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HARISHANKAR SONI

Abstract

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HARISHANKAR SONI

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तलाशता हूँ...

तलाशता हूँ...

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पहले जगह थी लेकिन अब जगह तलाशता हूँ,

जिसने छीनी मेरी जमी उसकी वजह तलाशता हूँ।


किसी ने कह दिया कभी आना मेरे गाँव,

पगडण्डियों में फिरता मैं पता तलाशता हूँ।


कोई अपना समझके जो याद करे मुझे,

उसे मैं हर जगह तलाशता हूँ।


जो बीत गयी सो बात गयी,

मैं बातों के जज़्बात तलाशता हूँ।


रास्ता बता गया दूसरी बोली में,

मैं भाषा का अनुवाद तलाशता हूँ।



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