होते हो तुम क्यों नाराज
होते हो तुम क्यों नाराज
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होते हो तुम क्यों नाराज, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।
दोषी भी तो तुम ही हो, मेरे नहीं निभाने पर रस्म।।
होते हो तुम क्यों----------------------------------।।
मदद क्यों नहीं की मेरी, मैं जब मुसीबत में फंसा था।
मुझको देखकर भी भूखा, तुमको नहीं आई शर्म।।
होते हो तुम क्यों----------------------------------–--।।
मुझको क्यों दी नहीं पनाह,भटकता था जब दर-दर।
दुनिया वालों ने नहीं मुझ पर, तुमने ही किये थे जुल्म।।
होते हो तुम क्यों-----------------------------–------।।
लगाया क्यों नहीं तुमने, मुझको सीने से कभी भी।
तुम ही हंसते थे बहुत, देखकर कल को मेरे जख्म।।
होते हो तुम क्यों------------------------------------।।
आज देते हो दुहाई, तुम रिश्तों की क्यों मुझको।
तुमने ही तो तोड़ा था, यह रिश्ता और यह रस्म।।
होते हो तुम क्यों----------------------------------।।