STORYMIRROR

rinkal Chauhan

Abstract

4  

rinkal Chauhan

Abstract

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों ?

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों ?

1 min
391

कभी पढ़कर भी नहीं समझ पाती हैं पर 

ढूंढकर किताब सब कुछ बोल जाती हैं 

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों। 


रिश्ते समझने में कच्चे जरूर हैं पर 

परखने ने में आज भी उतने सच्चे हैं 

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों।


मंजिल चल रही रास्ता थक गया हैं पर 

पैरो से बेड़ियां तोड़कर दौड़ने वाली हैं 

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों। 


पेड़ के सूखे पत्ते की तरह खामोश हैं पर 

समंदर की लहरों की तरह झूम उठती हैं 

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों।


बोलना तो हैं पर कोई लब्ज़ नहीं हैं पर 

चुटकियों में इतना सब लिख दिया हैं 

तो फिर आज इतनी परेशान क्यों।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract