कल्पना-कोई और
कल्पना-कोई और
मेहंदी रचानी थी मुझे किसी और के नाम की,
और चूनर मेरे सिर पर कोई और डाल गया,
परमेश्वर बनाना था मुझे किसी और को अपना,
और अपनी अर्धांगनी का दर्ज़ा कोई औऱ दे गया,
मन्नत के धागे बाँधे थे मैंने किसी और लिए,
और किश्मत मेरा मुझे किसी और संग बंधा गया,
सात फेरों के सपनें देख रखे थे किसी और संग,
और मांग को सिंदूरी कोई और लाल कर गया,
श्रृंगार की वजह बनाने का शौक़ था किसी और को,
और अपने श्रृंगार की तरह कोई और सजा कर गया।
आयत की तरह पढ़ा था दिल ने किसी और की,
और इस आस्था का सम्मान कोई और कर गया,
उम्मीद लगाई थी किसी और से तनिक इज़त की,
और अपनी इज़ज़्त बनाकर मुझे कोई और ले गया।