कोविड संकट के दो पहलू
कोविड संकट के दो पहलू
कल छत पर चढ़ देखी जब, मैंने अपनी सूनी गलियां,
सूनी सड़क, सुना शहर, फिरते डगर सुखी कलियां,
तब यूं ही दिमाग में पनपा, रब ने यह कहर क्यों बरपाया ?
लॉकडाउन में, कोविड-19 में, हमने क्या खोया और क्या पाया।
खोकर हमने आजादी अपनी, अपनों का साथ पाया है
इंसान जो मैं मैं करता था, अपनी औकात पर आया है।
खोई हमने कुछ आमदनी, पर हस्तकला तो पाई है
खोकर मॉल और क्लब हमने, कुछ तो लक्ष्मी बचाई है।
खोया हमने बाहर खाना, खुद की रसोई बनाई है
खोया हमने वाहन का शोर, पंछी ने कूक सुनाई है।
खोया जब "रूटीन वर्क" अपना, अंदर का जुनून छलक आया है।
क्या हुआ जो कुछ दिन बैठ गए, शुक्र करो कि हो घर पर।
कुछ लोग तो बिना साधन, भटक रहे हैं इधर उधर।
खाना है, पानी है, बिजली है और परिवार भी है
यह काफी है, हम स्वस्थ हैं और हमारे यार भी हैं।
जो छुट्टी छुट्टी रटते थे, वह घर पर अब परेशान हैं
उनके बारे में सोचो तो सही, जिनके अपनों ने खोई जान है।
हम सोचते थे "हम- हम" ही हैं, हम से ऊपर कोई नहीं
उस ऊपर वाले ने दिखा दिया, वह सब कुछ है, हम कुछ भी नहीं।
हम घर पर रहे, नए काम करें , सभी नियमों का भी ध्यान करें,
पुलिस को भी नमन करें, डॉक्टरों का अभिमान करें।
हाथ जोड़ हम झुके रहे, रब के आगे अरदास करें
कुदरत को सजा दी है हमने, अब वह ही हमें माफ करें।।
