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Amit Radha Krishna Nigam

Abstract

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Amit Radha Krishna Nigam

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तो जीवन व्यर्थ है

तो जीवन व्यर्थ है

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जिस बाप के हक़ में घर था पुश्तैनी

गर उसको एक दीवार भी न दे पाया तू

तो जीवन व्यर्थ है


जिस माँ ने अपना जीवन संपूर्ण

तेरी सेवा में अनुदान किया

गर उसको साश्वत प्यार न दे पाया

तो जीवन व्यर्थ है


जिस भाई बहन के स्नेह, प्रेम

और विनोद में जीवन ये बहुमूल्य कटा

गर उनको उपहार न दे पाया


जिस पत्नी ने राह तकी हर शाम

गर उसको सत्कार न दे पाया


जिन मित्रों ने साथ दिया संकट में

गर उनको आभार न दे पाया


रिश्ते नाते दो-चार जो काम आये

गर उनको व्यवहार न दे पाया


अनैतिकता में डूबती इस दुनिया को

गर कुछ नैतिक विचार न दे पाया


अपने बाद अपने अनुजों-संततों को तू

गर आध्यात्म-संस्कार न दे पाया

तो जीवन व्यर्थ है।


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