मेरी अभिकामना
मेरी अभिकामना
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ,
टूटकर, गिरकर, बिखरकर
एक नया आकार पा लूँ।
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।
कंटकों से बैर कैसा ?
प्रेम क्या मुझको सुमन से ?
पथ मेरा ऐसा हो जिसपे
चलके मैं संस्कार पा लूँ।
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।
जीत का लालच नही है
हार का भय भी नही,
हो वही परिणाम जिससे
कर्म का आधार पा लूँ।
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।
मित्रवत मुझसे मिलें सब
शत्रुता जैसा न कुछ हो,
प्रेम हो चारों तरफ
ऐसा सुखद संसार पा लूँ।
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।
भावनाओं के भंवर में
बह न जाये नाव मेरी
हो न कोई शेष तृष्णा
तृप्ति की पतवार पा लूँ।
है मेरी अभिकामना
मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।