
असीम हरियाली, एक उन्माद ही तो है।
पैसे की ललक, सोने की चमक,
रात का दिन, धुनिक जीवन
और आगे बढ़ने की चाह,
क्या है सब एक उन्माद ही तो है।
मुझे तो सब उन्माद ही दिखता है,
स्कूल जाता वो बच्चा,
जो भावी भविष्य की तैयारी कर रहा है,
प्रभात फेरी को जाता बुजुर्ग,
जो नई पीढ़ी को देखने के लिए
वक़्त समेट रहा है,
उन्माद ही तो है।
और उन्मादी मैं भी हूँ,
और तुम भी,
मुझे उन्माद प्रकृति का है,
तुम्हें समन्दरों में सैर का होगा,
किसी को ऊँची इमारतों का उन्माद
सब उन्माद ही तो है,
ये संसार एक उन्माद है,
ओम का उन्माद।