कलयुग
कलयुग
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मैं द्रौपदी नहीं हूं
मुझे बाँटने का दुस्साहस न करना
अपने प्रपंच और वंचना को
जायज़ मानते हो तुम ?
कितना गर्व है
अपनी वाकपटुता पर ;
सुनो
मेरे अनाधिकृत क्षेत्रों में
क़दम रखने की
धृष्टता न करना..!
जीवन की जंग
कूटनीति नहीं....
आज सहस्रों द्रौपदियाँ
दुशासनों से अपनी अस्मिता बचातीं
या तो
निर्वाण की राह चली जाती हैं
या
सलाखों के पीछे
जिजीविषा नहीं त्याग पातीं..!
कलयुग में
कृष्ण ने भी
पीतवर्णीय अंबर त्याग
कृष्णवर्णीय चोगा ओढ़ लिया है
और
गांधारी।