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Gurudeen Verma

Abstract

4  

Gurudeen Verma

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होते हो तुम क्यों नाराज

होते हो तुम क्यों नाराज

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होते हो तुम क्यों नाराज, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।

दोषी भी तो तुम ही हो, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।।

होते हो तुम क्यों----------------------------------।।


मदद क्यों नहीं की मेरी, मैं जब मुसीबत में फंसा था।

मुझको देखकर भी भूखा, तुमको नहीं आई शर्म।।

होते हो तुम क्यों----------------------------------–--।।


मुझको क्यों दी नहीं पनाह,भटकता था जब दर-दर।

दुनिया वालों ने नहीं मुझ पर, तुमने ही किये थे जुल्म।।

होते हो तुम क्यों-----------------------------–------।।


लगाया क्यों नहीं तुमने, मुझको सीने से कभी भी।

तुम ही हंसते थे बहुत, देखकर कल को मेरे जख्म।।

होते हो तुम क्यों------------------------------------।।


आज देते हो दुहाई, तुम रिश्तों की क्यों मुझको।

तुमने ही तो तोड़ा था, यह रिश्ता और यह रस्म।।

होते हो तुम क्यों----------------------------------।।


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