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Vaishali Aggarwal

Abstract

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Vaishali Aggarwal

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तू बस थोड़ी सी काली है

तू बस थोड़ी सी काली है

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हाँ अक्सर ऐसा होता था

मै थोड़ा डर जाती थी

दीखता जब कोई रोशन चेहरा

बस घर को आ जाती थी।


क्या लगती है मुरझाई सी

काली काली ये सूरत मेरी

ये बात जानने को मैं  उस

आईने के सामने आ जाती थी

पर मन के सुन्दर कोने  में

एक नया जोश भर जाता था

जब काले बादल की बद्री में

कोमल पंछी मुस्काता था

आईने में जो सूरत दिखती

मन  को बड़ा लुभाती थी

झुकती पलको की आहों में

खुद से ही मैं शर्मा जाती

जाने क्यों दुनिया ने मन में

मैली सी चादर डाली है

वैसे तो सब कुछ ठीक है बेटा

तू बस थोड़ी सी काली है।      


मुझसे तो पूछ लिया होता

की मेरा दिल क्या कह जाता है

भूरे रंग के चेहरे पे जब

घन काला लट टकराता है

उस पर वो काले बदल सी

भौं का मुख पैर चढ़ आना

नखरे वाली मीठी -मीठी

कोयल की याद दिलाता है

क्या सूंदर मौसम वो लगता है

जब चमचम करती उन् आखों में

नाज़ुक काजल तन जाता है

कोमल गहरे होठों के बीच

जब मधुर मुस्कान छा  जाती है

काले पर्वत के छोरो के बीच

नटखट झर शोर मचाती है

हीरे तेरी भी चमक कहाँ

बिन कोयले की परछाई के

चाँद भी काली रातो में ही

चांदनी को झूला झुलाती है


तूने तो हर मोड़ पे दुनिया

बातें मेरी ये टाली है

साँसों जैसी गहरी नहीं

तू बस थोड़ी सी काली है।


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