सपनों
सपनों
सपनो की महफिल जमाते हैं,
लेकिन उन्हें हकीकत बनाने की कोशिश करते नहीं,
ऊंचाइयों की कभी बख्शीश करते नहीं।
फिर आया एक ऐसा मुकाम,
जब अपनों ने ही साथ छोड़ दिया,
फिर सपनों ने भी मुख मोड़ लिया।
वापिस चांद तारे निखरने लगे,
पर अब वह सपने टूट के बिखरने लगे।
जब सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश की,
तो वक्त ने मानो सपने ही बदल दिए।
