जहाँ आपका जन्म हुआ
जहाँ आपका जन्म हुआ
अब जीना दूभर लगता है।
मुझे अकारण डर लगता है।।
हो निर्भय खाता-पीता था
बहुत सहज होकर जीता था
सुख-दुख को प्रारब्ध मानकर
फटे चीथड़ों को सीता था
ऐसा परिवर्तन क्या आया
अपना भी दीगर लगता है।
मुझे अकारण डर लगता है।।
गिल्ली-डंडा लिए हाथ में
बचपन बीता एक साथ में
आज हुआ वह बिल्कुल उल्टा
 
; ऐसा कीड़ा घुसा माथ में
बदल गया मस्तिष्क अचानक वह भाई निशिचर लगता है।
मुझे अकारण डर लगता है।।
नैतिक मर्यादा अब टूटी
भ्रातृ-भावना मन से छूटी
स्नेह, प्रेम, सद्भाव विलोपित
लगता है किस्मत ही फूटी
स्वार्थ परायण में लिपटे को
द्वेष भाव हितकर लगता है। मुझे अकारण डर लगता है।।