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Manya Munjal

Abstract Inspirational Thriller

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Manya Munjal

Abstract Inspirational Thriller

न से नारी || मानया मुंजाल

न से नारी || मानया मुंजाल

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कनक की देवी, अन्नपूर्णा,

अपने देह पर कनक सजाए,

मैं ही तो दुनिया सारी हूँ,

मान भरी नज़रों से न देखो तो अभिशाप हूँ,

इज़्ज़त से मुस्कुराओ तो

मैं भी एक कव्वाली हूँ।


हाथ में कंगन, पैर में पायल,

विश्वविजय बनने की क्षमता है मुझमें,

ओ मर्दो, तुम सब पर मैं भारी हूँ,

हां मै भी एक नारी हूँ।


माँ की ममता से लेकर तुम्हारा

कठोर काल तक बन जाऊंगी,

हाथ लगाने की चेष्ठा भी की,

तो मैं शेरनी बन गुराऊँगी।


लक्ष्मीनारायण, लक्ष्मी बिन अधूरे है,

पूर्ण उनको भी मेरा सार करता है,

मेरी कोख से जन्म हर निकाय है लेता,

सबसे पूजनीय, मेरा बेटा ही

तिह संसार का विघन्हर्ता है।


स्नेह से लाद दूंगी मैं तम्हें,

तुम्हारी राह से कठोर कांटे भी हटाऊँगी,

सारी का पल्लू गिराने की कोशिश की तो,

उसका सबक भी तुम्हे मै ही सिखाऊँगी।


मान बचाना आता है मुझे मेरा, ओ नर,

तुम जब तक हो आज्ञाकारी,

तब तक मैं आज्ञकरिनी हूँ,

हर बलात्कारी की रूह कुचल कर

कदम रखने वाली, हाँ मै भी एक नारी हूँ।


तो अंत में कहूँगी

मैं सीता तभी बनूँगी,जब तुम

राम जैसा चरित्र पाओगे,

नहीं तो मैं माँ काली हूँ,

मैं सिर्फ़ एक तन या बदन नहीं हूँ,


यह तुम्हें आखिरी बार बता रही हूँ ।

क्योंकि अब दबने का शौक नहीं है मुझे,

मर्दो तुम सब पर मैं भारी हूँ,


हर बलात्कारी की रूह कुचल कर

रखने वाली, हाँ मैं भी एक नारी हूँ।


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