इस मंज़िल के हम अविरल राही!
इस मंज़िल के हम अविरल राही!
मंज़िले यूँ ही नहीं मिलती, ओ अविरल राही!
उसे अमल करती स्वेद की स्याही।
तिनका-तिनका चुन, मन की तरंगों को क्रियात्मक रूप देना पड़ता है,
दृढ़ निश्चय और उद्यम की लौ को हृदय में उज्वलित करना पड़ता है।
काँटों से परिपूर्ण इस पथ पर,
आशावाद से संपूर्ण करना तू यह सफर।
जीवन के रंगमंच के प्रत्येक शिविर पर इम्तहान होता है,
जूझने वालों के पथ को सौभाग्य चुनता है।
पराक्रम और निरंतर परिश्रम उत्कृष्ट तत्व है जीवन में,
सहिष्णुता के समाकलन से तू प्रवेश कर प्रतिष्ठा नगरी में।
सपनों को साकार करती मेरे स्वेद की यह स्याही,
क्योंकि मंज़िले यूँ ही नहीं मिलती, ओ अविरल राही!
