कलमकार
कलमकार
मैं कलमकार
रचना को देता हुआ आकार
रामराज्य के स्वप्न को करता साकार
देता जागृति व जोश अपार
मैं हूँ ऐसा कलमकार।
परिवर्तन के बीज मैं बोता हूँ
सब के दुख में मैं भी दुखी होता हूँ
सुनता हूँ सिसकियाँ, चिल्लाहट से भरी पुकार
जिसे अभिव्यक्त करने बैठा मैं हूँ ऐसा कलकमकार l
राजनीति से मेरा रिश्ता तो पुराना नहीं है
मेरा मकसद झूठे वादों को निभाना नहीं है
मैं तो अपने शब्द खाद्य से
कीचड़ में कमल उगाना चाहता हूँ
मैं कलमकार मात्र परिवर्तन लाना चाहता हूँ l
जिन शहीदों ने देश को आज़ाद कराया
लहू की हर बून्द दे वादा निभाया
जिनकी मूर्तियों को हमने हर दफ़्तर
और चौराहों पर लगाया
उन मूर्तियों के नीचे आज रिश्वत जो लेते है
अवसरवादी बन देश तक को बेच देते हैं
उन देशद्रोहियों को मै फाँसी के तख़्त तक पहुंचाने आया हूँ
मैं कलमकार न्यायतूलिका में समानता दिलाने आया हूँ l
बैठे हैं जो संसद की बंद दीवारों के अंदर
नहीं सुनता जिन्हें भूखी अंतड़ियों का भी क्रंदन
उन गूँगे बहारों को मैं ये समझाने आया हूँ कि
बैठ कर देने भाषण से देश नही चलता
सियार सिंह की तरह कभी हुँकार नही भरता
गरल गरल है वह कभी सुधा नहीं बनता
मैं उस हलाहल विष को अमृत में बदलने आया हूँ
मैं कलमकार अपना धर्म निभाने आया हूँ
मैं कलमकार संसद को भी दर्पण दिखलाने आया हूँ
मैं कलमकार सबको जगाने आया हूँ।
