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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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शिक्षा के दोहे

शिक्षा के दोहे

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दीवाने-ग़ालिब पढ़ो, महावीर यूँ आप

उर्दू-अरबी-फारसी, हिन्दी करे मिलाप।


शिक्षा-दीक्षा ताक पर, रखता रोज़ गरीब

बचपन बेगारी करे, फूटे हाय नसीब।


पीढ़ी-दर -पीढ़ी गई, हरेक सच्ची बात

अक्षर-अक्षर ज्ञान है, खुशियों की सौगात।


शिक्षा एक समान हो, एक बनेगा देश

फैला दो सर्वत्र ही, पावन यह सन्देश।


जिसमे जितना ज्ञान है, उतना उसका तेज

महावीर फिर ज्ञान से, करता क्यों परहेज।


विद्या में हर शक्ति है, हर मुश्किल का तोड़

पुस्तक से मत फेर मुख, शब्द बड़े बेजोड़।


अक्षर से कर मित्रता, सच्ची मित्र किताब

तेरे सभी सवाल का, इसके पास जवाब।


सारी भाषा-बोलियाँ, विद्या का है रूप

विश्व में चहुँ ओर ही, खिली ज्ञान की धूप।


जीवन ही अर्पित किया, सरस्वती के नाम

उस साधक को यह जगत, झुककर करे प्रणाम।


पढ़ा-लिखा इन्सान ही, लिखता है तकदीर

अनपढ़ सदा दुखी रहा, कहे कवि महावीर।


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