प्रकृति और हम
प्रकृति और हम
लगी हुई थी दौड़ सभी में
थाम दिया रथ सबका उसने,
आओ मिलकर सोंचे हमसब
कैसे अब सम्मान करें हम।
अब भी गर न चेते हमसब
फिर होंगे हम मरघट में,
धरा फिजा जो शुद्ध हुई है
उसपर हम एहसान करें।
थोड़ा सुधरें, उन्हें सुधारे
नव राष्ट्र निर्माण करें,
शुद्ध हवा और पानी को अब
ऐसे ही विस्तार करें, ऐसे ही विस्तार करें।
