दिल
दिल
एक रोज़ जो मैंने
दिल बेचना चाहा,
खरीददार न मिला..
कुछ ने कहा,
मुफ्त में ही दे दो,
मुफ्त में, मैं न दे सका,
क्योंकि दिल की कीमत
जानना चाहता था..
आखिर किसी के दिल की
क़द्र, है भी, या नहीं,
ये समझना चाहता था..
इस पूरी कोशिश में,
एक अजीब सा दर्द,
मैंने महसूस किया..
दिल मेरा,
न समझ सका कोई,
जो समझ कर भी,
पा न सका,
उसी ने अफ़सोस किया..
आखिर में सोचा,
चलो इसे टूट ही जाने देते हैं,
दिल जो एक रोज़ गया टूट,
फिर उसका कभी दीदार न मिला,
एक रोज़ जो बेचने निकला दिल,
तो कोई खरीददार न मिला....