झूलाघर में पहला दिन
झूलाघर में पहला दिन
कदम तो बढ़ते जा रहे थे आगे पीछे मन छूट गया है
भरी आँख और भारी मन जैसे कोई रूठ गया है
सपनोँ की ऊंची उड़ान भर ली और सोचा नहीं
जमीं पर एक नन्हा पंख बचपन में ही टूट गया है
जब छोड़ दिया पीछे आगे सबकुछ धुंधला गया है
नज़र तलाशती वही फ़ैले कमरे गंदे कपड़े मैली दीवारें
व्यवस्थित घर और शानदार करियर की चाह थी
झूलाघर भेजकर सुकून ओ चैन की दरख़्वास्त थी
टटोलती कभी पर्स में चाबियां तो दरवाज़े की कुण्डी
हर बत्ती चूल्हा ताला बंद है घर की सुरक्षा चाकचौबंद हैं
किस आशंका से मन विचलित तन स्थिर स्वांस मंद है
कामकाजी महिला हूँ बरसों से आज नहीं पहला दिन है
माँ का बच्चा पहली बार झूलाघर गया ये बदलाव नया है
अपनी पूंजी सम्पति नहीं देते किसीको सँभालने घड़ी भर
अपना कलेजे का टुकड़ा अन्जानों के भरोसे रहने गया है
माँ से पूछों क्या बीती बच्चा रोया पल्लू पकड़ मत जाओ
काफूर थे भविष्य के सपनें और महत्वाकांक्षा और चाह
बच्चे के हर आंसू में कामकाजी माँ का दिल टूट गया था
कदम तो बढ़ते जा रहे थे आगे पीछे मन छूट गया है।