नया साल
नया साल
ये सुहाना पल ये जो आशिकाना पल
फिर न होगा कल चल पग बढ़ाए चल.
जब लंबी हो डगर हर छोर हो समर
अऐ नौजवान संभल शाम से सेहर.
न पुराने साल की न बातें बीते हाल की
सामने भविष्य है कर तू कुछ कमाल की.
फिर जिगर में जान भर लक्ष्य की बिसात पर
झटक पटक उठ चल खुद को आत्मसात कर.
फिर लहू में जोश है मेरा सनम आरूश है
लव पे है जुल्जलाल कुछ नहीं जो पोश है.
वह मिल रहे हैं यार से नए नवेले प्यार से
बहती नदी की धार में उम्मीदों की ब्यार से.
उछल उछल मचल रहे हैं फिर से दिल जवां
बोसा गुलों के ले रही गुलशन की तितलियाँ.
खिलती सुबह की धूप है गुलशन में मौज है
चहु दिग रंगीनियाँ बुलबुल की शोखियाँ.
न पुराने साल की न बातें बीते हाल की
सामने भविष्य है कर तू कुछ कमाल की.
ये सुहाना पल ये जो आशिकाना पल
फिर न होगा कल चल पग बढ़ाए चल.
©डॉ राशिद अहमद खान