जीत
जीत
एक परिंदा जब कभी भी मन बनाता आसमाँ का
फिर उसे न फ़र्क़ पड़ता, क्या सितम होगा जहाँ का।
उसकी बस इतनी सी ख्वाहिश आसमां छूकर रहूंगा
रास्ते कितने कठिन हों पार उनको में करूँगा।
जग को सिखलाता है वह जब भी कहीं कुछ ठान लो तुम
है नहीं मुश्किल कोई फिर बात मेरी मान लो तुम।
अपने पंखों को पसारो और लो ऊंची उड़ान
राह की अड़चन स्वयं ही देंगी तुमको आसमान।
कब तलक यूँ फर्श पर हारे हुए बैठे रहोगे
अब तो खुद को पंख दे दो, कब तलक ऐंठे रहोगे।
विश्व के सब कायदों को आओ हम सब आजमाएं
हम नही हारेंगे अब मिलकर चलो ये कसम खाएं।
रुख हवाओं का कोई हो उड़ने की बस आस रखना,
हार में भी जीत है ये ही सदा विश्वास रखना
ये ही सदा विश्वास रखना.....।।