नारी
नारी


अवतार हूँ देवी का फिर भी प्रताड़ित की जाती हूँ
सुविधानुसार माँ बहन पत्नी के रूप में बांटी जाती हूँ।
सम्पूर्ण हूँ स्वयं में फिर भी अधूरी कही जाती हूँ
कुछ दिन मायके फिर ससुराल में रखी जाती हूँ।
कहीं दहेज में जली कहीं घरेलू हिंसा में मारी जाती हूँ
बलात्कार कर कर के मैं नजरों से उतारी जाती हूँ।
खाने के नाम पर रसोई में पूरा दिन मैं पकाई जाती हूँ
सबको खिला देतीं हूँ कोई नहीं पूछता मैं कब खाती हूँ।
मैं नारी समाज में हर चीज़ पीछे मानी जाती हूँ
फिर भी हर जगह अपनी प्रतिभा से पहचानी जाती हूँ।