एक काली आकृति
एक काली आकृति
कम्बखत एक काली आकृति कल रात से सोने नहीं दे रही है
इतनी नौटंकी कर रही है की ठीक से रोने भी नहीं दे रही है
सोचा काली आकृति है दिन निकलते ही ही चली जायेगी
या फिर रात के घने अंधेरे में कहीं ग़ायब हो जायेगी
पर ऐसा ना हुआ जैसे जैसे अंधेरा बढ़ा, वो भी बढ़ती गयी
रात को बिस्तर मे मेरे सिराहने आ बैठी
कम्बखत एक काली आकृति कल रात से सोने नहीं दे रही है।
अब ठान लिया था, पूछूं उस से की क्यूँ मेरा पीछा कर रही है
जैसे ही मैं मुड़ा वो भी मुड़ गयी, मेरे सवाल का जवाब दे ने से
पहले ही वो खामोश हो गयी
कुछ गौर से देखा मैने वो दर्द से काँप रही थी
मेरे बाये कांधे पे जिस से खून बह रहा था ..वो ज़ख्म उस के
कांधे पर भी था
अच्छा लगा देखकर अपना दर्द कोई और भी से रहा है
उसके माथे पर कुछ चमक कर टूट रहा था, शायद मेरे ही
सपने मुझे उसमे नजर आ रहे थे
उसकी हाथों से कुछ छूट रहा था, वो उसे पकड़ने की कोशिश
कर रहा था
मेरे भी कुछ वादे, कुछ रिश्ते ऐसे ही दूर जा रहे थे
तब मुझे याद आया वो कोई और नही मेरी बढती हुई परछाईं है
कम्बखत एक काली आकृति कल रात से सोने नहीं दे रही है।