एक नया स्वतंत्रता दिवस
एक नया स्वतंत्रता दिवस
बूंद-बूंद से भरता सागर जैसे,
ये आज़ादी हमें मिली बिल्कुल वैसे।
अनगिनत वीरों ने कतरा-कतरा खून बहाया,
तब जाकर ये स्वतंंत्रता दिवस हमारे भाग्य में आया।
उस वक़्त था हमारा देश एकता के सूत्र में बंध गया,
ऐसा सूत्र जिसने अंग्रेजी शासन को भी हिला दिया।
ऐसा सूूत्र जिसने स्वहित को भुलाकर देशहित को दर्जा दिया,
ऐसा सूत्र जिसने हमें स्वतंत्र भारत का सुनहरा उपहार दिया।
किन्तु उस देशहित के सूत्र को हम सबने आज भुला दिया,
जात-पात और ऊंच-नीच की मानसिकता के भेंट चढ़ा दिया।
आखिर क्यों हम पढ़े-लिखे युवाओं ने वैमनस्य है पाल लिया,
आखिर क्यों हमने धर्म को इंंसानियत सेे है जोड़ लिया।
क्यों ना हम फिर से इस स्वहित की तुच्छ भावना को भुला दे,
क्यों ना हम फिर से इस देेशहित की महान भावना को अपना ले।
क्यों ना हम युवा वर्ग उन शहीदों की कुर्बानी को फिर से याद कर लें,
क्यों ना हम सब मिलकर फिर से एक नया स्वतंत्रता दिवस मना लें।