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Sudha Talan

Abstract

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Sudha Talan

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माँ

माँ

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में सो गयी फिर भी माँ जाग रही थी

सिरहाने पे बैठी मानो मेरी चेहरे पे

पड़ी हर एक शिकन को डांट रही थी।


कभी बाँहो का तकिया,

तो कभी अंचल की चादर

बनाके उड़ा रही थी।


नींदों में मेरा मुड़ना, खिसकना

कभी जाके उस से लिपटना

मेरी हर एक अदा पे माँ मुस्कुरा रही थी।


अपनी कोमल हथेलियों को कभी

चेहरे पे घुमाती, अपनी नरम

उँगलियों से बालो को सहलाती।


मेरी हथेलियों की गर्माहट को

अपने चुम्बन से मिटा रही थी

सवेरा हुआ और आँख खुली,

पर माँ वही सिरहाने पे बैठी

मुझे थपकियाँ दिए जा रही थी।


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