घर हो ऐसा
घर हो ऐसा
घर ऐसा हो, या वैसा भी हो
कमस कम एक कोने में, अपनों से बात करने की जगह जरूर रखना ।।
रखना एक छोटी सी ही सही, एक कछुए की जोड़ी
जो बताती रहे, याद उस पुरातन मंथन की, बन पायI है मानव आज मानव, पश्चात युद्ध उस दैत्य- दानव की ।।
अगर जगह हो उतनी, रखना एक गाय
प्रकृति से निकलकर बिना किसी प्रदूषण, जो दे एक कुछ तो - जो जल्दी से पच जाए।।
हो एक आइना जो बता सके
स्वप्निला आसमान कही दूर नहीं, करीब है उतना ही जितना दीखता हो उस तरफ ।।
हो इक बाजा, जो बात करे तुमसे तुम्हारी वाली
जब दुनिया करती हो, अनसुनी और चली हो आँधी तुफानो वाली ।।
हो एक बस टाट पट्टी सोने के लिए, जो जमीं से सटी हो
सुनाई देती हो रात को , धड़कन धरती की साफ़ जिससे ।।
हो इक गीता की लाल किताब, जो सिरहाने पर रखीहो
याद दिलाये, समय भी निकल जाएगा, जो है तब बुदबुदाने पर ।।
ऐसी जगह - सूरज चाँद जिधर से दीख जाते हो बीन| किसी रूकावट
मन से तन से छूने उनको, इतनी जगह हो बिना किसी मिलावट ।।
हो पुरखो की याद वाली कुछ पुरानी चीज़े
बताएं जो कैसा है, क्यों है यह जीवन और अब मौजे ।।
उम्र तो निकल जाएगी, हाथ पैर चलना भी बंद हो जाएंगे एक दिन
घर पर इस तरह हलचल मची हुई, सींची हुईसंभावनाएं और आज़ादी , आपको उड़ना सीखा देती है हर दिन । ।।।