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Priyanka Das

Abstract

5.0  

Priyanka Das

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सफर

सफर

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हर सफर ने कुछ नया सिखाया,


 हर सफर ने कुछ नया दिखाया,


 चली जब जब अकेली उन राहों पे,

हर राह ने कुछ बताया I


कभी गिरती,कभी परती

,कभी लड़खड़ाती हुई

मंजिल को तलाशती


हर लड़खड़ाहट ने

फिर उठना सिखाया


उठ कर आगे बढ़ना सिखाया,

हर सफर ने कुछ नया सिखाया,


 हर सफर ने कुछ नया दिखाया,

 अजनबियों में अपनों को तलाशती,


 कभी उनके बातों को सराहती,

कभी उनके बातों पे गुस्साती,


 फिर अकेली होने के डर से चुप हो जाती,

 हर अजनबी ने एक नया सीख सिखाया,


 इस दुनिया की अच्छाई और बुराई में भेद बताया,

 चली जब जब अकेली उन राहों पे


    


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