STORYMIRROR

shikha rajput

Abstract

3  

shikha rajput

Abstract

गुनाह

गुनाह

1 min
184

तू गुनाह करके सोचता है तुझे देखा नहीं किसी ने

क्यों भूल जाता है तू तेरे ऊपर भी तो कोई है

देकर दुख किसी को खुद को शहनशाह समझता है

उस शहनशाह की एक मार से ही तू घबरा जाता है

फिर क्यों किसी को दुख देकर गुनाह करता है

तू समझ दर्द दूसरे का भी तो समझेगा तुझे दूसरा भी!



Rate this content
Log in

More hindi poem from shikha rajput

Similar hindi poem from Abstract