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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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दोहा मुक्तक

दोहा मुक्तक

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मंगलमय मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे जैसे भी करो, बदलो  भले  विधान।
हाथ जोड़ विनती करूँ, खड़ा  आपके  द्वार।
सबसे पहले आपका, आया मुझको ध्यान।।

अपनों पर भी  अब कहाँ, हमको  है  विश्वास।
कारण सबको पता है, फिर क्यों रखना आस।
लाख  तसल्ली  आप  दो, पर  सब  है  बेकार।
जीवन में अब तो बना,अर्थ सभी से खास।।

कौन मानता आपको, जिसके हो हकदार।
स्वार्थ सिद्धि के खेल में,भटका है संसार।
चंचलता से जग भरा, रखता माया लोभ ।
जान बूझ मत कीजिए,प्रभु निज बंटाधार।।

करें साधना धैर्य से, तभी  मिले  परिणाम।
वरना सब बेकार है, व्यर्थ  आपका  काम।
सोच समझ पहले करें, चाह रहे क्या आप।
तभी साधना में रमें, लेकर हनुमत  नाम।।

बिन साधन होता कहाँ, अपना कोई काम।
चाहे जितनी साधना, जपो राम का नाम।
राम नाम के साथ ही, साधन की दरकार।
करते रहिए साधना, बनकर के गुमनाम।।

अंधा  बाँटे  रेवड़ी, बड़े  मजे  से  आज।
खूब मजे वो कर रहा, दूजा  है नाराज।
हम सब नाहक कर रहे, नासमझी में शोर।
अंधे को है लग रहा, हल्ला कारज साज।।

सुधीर श्रीवास्तव 


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