नारी वृक्ष - प्रकृति का आधार
नारी वृक्ष - प्रकृति का आधार
एक बीज जो है इतनी भारी,
बोझिल तुम कितनी नारी,
चाहे रौंदो,चाहे कुचलों,
तुम मातम की ममता हो,कोई त्योहार थोड़ी हो....
लताएँ बढ़ गई,कही ये आसमान ना देखें,
इस खातिर ही कुछ पंखुड़ियों ने,
कभी ऊड़ान नहीं देखे,
चाहे लकड़हारा हो, चाहे हो कोई व्यापारी,
तुम कीमत का सौदा हो ,कोई बड़ा कारोबार थोड़ी हो.....
तुम फल देना और छाया भी,
त्याग प्रेम साहस की साया भी,
चाहे तूफान हो ,चाहे हो कोई आंधी,
तुम दृढ़ता की दुर्गा हो, किसी की दरकार थोड़ी हो...
द्रौपदी का जख्म़ अगर हरा है,
उसे केवल कृष्ण ने भरा है,
तुम सम्मानों की बंसी हो ,
कोई महाभारत या तलवार थोड़ी हो.....
किसी के पत्थर की सलामी, किसी के प्रेम का पानी,
चाहे पतझड़ की बेला हो ,चाहे हो कोई कटु वाणी ,
तुम स्वाभिमान की सीता हो ,
जग का श्रृंगार थोड़ी हो...