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Suraj Singh

Abstract

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Suraj Singh

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नागफनी

नागफनी

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चलो चलते हैं, 

कहीं दूर जमाने से 

ना चाँद के सफेद तल पर 

ना सितारों के सफेद आँचल पर, 

किसी सूखे रेगिस्तान में, 

जीवन की कश्मकश से दूर, 

दूर दूर तक जहाँ प्यास ही प्यास बिखरी हो, 


जहाँ तुम्हें सिर्फ मेरी और मुझे तुम्हारी जरूरत हो, 

तुम एक मर्म द्रव बन जाओ, 

मै कठोर कवच हो जाऊँ, 

तुम प्यास मेरी बुझाती रहो, 

मै कठोर काँटों सा तुम्हें पीता रहूँ।


नागफ़नी से खड़े हम दोनों, 

सूने रेगिस्तान मे 

एक दूसरे को सुनते रहे 

तुम अन्तरथल मे गाती रहो, 

मै गरम हवाओं से संगीत बनाता रहूँ। 


अपने भीतर तुम्हें दुनिया से बचाये हुए 

मैं तुम्हें पीता रहूँ अपनी आगोश मे 

और तुम मेरी प्यास बुझाती रहो। 

चलो कहीं दूर रेगिस्तान में 

जीवन की कश्मकश से दूर, 

हम दो निर्जीव से भागते जीवन को, 

प्यार सा कटीला पौधा बना दे। 

चलो चलते हैं...।


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