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SONIA kumar

Abstract

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SONIA kumar

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कूड़े के ढेर में

कूड़े के ढेर में

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जन्मा

कूड़े के ढेर में।

रेंगना सीखा

कूड़े के ढेर में।

चलना सीखा

कूड़े के ढेर में।

बोलना सीखा

कूड़े के ढेर में।


स्कूल जाने की चाह

दब गई

कूड़े के ढेर में।

बड़ा आदमी बनने का सपना

दफन हो गया

 कूड़े के ढेर में।


लेकिन में खुश हूं

इस कूड़े के ढेर से।


देखा है मैंने

स्त्री का पुरुष से अपमान होते।

देखा है मैंने

गरीब का अमीर से शोषण होते।

देखा है मैंने

लोगों को लड़ते झगड़ते -

कभी धर्म के नाम पर,

कभी जाति के नाम पर,

कभी समुदाय के नाम पर।


मैं खुश हूँ 

कि मैं

कितनी दूर हूँ

इन असमानताओं से।


मेरी जाति - कूड़े का ढेर

मेरा धर्म - कूड़े का ढेर

मेरा समुदाय - कूड़े का ढेर।


मेरे इस कूड़े में

नहीं नज़र आती कोई असमानता।

किस धर्म के लोगों ने फेंका

ये कूड़ा।

किस जाति के लोगों ने फेंका 

ये कूड़ा।

किस समुदाय ने फेंका

ये कूड़ा।


ये कूड़ा

लड़ना,

मारना,

परेशान करना,

अपमानित करना

नहीं सीखाता।


में खुश हूँ

इस कूड़े के ढेर में।

यहां मेहनत है।

यहां प्यार है।

यहां दोस्ती है।

यहां भाईचारा है।

यहाँ समानता है।

मैं खुश हूं इस ढेर में

इस कूड़े के ढेर में

कूड़े के ढेर में।


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