गुनाह
गुनाह


तू गुनाह करके सोचता है तुझे देखा नहीं किसी ने
क्यों भूल जाता है तू तेरे ऊपर भी तो कोई है
देकर दुख किसी को खुद को शहनशाह समझता है
उस शहनशाह की एक मार से ही तू घबरा जाता है
फिर क्यों किसी को दुख देकर गुनाह करता है
तू समझ दर्द दूसरे का भी तो समझेगा तुझे दूसरा भी!