ललक
ललक


अब भी थोड़ी सी ज़हन में कोई कसक बाकी है।
जिंदगी तुझे ज़रा शिद्दत से जीने की ललक बाकी है।।
पलक झपकती है कोई हसीन मंजर गुजर जाता है।
छूटते रास्तों तुमसे बस इतनी सी शिकायत बाकी है।।
हिसाब उम्र का हाथों की लकीरों में कहीं लिक्खा है।
समय सब जानता है, उससे मेरी गुफ्तगू अभी बाकी है।।
तजुर्बे लिक्खूँगा तो पढ़ेगा कौन वक्त किसको है?
बड़ी भगदड़ है उनकी जिनकी जिंदगी अभी बाकी है।।
कद से छोटी मगर उम्मीद से कहीं लंबी टांगे है।
पैर फैलाओ तो दीवारों से टकराना बस बाकी है।।
छद्म सी रूपसी मुस्कान जो होठों पे रोज़ खिलती है।
मन की भीतरी सिलवटों का मिट जाना अभी बाकी है।।
पलक झपकती है कोई हसीन मंजर गुजर जाता है।
छूटते रास्तों तुमसे बस इतनी सी शिकायत बाकी है।।
तजुर्बे लिक्खूँगा तो पढ़ेगा कौन वक्त किसको है?
बड़ी भगदड़ है उनकी जिनकी जिंदगी अभी बाकी है।।