खतरे मैं चौथा स्तंभ
खतरे मैं चौथा स्तंभ
गणतंत्र का चौथा आधार स्तंभ वो,
प्रसार माध्यम उसे कहते हैं।
दिन के २४ घंटे,
घिरे जिससे रहते हैं।
पहले की बात अलग थी,
चार दरवाजे मैं दफन वार्ता भी,
वो जनता के सामने लाता था।
दलित, पीड़ीत, न्याय, के खातिर;
वो आवाज उठाता था।
उसके वजासे से कितनो को,
न्याय मिला था।
शायद इसलिए वो,
चौथ्या स्तंभ कहलायाता था।
पर आज.....
रात के बीच अँधेरे मैं,
बलात्कार कर एक बेटी को,
दफनाया जाता है।
फिर भी प्रसार माध्यम हमारा,
खामोश रहता है।
न्यूज चॅनेल भी कहीं,
आज बिक गये हैं।
पिडीतों से तो ज्यादा,
ड्रग्स लेने वाले ही न्यूज पर छाये हैं।
खतरे मैं है अब,
गणतंत्र का चौथा स्तंभ हैं।
सावधान,
यही लोकतंत्र खत्म होने का
आरंभ हैं।